पिप्पली है कोलन कैंसर से लड़ने में मददगार, NIT राउरकेला की स्टडी में दावा

नई रिसर्च में दावा किया गया है कि पिप्पली में मौजूद एक प्राकृतिक तत्व कोलन कैंसर सेल्स की ग्रोथ को कम कर सकता है। यह अध्ययन NIT राउरकेला में किया गया।
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पिप्पली है कोलन कैंसर से लड़ने में मददगार, NIT राउरकेला की स्टडी में दावा

भारत में कैंसर के मामले हर साल बढ़ रहे हैं। खास बात ये है कि पहले जहां कोलन कैंसर (बड़ी आंत का कैंसर) ज्यादातर 50 या 60 साल की उम्र में देखने को मिलता था, अब ये कम उम्र के लोगों में भी तेजी से बढ़ रहा है। इसके पीछे कई वजहें हैं, जैसे- खराब खानपान, प्रोसेस्ड फूड्स, मोटापा, एक्टिव न होना और कई बार जेनेटिक फैक्टर भी।


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लेकिन इसी बीच एक अच्छी खबर आई है। भारत में एक रिसर्च हुई है, जो इस बीमारी के इलाज के लिए एक नई दिशा दिखाती है। ओडिशा के NIT राउरकेला में हुए अध्ययन में पता चला है कि पिप्पली (Long Pepper) में पाया जाने वाला एक प्राकृतिक तत्व कैंसर सेल्स से लड़ने में मदद कर सकता है। अभी शुरुआती स्तर की स्टडी में देखा गया है कि यह तत्व कोलन कैंसर कोशिकाओं की ग्रोथ को रोकने और उन्हें खत्म करने में मदद कर सकता है। यह रिसर्च हाल ही में इंटरनेशनल जर्नल BioFactors में पब्लिश हुई है।

रिसर्च कैसे की गई?

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने लैब में इंसान के कोलन कैंसर की दो तरह की सेल लाइन्स पर प्रयोग किया। इन सेल्स को पिप्पली में पाए जाने वाले तत्व से ट्रीट किया गया और फिर देखा गया कि इसका उन पर क्या असर पड़ता है।

यहां जो बात सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाली थी, वो ये कि यह तत्व कैंसर सेल्स को खत्म करने में तो असर दिखाता है, लेकिन हेल्दी सेल्स पर इसका नुकसान बहुत कम देखा गया।

सीधे शब्दों में कहें तो यह कंपाउंड कैंसर सेल्स को चुनकर टारगेट करता है, बाकी स्वस्थ कोशिकाओं को नहीं। यही वजह है कि इसे आगे कैंसर उपचार के एक संभावित विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

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ये कंपाउंड काम कैसे करता है?

स्टडी में यह समझने की कोशिश की गई कि आखिर ये तत्व कैंसर सेल्स के अंदर जाकर करता क्या है। रिसर्च में पाया गया कि यह कंपाउंड कैंसर कोशिकाओं में Reactive Oxygen Species (ROS) बढ़ा देता है। जब ROS का स्तर बहुत ज्यादा हो जाता है, तो सेल के अंदर मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया कमजोर पड़ने लगते हैं, DNA को नुकसान होता है और आखिर में सेल खुद को बचा नहीं पाता और अपोप्टोसिस, यानी नियंत्रित तरीके से मर जाता है। आसान भाषा में कहें तो यह कंपाउंड कैंसर सेल के सिस्टम को अंदर से बिगाड़ देता है, ताकि वो खुद ही टूट जाए।

कैंसर सेल्स को बढ़ने से भी रोकता है

रिसर्च में एक और दिलचस्प बात सामने आई कि यह कंपाउंड सिर्फ कैंसर सेल्स को खत्म नहीं करता, बल्कि उनकी ग्रोथ भी स्लो कर देता है। जांच में देखा गया कि पिप्पली में मौजूद इस तत्व के प्रयगो से ट्यूमर सेल्स के बढ़ने की स्पीड कम हो गई और शरीर में फैलने की क्षमता घट गई। इसका मतलब यह कंपाउंड दो तरफ से काम करता है। पहला कैंसर सेल्स को बढ़ने नहीं देता और दूसरा जो सेल मौजूद हैं, उन्हें धीरे-धीरे खत्म करता है।

यह रिसर्च महत्वपूर्ण क्यों है?

यह रिसर्च इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कई मौजूदा कैंसर ट्रीटमेंट में दवाओं के साइड-इफेक्ट्स होते हैं, मरीज को बहुत ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ता है और इलाज की लागत काफी ज्यादा होती है। इसके मुकाबले पिप्पली पूरी तरह प्राकृतिक है इसलिए इसके साइड इफेक्ट्स थोड़े कम हो सकते हैं।

लेकिन यहां एक बात साफ समझनी जरूरी है कि यह अभी सिर्फ लैब लेवल की स्टडी है। इसका मतलब यह नहीं है कि घर पर पिप्पली खाना शुरू कर दें और उम्मीद करें कि कैंसर ठीक हो जाएगा।

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क्या मरीज इसे अभी इस्तेमाल कर सकते हैं?

अगर अब आपके मन में भी यह सवाल आया कि क्या इस स्टडी के सामने आने के बाद अब कैंसर से बचने के लिए या कैंसर को बढ़ने से रोकने के लिए पिप्पली खाया जा सकता है, तो जवाब है- नहीं। कैंसर जैसे गंभीर रोग में किसी भी जड़ी-बूटी, आयुर्वेदिक दवा या सप्लीमेंट को बिना डॉक्टर की सलाह के लेना जोखिमभरा हो सकता है, खासकर अगर पहले से कीमोथेरेपी या रेडिएशन चल रहा हो।

कुल मिलाकर यह रिसर्च हमें उम्मीद तो देती है कि हमारी पारंपरिक पिप्पली में ऐसा तत्व मौजूद है, जो भविष्य में कैंसर के इलाज का हिस्सा बन सकता है। लेकिन अभी यह सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रयोग में साबित हुआ है। इसे इलाज के रूप में अपनाने से पहले वैज्ञानिक बड़े लेवल पर इंसानों पर रिसर्च करेंगे और सुरक्षित डोज के बारे में पता लगाएंगे। इसके अलावा लंबे समय में इसके साइड इफेक्ट्स की जांच की जानी भी अभी शेष है। इसके बाद ही यह तय होगा कि यह तत्व कैंसर के इलाज में कितना असरदार और सुरक्षित है।

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  • Nov 25, 2025 19:12 IST

    Published By : Anurag Gupta

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