ओबेसोफोबिया वजन बढ़ने का एक असामान्य डर है, जो व्यक्ति की ईटिंग हैबिट्स को रेग्युलेट करता है। इस फोबिया से पीड़ित लोगों को कई तरह के अन्य साइकोलॉजिकल डिसआर्डर जैसे एनोरेक्सिया व बुलिमिया आदि हो सकते हैं। इतना ही नहीं, ऐसे लोगों अधिक वजन वाले या मोटे लोगों से नफरत होने लग जाती है। ओबेसोफोबिया से पीड़ित व्यक्ति को कुछ भी खाने में बहुत मुश्किल हो सकती है और बाहर जाने या रेस्तरां में खाने के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इस फोबिया का समय पर इलाज न होने पर व्यक्ति की जान पर भी बन सकती है।
ओबेसोफोबिया का कारण
ओबेसोफोबिया होने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे आपका एनवायरनमेंट या वजन को लेकर बचपन का कोई बुरा अनुभव भी आपके मन में बढ़ते वजन का डर पैदा कर सकता है। इसके अलावा अगर मानसिक बीमारी की कोई फैमिली हिस्ट्री रही हो, खासतौर से परिवार के सदस्यों को किसी तरह का फोबिया रहा हो तो इससे ओबेसोफोबिया होने की संभावना अधिक होती है। वहीं अन्य कारणों में, सोशल प्रेशर, मन में असुरक्षा की भावना या लोगों की आलोचना के कारण भी व्यक्ति के मन में मोटे होने का डर समा जाता है।
ओबेसोफोबिया के लक्षण
कई बार लोग जिसे अच्छी ईटिंग हैबिट्स समझते हैं, कई बार वह ओबेसोफोबिया हो सकता है। दरअसल, हेल्दी डाइट को फॉलो करना ओबेसोफोबिया नहीं है। लेकिन अगर आप बेहद स्ट्रिक्ट डाइट को फॉलो करते हैं और पतले रहने के लिए जरूरत से ज्यादा ही एक्सरसाइज करते हैं। इतना ही नहीं, कई बार तो वजन बढ़ने के डर के कारण व्यक्ति भूखा रहने लगता है। यह ओबेसोफोबिया का लक्षण हो सकता है।
वहीं ओबेसोफोबिक लोगों में अक्सर कम आत्मविश्वास और बहुत कम आत्मसम्मान होता है। वजन बढ़ने का उनका डर उन्हें सामाजिक रूप से घुलने-मिलने और उन्हें दूसरों के साथ एक स्वस्थ संबंध बनाने से रोक सकता है। ऐसे लोग दूसरों द्वारा पकाए गए खाने को भी नहीं खाते। ये लोग जहां भी जाते हैं अपना खाना खुद ले जाते हैं।
यदि किसी ओबेसोफोबिक व्यक्ति को किसी कारणवश बाहर का खाना खाना पड़ता है, तो वह काफी असहज और चिंतित हो जाता है। कुछ मामलों में, ओबेसोफोबिक लोग बहुत कम खाते हैं जिससे वे विभिन्न पोषक तत्वों की कमी से पीड़ित हो सकते हैं।
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ओबेसोफोबिया का इलाज
ओबेसोफोबिया का कोई सटीक इलाज नहीं है। हालांकि इसका इलाज करने के लिए पहले व्यक्ति में इस बीमारी के विकसित होने के पीछे के कारणों को समझें और फिर थेरेपी के जरिए उसके मन से डर को निकालने का प्रयास किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त कार्डियोवैस्क्युलर एक्सरसाइज एंग्जाइटी को कम करने में मदद करती है। वहीं, एरोबिक्स एक्सरसाइज आपके ब्रेन में एंडरोफ्रिन नामक गुड केमिकल्स को रिलीज करता है, जिससे आपका स्ट्रेस कम होता है।
एक्सरसाइज के अलावा योगा भी आपको इस बीमारी से निकालने में मदद करती है। योगाभ्यास के दौरान ऐसे कई आसन होते हैं, जो आपके दिमाग को शांत करते हैं। खासतौर से, मेडिटेशन एंग्जाइटी को दूर करने में मददगार है।
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अगर आप अपने मन के डर को नियंत्रित करना चाहते हैं तो कैफीन का सेवन सीमित मात्रा में करें। दरअसल, कैफीन का अधिक सेवन आपके मन-मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव डालता है। कैफीन के अत्यधिक सेवन से आपकी हार्ट बीट काफी तेज चलती है और इससे आप अधिक चिंतित हो जाते हैं। इसलिए आप चाय, कॉफी, एनर्जी ड्रिंक व डार्क चॉकलेट आदि का सीमित मात्रा में ही सेवन करें।
वहीं कुछ मामलों में, स्थिति गंभीर होने पर एंटी-साइकिक दवाएं और एंटीडिपेंटेंट्स दवाओं का भी सेवन किया जा सकता है।
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