भारत दुनिया के बाकी देशों की तरह पिछले 1 साल से कोरोना वायरस की मार झेल रहा है। पर कोरोना की दूसरी लहर (coronavirus second wave in india) ने अब तक का सबसे बड़ा नुकसान किया है। पिछली साल की तुलना में इस लहर में सबसे ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवा दी। पर इन विपरीत परिस्थितियों में भी हर दिन लाखों लोग इस वायरस से लड़कर, जिंदगी की जंग जीत कर बाहर आ रहे हैं। लेकिन इस जीत का असली श्रेय उन डॉक्टर, नर्स और पैरा मेडिकल स्टॉफ को जाता है, जो बिना थके दिन-रात लोगों की इलाज में लगे हुए हैं। एक-एक सांस की इस बेहद संवेदनशील लड़ाई में ये लोग बिना थके, बिना छुट्टी लिए, बिना घर गए और अपनी जान को जोखिम में डाल कर भी लगातार कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रहे हैं। इसलिए इस साल विश्व नर्स दिवस (International Nurses Day 2021) पर 'ऑनली माय हेल्थ' दुनिया भर में लोगों की सेवा में लगीं हर नर्स को सलाम करता है। साथ ही हम आपके लिए एक नर्स की कहानी लाए हैं, जो कि दिल्ली के एम्स अस्पताल में कार्यरत हैं और जिन्हें कोरोना पॉजिटिव मां और शिशुओं की देखभाल करने की जिम्मेदारी दी गई है। तो, आइए खुद एम्स की नर्सिंग ऑफिसर उर्मिला (Ms. Urmila, Nursing Officer, AIIMS) से जानते हैं किस जज्बे के साथ वो हर दिन इस लड़ाई को लड़ती हैं।
रोज ड्यूटी जाने से पहले मानसिक रूप से खुद को करना पड़ता है तैयार : नर्सिंग ऑफिसर उर्मिला
एम्स में पिछले 7 सालों से काम कर रहीं नर्सिंग ऑफिसर उर्मिला (Ms. Urmila) बताती हैं कि पिछले साल जब कोरोना शुरू हुआ था वो लगभग 6 से 7 महीने अपने घर नहीं जा पाई। इस बार भी पिछले दो महीने से वो अपने घर नहीं जा पाई हैं, जबकि उनका घर दिल्ली के पास ही रोहतक शहर में है। उनका भाई दिल्ली में ही रहता है और उनकी बेस्ट फ्रेंड का घर बगल में है पर वो पिछले दो महीने से दोनों से नहीं मिलीं। उर्मिला कहती हैं फैमिली को उनसे कुछ नुकसान न हो या वो संक्रमित न हो जाए इसलिए वो इनसे नहीं मिलती। पर ये स्थिति उन्हें मानसिक और खास कर भावात्मक रूप से काफी परेशान करती हैं। वो कहती हैं कि कोरोना वायरस ने सिर्फ लोगों को शारीरिक रूप से ही बीमार नहीं किया बल्कि मानसिक रूप से एक अवसाद की स्थिति (डिप्रेसिंग स्टेट) में छोड़ दिया है। साथ ही जिस तरह से हॉस्पिटल के हालात हैं इन दिनों हमें रोज घर से निकलते समय खुद को मन से तैयार करना है पड़ता कि पता नहीं आज क्या देखने को मिल जाए।
मां को अगर कोरोना है, तो शिशु भी होते हैं पॉजिटिव
उर्मिला नियोनेटल आईसीयू (Neonatal ICU) में इन दिनों काम कर रही हैं, जहां कोरोना पॉजिटिव शिशुओं (covid 19 in newborns) की देखभाल की जाती है। ये स्थिति काफी गंभीर होती है, क्योंकि आमतौर पर इस स्थिति में कोरोना पॉजिटिव मां को जन्म के बाद ही बच्चे से अलग कर दिया जाता है। फिर दोनों का इलाज अलग-अलग होता है। ऐसे में मां को संभालना मुश्किल होता है कि वो 14 दिन अपने बच्चे से कैसे दूर रहेंगी।
कोरोना पॉजिटिव शिशुओं का इलाज कैसे होता है- How Covid-19 is treated in New born baby?
