आज के समय में खराब लाइफस्टाइल, असंतुलित खानपान और लंबे वर्किंग ऑवर्स का असर लोगों के स्वास्थ्य पर साफ दिखने लगा है और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं पर पड़ रहा है। खासतौर पर प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए आज का कॉर्पोरेट कल्चर और काम का दबाव एक चुनौती बन चुका है। बीते कुछ वर्षों में महिलाओं की प्रोफेशनल भागीदारी बढ़ी है और इसके साथ ही नाइट शिफ्ट में काम करने का चलन भी तेजी से बढ़ा है, विशेषकर हेल्थकेयर, बीपीओ, सिक्योरिटी और एविएशन जैसे क्षेत्रों में। इन्हीं बदलावों के बीच एक अहम सवाल लगातार सामने आता है कि क्या नाइट शिफ्ट में काम करने से गर्भपात (मिसकैरेज) का खतरा बढ़ता है? यह सवाल इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान हार्मोनल बैलेंस, नींद और मानसिक स्थिति सीधे तौर पर मां और भ्रूण की सेहत को प्रभावित करते हैं।
इस लेख में हम दिल्ली के आनंद निकेतन में स्थित गायनिका: एवरी वुमन मैटर क्लीनिक की सीनियर कंसल्टेंट, ऑब्सटेट्रिक्स और गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. (कर्नल) गुंजन मल्होत्रा सरीन (Dr. (Col.) Gunjan Malhotra Sareen, Senior Consultant, Obstetrics and Gynecologist, Gynecology: Every Woman Matters Clinic, located in Anand Niketan, Delhi) से विस्तार से समझेंगे कि नाइट शिफ्ट का प्रेग्नेंसी पर क्या प्रभाव पड़ता है।
क्या नाइट शिफ्ट में काम करने से गर्भपात का खतरा बढ़ता है? - Does Working Night Shift Increase Risk Of Miscarriage
जब हम रात को जागते हैं और दिन में सोते हैं तो यह शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक (Circadian Rhythm) को प्रभावित करता है। इस रिद्म का सीधा संबंध शरीर में हार्मोन के उत्पादन से होता है। प्रेग्नेंसी में प्रोजेस्ट्रोन और एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन भ्रूण को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं। नाइट शिफ्ट के कारण इन हार्मोन का स्तर असामान्य हो सकता है, जिससे गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा, नींद की कमी और थकावट गर्भाशय में ब्लड फ्लो को भी प्रभावित कर सकती है जिससे भ्रूण को पोषण मिलने में बाधा आती है।
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NCBI की स्टडी क्या कहती है
NCBI की स्टडी में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि हफ्ते में सिर्फ दो नाइट शिफ्ट करने से भी गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है। अध्ययन के अनुसार, रात की शिफ्ट में काम करने से शरीर में जैविक और हार्मोनल परिवर्तन होते हैं जो गर्भधारण को प्रभावित कर सकते हैं। यह अध्ययन बड़ी संख्या में नर्सों और हेल्थ वर्कर्स पर किया गया था, जो नियमित रूप से नाइट शिफ्ट में काम करती थीं। जिन महिलाओं ने गर्भावस्था के पहले 20 हफ्तों में नाइट शिफ्ट की थी, उनमें मिसकैरेज का जोखिम 30% अधिक पाया गया।
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नाइट शिफ्ट में काम करने के नुकसान
- प्रेग्नेंट महिलाओं को 8–10 घंटे की नींद की जरूरत होती है, लेकिन नाइट शिफ्ट में यह संतुलन नहीं बन पाता।
- अनियमित दिनचर्या मानसिक तनाव बढ़ा सकती है, जिससे हार्मोन गड़बड़ाते हैं।
- रात में जागने से मेटाबॉलिज्म धीमा हो सकता है, जिससे थकान, कब्ज और पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
- हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत प्रेग्नेंसी के दौरान खतरे को और बढ़ा सकती है।
बचाव के तरीके
यदि गर्भवती महिला को नाइट शिफ्ट करनी ही पड़ रही है तो नीचे दिए गए उपाय अपनाने से मिसकैरेज के जोखिम को कम किया जा सकता है-
- डॉक्टर से सलाह जरूर लें और अपनी कार्यशैली के बारे में नियमित रूप से डॉक्टर को बताएं।
- नींद का संतुलन बनाएं, दिन में गहरी नींद लें और नींद के लिए शांत वातावरण बनाएं।
- पोषण पर ध्यान दें और आयरन, फोलिक एसिड और प्रोटीन युक्त डाइट लें।
- तनाव न लें और इसके लिए ध्यान, योग और प्राणायाम से तनाव को कम करें।
- वर्कलोड कम रखें और नाइट शिफ्ट के दौरान रेस्ट ब्रेक जरूर लें।
- आरामदायक पोजिशन में बैठें और काम करें।
निष्कर्ष
प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए नाइट शिफ्ट करना जोखिम भरा हो सकता है, खासकर यदि यह नियमित रूप से किया जाए। NCBI की रिसर्च यह साबित करती है कि हफ्ते में सिर्फ दो बार नाइट शिफ्ट करना भी मिसकैरेज का खतरा बढ़ा सकता है। ऐसे में जरूरी है कि महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान अपनी सेहत को प्राथमिकता दें और डॉक्टर से लगातार संपर्क में रहें। यदि संभव हो तो ड्यूटी बदलवाएं या वर्क फ्रॉम होम का विकल्प लें।
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FAQ
प्रेग्नेंसी में क्या खाएं?
प्रेग्नेंसी के दौरान संतुलित और पोषक डाइट लेना बेहद जरूरी होता है ताकि मां और बच्चे दोनों की सेहत अच्छी बनी रहे। इस दौरान आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन, फोलिक एसिड और विटामिन से भरपूर चीजें खानी चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, दूध और दही, दालें, सूखे मेवे, अंडे और साबुत अनाज लाभकारी होते हैं। दिनभर पानी पीते रहना भी जरूरी है। जंक फूड, अधिक नमक और मसाले से परहेज करें। डॉक्टर की सलाह के अनुसार प्रेग्नेंसी सप्लीमेंट्स भी समय पर लेना चाहिए।नाइट शिफ्ट में काम करने के क्या नुकसान हैं?
नाइट शिफ्ट में लंबे समय तक काम करने से शरीर की प्राकृतिक नींद-जागने की प्रक्रिया (सर्केडियन रिद्म) बिगड़ जाती है, जिससे नींद की कमी, थकान, तनाव और चिड़चिड़ाहेल्दी प्रेग्नेंसी के क्या लक्षण हैं?
हेल्दी प्रेग्नेंसी के दौरान मां और शिशु दोनों की सेहत बेहतर बनी रहती है। इसके सामान्य लक्षणों में समय पर भ्रूण की ग्रोथ होना, मॉर्निंग सिकनेस का संतुलित रूप से आना, सामान्य वजन बढ़ना (लगभग 10–15 किलो), ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर का सामान्य रहना और मां को ज्यादा थकान या कमजोरी महसूस न होना शामिल है। भ्रूण की मूवमेंट सही समय पर महसूस होना और मां की स्किन में चमक (प्रेग्नेंसी ग्लो) भी अच्छे संकेत हैं।