इम्यूनोथेरेपी या बायोलॉजिकल थेरेपी एक नये प्रकार का मेडिसिन है, जो बीमारियों से लड़ने के लिए हमारे अपने शरीर में मौजूद प्राकृतिक प्रतिरक्षी सिस्टम को प्रोत्साहित करता है। हालांकि, इसका अब तक सबसे ज्यादा शोध कैंसर के इलाज के संदर्भ में किया गया है, इसके अलावा सिजोफ्रेनिया और अल्जाइमर जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियों पर भी इसका परीक्षण किया गया है। इस ट्रीटमेंट के तहत शरीर के इम्यून सिस्टम के जरिये ट्यूमर को पहचान कर उस पर हमला किया जाता है।
दरअसल, हमारा इम्यून सिस्टम आक्रमण करने वाले संक्रमणों से लड़ता है, लेकिन कैंसर कोशिकाओं से नहीं लड़ सकता। वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में कैंसर के इलाज के प्रयासों की कड़ी में इम्यूनोथेरेपी के माध्यम से एक नई उम्मीद जगाई है। अब तक की कामयाबी से वैज्ञानिक इम्यूनोथेरेपी को कैंसर से लड़ने का बड़ा हथियार मान रहे हैं।
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अब तक की सफलता को देखते हुए इम्यूनोथेरेपी को अमेरिकन सोसायटी ऑफ क्लिनिकल ओंकोलॉजी द्वारा अवार्ड भी दिया जा चुका है। पुरस्कार देने वाली संस्था के मुताबिक, इम्यूनोथेरेपी में अनेक प्रकार के कैंसर से लड़ने के साक्ष्य दिखे हैं। यहां तक कि कैंसर के जिन मरीजों में पारंपरिक इलाज कराने के बावजूद ज्यादा सुधार नहीं हुआ, इम्यूनोथेरेपी उनमें भी कैंसर के ग्रोथ को रोकने में कामयाब रहा है, जो एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।
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वहीं अमेरिका में कई बायोटेक कंपनियों ने इस थेरेपी के आधार पर दवाएं विकसित की हैं, जिनमें से कुछ की सफलता दर बेहतर पायी गयी है। कई परीक्षणों के बाद शोधकर्ताओं ने इसे कैंसर के कुछ प्रारूपों के इलाज के लिए माकूल बताया है, हालांकि कुछ अन्य के लिए यह ज्यादा कामयाब नहीं रहा है। अलग-अलग पीड़ितों में इसकी सफलता दर में विभिन्नता का बड़ा कारण उनके खान-पान और मद्यपान से भी जुड़ा रहा है। फेफड़े के कैंसर से पीड़ितों में इसकी कामयाबी की दर अब तक 25 फीसदी के करीब ही पायी गयी है। ये थेरेपी काफी मंहगी है, यह लोगों की पहुंच में लाई जा सके इसलिए वैज्ञानिक इसे सस्ता करने के लिए अवसर तलाश रहे हैं।
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