उर्मिला बताती हैं कि जो गर्भवती मां कोरोना पॉजिटिव होती हैं, अक्सर उनके बच्चे भी पॉजिटिव हों इस बाते की संभावना ज्यादा होती है। ऐसे में जब दोनों के पॉजिटिव होते हैं, तो
- -शिशु को मां से अलग करते हैं, ताकि उनमें इंफेक्शन और न फैले।
- -आमतौर पर शिशु में निमोनिया के लक्षण होते हैं पर सही इलाज मिलने पर वो मां की तुलना जल्दी ठीक हो जाते हैं।
- -कई बार सांस लेने की भी दिक्कत हो जाती हैं, तो उन बच्चों का अलग इलाज होता है। नहीं, तो नॉर्मल एंटीबायोटिक्स की मदद से ही इन बच्चों का भी इलाज होता है।
- -5 वें दिन हम बच्चे का टेस्ट करते हैं कि वो कोरोना नेगेटिव हुए या नहीं।
पर इस बीच कई बार ऐसा होता है कि शिशु तो कोरोना से ठीक हो गया पर मां नहीं हो पाई। कई बार मांओं की जान भी चली जाती है और हम बच्चे को उसके पिता को सौंप देते हैं। पर कुल मिला कर इस स्थिति को देखें, ते ये काफी मार्मिक होता है।
कोरोना पॉजिटिव शिशु को नहीं मिल पाता है मां का दूध
उर्मिला बताती हैं कि कोरोना पॉजिटिव मां के बच्चों को जन्म के बाद मां का दूध नहीं मिल पाता है। ऐसे में इन बच्चों के लिए एम्स प्रशासन ने ह्यूमन मिल्क डोनेशन (Human Milk Donation) बैंक बना रखा है, जिसमें स्वस्थ मां अपना दूध दान करती हैं। फिर हम इस दूध को पाश्चराइज्ड करवा कर रखते हैं और बिन मांओं के बच्चों और कोरोना पॉजिटिव शिशुओं को दूध देते हैं। इसके अलावा कुछ बच्चे जो फॉर्मूला मिल्क पचा पाते हैं उन्हें ये इसके विकल्प के रूप में देते हैं।
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पीरियड्स में पीपीई किट में काम करना कितना मुश्किल
उर्मिला बताती हैं कि कि पीपीई किट (ppe kit) में काम करना धूप में काम करने के बराबर है। इसमें इतनी गर्मी और सफोकेशन होती है कि कई बार उल्टी आने लगती है। पर सबसे मुश्किल तब होता है, जब आप पीरियड्स में पीपीई किट पहन कर काम कर रही हों। इन दौरान दर्द और पीरिड्स क्रैंप्स के बीच इतना भारी-भरकम पीपीई किट पहन कर खड़े होने में भी रोना आता है। पर क्या करें, स्थिति ही ऐसी ही। यही हमारी ड्यूटी है और हमारे पास पीपीई किट (ppe kit) पहन कर काम करने के अलावा कोई और उपाय भी नहीं है।
पर्सनल प्रोटेक्शन के लिए क्या करती हैं उर्मिला?
उर्मिला बताती हैं कि हमारी पूरी कोशिश रहती है कि हम अपनी सुरक्षा के साथ आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। पर सबसे ज्यादा ध्यान हमारा खुद के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर होता है। इसके लिए हम
- -डाइट में हाई प्रोटीन डाइट और इम्यूनिटी बूस्टर चीजों का सेवन करते हैं।
- -एक्सरसाइज करते हैं और मन को शांत रखने के लिए योग करते हैं।
- - घर से बाहर निकलते समय डबल मास्क लगाते हैं
- -गॉगल्स लगाते हैं
- -हाथों को बार-बार सैनिटाइज करते हैं
- -आम पब्लिक से दूरी बनाए रखते हुए हॉस्पिटल जाते हैं।
- -इसके बाद ऑफिस से आने के बाद भी हम सबसे पहने आ कर सामान घर के बाहर छोड़ देते हैं।
- -फिर सीधे बाथरूम जाते हैं और अच्छे से नहाने और कपड़े धुलने के बाद बाकी चीजों को सैनिटाइज करते हैं।
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कोरोना टेस्ट जरूर करवाएं, ताकि आप प्लाज्मा डोनेट कर सकें
जब हम उर्मिला से आम लोगों के लिए कोई सुझाव मांगते हैं तो कहती हैं कोरोना के लक्षण दिखते ही उसे हल्के में न लें और सबसे पहले अपना कोरोना टेस्ट करवाएं। इसस आप भी जल्दी सही इलाज पा सेकेंगे और दूसरों में भी इसे फैलाने से बचा पाएंगे। इसके अलावा कोरोना टेस्ट इसलिए भी जरूरी है ताकि आप कोरोना से ठीक होने के बाद दूसरों की जान बचाने के लिए प्लाज्मा डोनेट (plasma therapy for Covid-19) कर सकें। भारत में अभी तक यही देखा जा रहा है कि कोरोना से ठीक होने वालों की संख्या तो ज्यादा है पर लोग प्लाज्मा डोनेट नहीं कर रहें। तो, कोरोना से ठीक होने के बाद प्लाज्मा जरूर डोनेट करें।
इस तरह नर्सिंग ऑफिसर उर्मिला हर दिन कोरोना पॉजिटिव मां और शिशुओं का ध्यान रखती हैं। तो, उर्मिला की तरह ही दुनिया भर में काम कर रहीं हर नर्स को, उनके इस निस्वार्थ जज्बे को और सेवा को हमारा सलाम।
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