आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में खराब लाइफस्टाइल, अनियमित खानपान, मानसिक तनाव और बुरी आदतें हमारे स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं। खासकर शहरों में वायु प्रदूषण, नींद की कमी, तली-भुनी चीजों का ज्यादा सेवन और फिजिकल एक्टिविटी की कमी ने गंभीर बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ा दिया है। इन्हीं बीमारियों में से एक है लंग कैंसर, जो आज के समय में एक जानलेवा रोग बन चुका है। लंग कैंसर यानी फेफड़ों का कैंसर को लेकर सबसे आम धारणा यह है कि यह बीमारी केवल धूम्रपान करने वालों को होती है। ऐसे में लोगों का सवाल होता है कि क्या वायु प्रदूषण, पैसिव स्मोकिंग, इनडोर स्मोक और आनुवंशिक कारण भी लंग कैंसर की वजह बन सकते हैं? इस लेख में हम नोएडा के फोर्टिस हॉस्पिटल के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग की एसोसिएट कंसल्टेंट डॉ. नीतू पांडे (Dr. Neetu Pandey, Associate Consultant, Radiation Oncology, Fortis Hospital, Noida) से जानेंगे, क्या सिर्फ धूम्रपान करने वालों को ही लंग कैंसर होता है?
क्या फेफड़ों का कैंसर केवल धूम्रपान करने वालों में होता है? - Does Only Smoking Cause Lung Cancer in hindi
डॉ. नीतू पांडे बताती हैं कि यह सही है कि लंग कैंसर के अधिकांश मामलों में धूम्रपान एक प्रमुख कारण होता है। तंबाकू के धुएं में 7,000 से ज्यादा केमिकल पाए जाते हैं, जिनमें से कई कार्सिनोजेनिक यानी कैंसर पैदा करने वाले होते हैं। लेकिन केवल इसी वजह से कैंसर हो, यह कहना सही नहीं है। कई बार लंग कैंसर उन लोगों में भी पाया जाता है जिन्होंने कभी तंबाकू या सिगरेट को छुआ तक नहीं। ऐसे लोग जो कभी धूम्रपान नहीं करते थे, वे भी लंग कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। डॉ. पांडे के अनुसार, भारत में लंग कैंसर के करीब 20 से 30 प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया। यह आंकड़ा चौंकाने वाला जरूर है लेकिन यह सच्चाई है।
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1. वायु प्रदूषण
आजकल हमारे शहरों की हवा इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि यह भी लंग कैंसर का एक बड़ा कारण बन गई है। PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों में जाकर सेल्स को नुकसान पहुंचाते हैं। डॉ. नीतू बताती हैं कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से भी लंग कैंसर का खतरा उतना ही बढ़ जाता है जितना कि हल्के धूम्रपान से होता है।
2. इनडोर प्रदूषण
केवल बाहर की हवा ही नहीं, घर के अंदर का प्रदूषण भी लंग कैंसर की एक बड़ी वजह बन चुका है। खासकर ग्रामीण या छोटे कस्बों में जहां अब भी लकड़ी, कोयला जैसे ईंधनों का इस्तेमाल खाना पकाने के लिए किया जाता है, वहां निकलने वाला धुआं फेफड़ों के लिए बेहद हानिकारक होता है। डॉ. पांडे इस बात पर जोर देती हैं कि रसोईघर में वेंटिलेशन की कमी और लंबे समय तक धुएं के संपर्क में रहना भी लंग कैंसर का कारण बन सकता है।
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3. पैसिव स्मोकिंग
ऐसे बहुत से लोग होते हैं जो खुद सिगरेट नहीं पीते, लेकिन धूम्रपान करने वालों के संपर्क में रहते हैं। इसे ही पैसिव स्मोकिंग या सेकंड हैंड स्मोक कहते हैं। डॉ. नीतू कहती हैं कि ऐसे लोगों में भी लंग कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है। अगर कोई व्यक्ति रोज अपने घर, ऑफिस या सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने वालों के बीच रहता है तो वह भी उसी खतरे में होता है जैसे एक एक्टिव स्मोकर।
4. आनुवंशिक कारण और जीन म्यूटेशन
लंग कैंसर जेनेटिक कारणों से भी हो सकता है। अगर परिवार में किसी को यह बीमारी रही हो, तो अगली पीढ़ी को भी यह हो सकती है, भले ही उन्होंने धूम्रपान न किया हो।
डॉ. नीतू पांडे यह भी बताती हैं कि लंग कैंसर के शुरुआती लक्षण बेहद सामान्य होते हैं जैसे, लगातार खांसी, सीने में दर्द, सांस फूलना, वजन कम होना या बार-बार फेफड़ों में इंफेक्शन होना। लोग अक्सर इन लक्षणों को आम फ्लू या खांसी समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे कैंसर का पता देर से चलता है। ऐसे में समय पर जांच और सतर्कता बहुत जरूरी है।
निष्कर्ष
डॉ. नीतू पांडे के अनुसार यह बेहद जरूरी है कि हम धूम्रपान से दूरी बनाए रखें, लेकिन साथ ही अन्य कारकों को भी गंभीरता से लें। वायु प्रदूषण, इनडोर स्मोक, पैसिव स्मोकिंग और आनुवंशिक कारण भी लंग कैंसर के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। जागरूकता ही बचाव का सबसे बड़ा तरीका है।
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