Danti Mool Benefits Uses : भारत में आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल सदियों से किया जा रहा है। अश्वदगंधा, सफेद मूसली और भी कई औषधियां हैं, जिनका सेवन लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों से राहत पाने के लिए करते हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण औषधि है "दंती मूल", जिसे आयुर्वेद में 'तीव्र विरेचक' (strong purgative) यानी तेज गति से मल साफ करने वाली औषधि के रूप में जाना जाता है। दंती मूल सिर्फ पेट साफ नहीं करता है, बल्कि अन्य बीमारियों में भी किया जाता है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताने जा रहे हैं आयुर्वेद के अनुसार, दंती मूल जड़ी-बूटी के फायदे, नुकसान और सेवन का तरीके के बारे में।
दंती मूल क्या है?
रिसर्च गेट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, दंती मूल एक झाड़ीदार पौधा होता है जिसकी जड़ यानि की मूल को आयुर्वेद में औषधीय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। दंती मूल का इस्तेमाल मुख्य रूप से भारत और नेपाल जैसे देशों में आयुर्वेदिक एक्सपर्ट द्वारा किया जाता है।
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दंती मूल का सेवन करने के फायदे- Health Benefits of Danti Mool
आयुर्वेदाचार्य श्रेय शर्मा के अनुसार, दंती मूल को मुख्य रूप से विरेचन चिकित्सा (Purgation therapy) के लिए उपयोग किया जाता है। विरेचन प्रक्रिया के दौरान दंती मूल का सेवन 1 से 2 दिन करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा भी दंती मूल कई प्रकार से स्वास्थ्य को फायदा पहुंचता है।
1. कब्ज करें दूर
आयुर्वेदाचार्य का कहना है कि दंती मूल में तीव्र विरेचक गुण होते हैं जो आंतों को साफ कर देते हैं। पुराने कब्ज की समस्या से परेशान लोग अगर दंती मूल का सेवन करें, तो इससे पेट सही तरीके से साफ हो जाता है और कब्ज की परेशानी दूर होती है।
2. स्किन प्रॉब्लम करें दूर
दंती मूल में ब्लड प्यूरीफेक्शन के गुण होते हैं। दंती मूल का सेवन एक सीमित मात्रा में किया जाए, तो ये स्किन प्रॉब्लम जैसे फोड़े-फुंसी, एक्जिमा, खुजली, और सोरायसिस को दूर कर सकता है। इतना ही नहीं, पिंपल्स और एक्ने की परेशानी को भी दूर करने में दंती मूल फायदेमंद होता है।
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3. सर्दी-खांसी में फायदेमंद
दंती मूल के पोषक तत्व शरीर में कफ और वात दोष को संतुलित करते हैं। बदलते मौसम में जिन लोगों को अक्सर सर्दी, खांसी और जुकाम की परेशानी होती है, वो अगर दंती मूल का सेवन करें, तो उन्हें इसका फायदा मिल सकता है। दंती मूल के तत्व शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत बनाकर संक्रामित बीमारियों का भी खतरा कम करते हैं।
4. बवासीर में लाभकारी
दंती मूल का प्रयोग बवासीर में मल को साफ करने के लिए किया जाता है। इस जड़ी-बूटी का इस्तेमाल करने से बवासीर में होने वाले दर्द और सूजन की परेशानी दूर हो सकती है।
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5. पेट के कीड़े खत्म करें
आयुर्वेद में दंती मूल को आंतों में मौजूद कीड़ों को नष्ट करने वाली औषधि माना गया है। व्यस्कों में होने वाली पेट के कीड़ों की समस्या में अगर दंती मूल का सेवन किया जाए, तो ये इससे राहत दिलाती है। हालांकि बच्चों के पेट में कीड़ों की परेशानी में दंती मूल का सेवन किया नहीं किया जाता है।
दंती मूल के नुकसान- Side Effects of Danti Root
- दंती मूल की तासीर गर्म होती है। इसका सेवन अधिक मात्रा में करने से दस्त और पेट से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं।
- तीव्र विरेचक होने के कारण दंती मूल का सेवन करने से कुछ लोगों के शरीर में पानी की कमी हो सकती है।
- प्रेग्नेंसी के दौरान दंती मूल खाने से गर्भाशय संकुचन हो सकता है, जिससे गर्भपात का खतरा होता है।
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दंती मूल का सेवन कैसे करें?
दंती मूल की तासीर अत्यधिक गर्म होती है, इसलिए इसका सेवन बहुत ही सावधानी से करना चाहिए। आयुर्वेदाचार्य श्रेय शर्मा का कहना है कि दंती मूल का सेवन सिर्फ आयुर्वेदिक एक्सपर्ट की देखरेख में ही करना चाहिए। दंती मूल का दुष्प्रभाव तभी होता है जब इसका सेवन अधिक मात्रा में किया जाए या बिना विशेषज्ञ की सलाह के किया जाए।
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निष्कर्ष
दंती मूल एक अत्यंत शक्तिशाली और गुणकारी आयुर्वेदिक औषधि है। यह शरीर को कई प्रकार से फायदा पहुंचाती है। लेकिन इसका सेवन एक सीमित मात्रा में और आयुर्वेदाचार्य की देखरेख में ही करना चाहिए। अगर आप कब्ज या किसी भी अन्य समस्या में दंती मूल का सेवन कर रहे हैं, तो इस विषय पर एक बार डॉक्टर से बात जरूर करें।
FAQ
क्या दंती मूल बच्चों के लिए सुरक्षित है
दंती मूल तीव्र विरेचक है, इसलिए बच्चों के लिए इसका सेवन बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं माना जाता है।क्या गर्भवती महिलाएं दंती मूल का सेवन कर सकती हैं?
गर्म तासीर का होने के कारण दंती का सेवन गर्भावस्था के दौरान नहीं करने की सलाह दी जाती है। गर्भवती महिलाएं दंती मूल का सेवन करें, तो यह गर्भाशय को उत्तेजित कर सकता है और इससे गर्भपात का खतरा हो सकता है।दंती मूल को कितने समय तक लिया जा सकता है?
आयुर्वेद के अनुसार, दंती मूल एक गर्म तासीर वाली जड़ी-बूटी है। मुख्य रूप से दंती मूल का इस्तेमाल आयुर्वेदिक पद्धति विरेचन के दौरान 1 से 3 दिनों के लिए किया जाता है। लेकिन अगर आप इसका सेवन औषधियों के तौर पर करना चाहते हैं, तो एक बार आयुर्वेदिक एक्सपर्ट या आयुर्वेदाचार्य से सलाह जरूर लें।