डीआरडीओ की बड़ी कामयाबी, स्वास्थ्यकर्मियों को बचाने के लिए बनाया सैंपल कलेक्शन करने वाला ऑटोमेटिक Kiosk

Kiosk (COVSACK) के कारण अब कोरोना से पीड़ित मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर और नर्स सैम्पल लेते वक्त मरीज के संपर्क में नहीं आएंगे।
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डीआरडीओ की बड़ी कामयाबी, स्वास्थ्यकर्मियों को बचाने के लिए बनाया सैंपल कलेक्शन करने वाला ऑटोमेटिक Kiosk


कोरोनावायरस का कहर देश और दुनिया में जारी है। ताजा आकड़ों की बात करें, तो कोरोनावायरस अब तक 185 देशों में फैल चुका है और दुनियाभर में कुल 19,30,506 मामलों की पुष्टि हो चुकी है और 1,20,455 की मौत हो चुकी है। वहीं भारत में 10,815 मामलों की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें 353 मौत शामिल है और सक्रिय मामलों की संख्या 9,272 है तो 1,190 लोगों को इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई है। पर इस चिंता और दुख के बीच कुछ ऐसी भी खबरें आती हैं, जो इस बीमारी से लड़ने में आशा की किरण की तरह हैं। जैसे कि डीआरडीओ की एक बड़ी कामयाब डिवाइस 'सैंपल कलेक्शन करने वाला Kiosk (COVSACK)।''दरअसल कोरोनोवायरस महामारी के खिलाफ चल रहे प्रयासों, में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने वैज्ञानिक प्रयासों का उपयोग उत्पादों को त्वरित रूप से विकसित करने के लिए लगातार कर रही है। ऐसे में डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंज डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) ने सैंपल कलेक्शन कियोस्क बनाया है। यह देश मे पहली बार बना एक ऐसा कियोस्क है, जहां स्वास्थ्यकर्मी बिना पीपीई यानी किट के भी कोरोना संदिग्धों का सैम्पल ले सकते हैं।

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बता दें कि डीआरडीओ प्रयोगशालाएं विशेष फेस मास्क और व्यक्तिगत सैनिटेशन चैंबर्स के वॉल्यूम उत्पादन के लिए उद्योग भागीदारों के साथ काम कर रही हैं। वहीं अब स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना से बचाने के लिए डीआरडीओ को यह एक बड़ी कामयाबी मिली है। दरअसल COVID-19 वायरस अधिकतर कोरोना संक्रमित मरीजों के संपर्क में आने की वजह से फैलता है। जब कभी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में कोई भी आदमी आता है तो वह भी कोरोना से पीड़ित हो जाता है। ऐसे में स्वास्थ्यकर्मी जो मरीज का इलाज या फिर देखभाल कर रहे होते हैं वे सबसे ज्यादा कोरोना से प्रभावित होते हैं।

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सैंपल कलेक्शन करने वाला Kiosk (COVSACK) कैसे करता है काम ?

Kiosk (COVSACK) को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे मानव निर्मित हस्तक्षेप के बिना स्वचालित रूप से डिसइन्फेक्ट किया जा सकता है, यानी ये ऑटोमेटिक है। इसकी अंतर्निर्मित सुविधाओं की मदद से बिना किसी इंसानी मदद से ये चलता रहेगा। इसके अलावा नमूने लेते समय चिकित्साकर्मियों को पीपीई पहनने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। ये चेंबर ऐसे बनाया गया है कि स्वास्थ्यकर्मी बाहर से संदिग्ध मरीज का सैम्पल ले सकते हैं। इसमें मरीज चेम्बर के अंदर जाता है और स्वास्थ्य कर्मी बाहर रहता है। साथ ही इसमें मरीज से बात करने के लिये कॉम्युनिकेशन सिस्टम बनाया गया है। इसकी शील्ड स्क्रीन मरीज के ऐरो सोलोस से स्वास्थ्यकर्मी को बचाती है जब वो सैम्पल ले रहे होते हैं। साथ ही आटोमेटिक तौर पर कियोस्क में ही बने सप्रयर्स और यूवी लाइट की मदद से सेनेटाइज हो जाता है। इनमें डिसइन्फेक्ट घोल और पानी का छिड़काव करने वाले इन-बिल्ट स्प्रेर्स की मदद से इसे स्वचालित रूप से डिसइन्फेक्ट किया जा सकता है। इसके बाद यूवी लाइट के माध्यम से कीटाणुशोधन किया जाता है। इसमे हर दो मिनट के बाद एक मरीज का सैम्पल लिया जा सकता है। इसका इस्तेमाल कोरोना के लिये बने अस्पताल में शुरू हो चुका है।

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वहीं डीआरडीओ का इस पर कहना है कि “यह कियोस्क स्वास्थ्य कर्मियों को उन रोगियों से नमूने एकत्र करने में मदद करेगा जो संभवतः संक्रमित हो सकते हैं। नमूने व्यक्तिगत स्वास्थ्य उपकरण (पीपीई) किट पहने बिना भी स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा एकत्र किए जा सकते हैं।” गौरतलब है कि COVSACK की लागत लगभग एक लाख रुपये है। डीआरडीओ ने दो इकाइयों को डिजाइन और विकसित किया है और सफल परीक्षण के बाद इन्हें ईएसआईसी अस्पताल, हैदराबाद को सौंप दिया है।

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