दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल ने 19 महीने के एक कान्हा तिवारी को हेपेटोब्लास्टोमा के साथ जीवन दिया है। कान्हा में बहुत ही कम खतरे के साथ लिवर कैंसर का पता चला था, जो शिशुओं और बच्चों में होते हैं। इस तरह के ट्यूमर से लिवर के बाहर कैंसर (Cancer) फैलने का खतरा काफी ज्यादा होता है। अस्पताल में डॉक्टरों की टीम और प्रो. सुभाष गुप्ता, अध्यक्ष- सेंटर फॉर लिवर एंड बिलीरी साइंसेज के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने ट्यूमर को बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की।
लखनऊ और गोरखपुर के बीच छोटे से शहर में रहने वाले परिवार को पहले से ही अपने लाड़ले बेटे की बिगड़ती हालत ने परेशान किया था, जब एक स्थानीय अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें बेअसर इलाज देने का काम किया था। जिसके बाद मैक्स हेल्थकेयर के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ शरत वर्मा से संपर्क किया और बच्चे को तुरंत दिल्ली आने के लिए कहा गया, क्योंकि बच्चे के शरीर में मौजूद ट्यूमर पहले ही फेफड़ों में फैल चुका था।
कीमोथैरेपी से किया रोग पर नियंत्रण
दिल्ली पहुंचने के बाद डॉक्टरों की टीन ने बच्चे के शारीरिक जांच के बाद ट्यूमर को शरीर के बाकि हिस्से में फैलने से रोकने के लिए तुरंत कीमोथेरेपी पर रखा गया। जिसके बाद 25 मार्च 2020 को लॉकडाउन का एलान कर दिया गया, जिससे परिवार के लिए स्थिति और भी परेशानी वाली हो गई। इस दौरान बच्चे की स्थिति काफी खतरनाक हो गई थी, क्योंकि डॉक्टर की ओर से कीमोथेरेपी बंद हो गई थी और ट्यूमर फिर से फैल सकता था। इन कारणों की वजह से सर्जरी एक विकल्प नहीं बल्कि एक आपात स्थिति बन गई थी।
इसलिए, मैक्स हेल्थकेयर को लीवर ट्रांसप्लांट ऑथराइजेशन कमेटी से लीवर ट्रांसप्लांट को जीवन-रक्षक प्रक्रिया के रूप में संचालित करने के लिए मंजूरी मिल गई। कान्हा कि 12 घंटे की प्रत्यारोपण सर्जरी 22 अप्रैल 2020 को सफलतापूर्वक पूरी की गई और कान्हा को तीन सप्ताह के बाद सर्जरी के बाद छुट्टी दे दी गई।
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लिवर ट्रांसप्लांट कर बचाई जान
मामले पर मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के प्रोफेसर डॉ. सुभाष गुप्ता, अध्यक्ष - लिवर एंड बाईलरी साइंसेज सेंटर (Professor Dr. Subhash Gupta, President-Liver and Binary Sciences Center) कहते हैं कि "यह विशेष मामला कई पहलुओं से एक चुनौतीपूर्ण था: जैसे मेडिकल रूप से, ट्रांसप्लांट के लिए समय सही था क्योंकि ट्यूमर बड़ी मुश्किल से नियंत्रण में किया गया था, भले ही यह फेफड़ों तक फैल गया था, सामाजिक रूप से और यह लॉकडॉक के बीच में सही था, मनोवैज्ञानिक रूप से।
वहीं, दूसरी ओर डॉ. शरत वर्मा जो प्रिंसिपल कंसल्टेंट - पीडियाट्रिक हेपेटोलॉजी, लीवर ट्रांसप्लांट एंड गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी (Dr. Sharat Verma, Principal Consultant - Pediatric Hepatology, Liver Transplant & Gastroenterology) है, उनका कहना है कि हेपेटोब्लास्टोमा, एक असामान्य कैंसर का जीवन के पहले तीन सालों में सबसे ज्यादा निदान किया जाता है। इसके लक्षण काफी सामान्य होते हैं जैसे: पेट में सूजन, पेट में दर्द होना और, भूख न लगना, लगातार वजन कम होना आदि। डॉ. शरत ने बताया कि ये सभी लक्षण कान्हा में भी थे।
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पूरी तरह स्वस्थ है कान्हा
आपको बता दें कि कान्हा अब अच्छे हैं और पूरी तरह से स्वस्थ हैं। इसके साथ ही वो घर पर खेलने और सीखने की अपनी सामान्य दिनचर्या में वापस चले गए हैं। वहीं, पीड़ित परिवार मई के अंत तक घर वापस आने की योजना बना रहा है।
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