जैसे-जैसे हम विकास कर रहे हैं, हमारे हाथों में मोबाइल, कंप्यूटर आ गया है। इससे हमारा काम आसान तो हो रहा है। साथ ही ये कई प्रकार की मुसीबतें-बीमारी भी अपने साथ लेकर आया है। आज से कुछ साल पहले तक आंखों का टेढ़ापन की समस्या काफी कम होती थी। जिसे स्क्विंट आई (Squint Eye) भी कहते हैं। वजह साफ है। मौजूदा समय में बच्चे से लेकर बड़े सभी अपना ज्यादातर समय मोबाइल, कंप्यूटर पर बीताते हैं। इस कारण उन्हें आंखों से जुड़ी समस्या होती है। बच्चों की बात करें तो कोरोनाकाल के पहले बच्चे मोबाइल पर गेम खेलकर या फिर कंप्यूटर पर गेम खेलकर अपना ज्यादातर समय बीताते थे, कोरोनाकाल में पहले से भी ज्यादा मोबाइल-टीवी, कंप्यूटर पर समय बीता रहे हैं। ऐसे में सावधानी अब और ज्यादा जरूरी हो गई है। जमशेदपुर सदर अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. विवेक केडिया बताते हैं कि तीन साल के बच्चों से लेकर बड़े उम्र के बच्चों में मोबाइल की लत है। इस कारण उनमें आंखों का तिरछापन की समस्या हो रही है। स्क्विंट को मेडिकली स्ट्राबिसमस (strabismus) कहा जाता है। इस बीमारी के होने से दोनों आंखें एक ही डायरेक्शन में नहीं देख पाती है। एक आंख सीधी तो दूसरी आंख तिरछी होती है, इसे आंखों का तिरछापन भी कहते हैं। एक आंख अंदर की तरफ तो दूसरी आंख बाहर की तरफ होती है। बीमारी से ग्रसित बच्चे या बड़े एक ही जगह पर फोकस नहीं कर पाते हैं। आधुनिकता के इस दौर में यह बीमारी बच्चों में काफी सामान्य है। यह बीमारी ठीक हो सकती है या नहीं, बीमारी से कैसे बचें, तमाम विषयों को जानने के लिए पढ़ें यह आर्टिकल।
कम उम्र में नियमित नेत्र जांच है जरूरी
आंखों का तिरछापन कम उम्र के बच्चों में ज्यादा दिखता है। संभव है कि इस बीमारी से ग्रसित बच्चे को धीरे-धीरे कर प्रभावित आंख से दिखना कम हो जाता है। इसलिए जरूरी है कि सही समय पर इसका इलाज शुरू किया जाए। वही बीमारी आगे चलकर विजन लॉस का कारण बनती है, जिसे एंब्लायोपिया (amblyopia) कहते हैं। जुगसलाई सदर अस्पताल में नेत्र रोग विशेषत्र डॉ. विवेक केडिया बताते हैं कि बच्चे हो या फिर बड़े सभी को नियमित आंखों की जांच करानी ही चाहिए। लेकिन बच्चों के केस में उन्हें हर छह महीने में आंखों की जांच करानी चाहिए। यदि न कराया गया तो उनके आंखों की रौशनी पर इसका असर पड़ सकता है। वहीं रूटीन इग्जामिनेशन में ही आंखों का तिरछापन जैसी समस्या साफ तौर पर दिखती है। कम उम्र में बीमारी का पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है। लेकिन बीमारी बढ़ जाने पर पता चले तो इसका इलाज मुश्किल है।
ऐसे किया जाता है ट्रीटमेंट
स्क्विंट ऑफ आई के दो प्रकार हैं, पहला मैनिफेस्ट स्क्विंट (Manifest squint) और दूसरा लेटेंट स्क्विंट (Latent squint)। लेटेंट स्क्विंट की बीमारी होने पर पीड़ित के आसपास रहने वाले लोग इसे समझ नहीं पाते, क्योंकि लक्षण साफ नहीं दिखता है। वहीं मैनिफेस्ट स्क्विंट होने के कारण कोई भी व्यक्ति जो इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति से बात करे उसे साफ तौर पर लक्षण दिखने लगता है। आई स्पेशलिस्ट बताते हैं कि इस बीमारी का उपचार करने के लिए जिस आंख से अच्छी तरह दिखता है उसे बंद कर जिस आंख से अच्छी तरह नहीं दिखता है उससे देखने के लिए मरीज को मजबूर किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि ब्रेन तक सिग्नल पहुंचे व बीमारी का उपचार हो। कुछ मामलों में स्क्विंट को ठीक करने के लिए करेक्टिव आई सर्जरी (corrective eye surgery) की जरूरत पड़ सकती है। यदि शुरुआती अवस्था में बीमारी का पता चल जाए तो इसका उपचार संभव है। बीमारी को कोई नजरअंदाज करे तो उम्र भर उसे इस बीमारी के साथ बीताना पड़ सकता है।
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कब होती है आंखों की यह समस्या
कुछ बच्चों में यह जन्मजात होती है तो कुछ में बाद में होती है। आज के दौर में यह बीमारी इसलिए भी ज्यादा हो रही है क्योंकि बच्चे खेल के मैदान में कम और मोबाइल-कंप्यूटर पर अपना ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। आई स्पेशलिस्ट डॉ. विवेक बताते हैं कि गांव में रहने वाले बच्चों की तुलना में शहर में रहने वाले बच्चों को यह बीमारी ज्यादा होती है। क्योंकि गांव के बच्चे खेलकूद पर ज्यादा ध्यान देते हैं, न कि अपना ज्यादातर समय शहरी बच्चों की तरह मोबाइल-कंप्यूटर पर बीताते हैं। खेल के मैदान में वो दूर-दूर तक देखते हैं, जिससे न चाहते हुए भी आंखों की एक्सरसाइज हो जाती है। लेकिन ज्यादा देर तक मोबाइल चलाने वाले बच्चों को थकान, आंखों में जलन, सूखापन, खुजली जैसी समस्याएं होती है।
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बीमारी के हैं कई प्रकार
स्क्विंट के कई प्रकार होते हैं। आंखों की पोजिशन के अनुसार के इसके अलग-अलग प्रकार हैं।
- एंक्सोट्रोपिया (Exotropia ) : बीमारी की इस अवस्था में आंखे बाहर की ओर तिरछी होती हैं।
- एसोट्रोपिया (Esotropia ) : बीमारी के इस कंडीशन में आंख अंदर की ओर तिरछी होती है।
- हायपोट्रोपिया (Hypotropia ) : इस कंडीशन में आंख नीचे की ओर तिरछी होती है।
- हाइपरट्रोपिया (Hypertropia ) : स कंडीशन में आंखें ऊपर की ओर जाती हैं।
एक्सपर्ट बताते हैं कि बीमारी का शुरुआती अवस्था में पता चल जाए तो इलाज संभव है। लेकिन एक समय तक इस बीमारी को नजरअंदाज किया जाए तो इसका इलाज संभव नहीं है। इसलिए बच्चों की नियमित आंखों की जांच करानी चाहिए। छह साल की उम्र तक बीमारी का इलाज संभव है।
क्या-क्या दिखते हैं लक्षण
आंखों का तिरछापन की समस्या में बीमारी होने के बाद शुरुआती अवस्था में ही इसका पता चल जाता है। दोनों ही आंखों में से एक आंख सामान्य की तरह नहीं होती है बल्कि तिरछी होती है। आंखों का तिरछापन यदि कम हो तो उसे हमारे आसपास के लोग नहीं समझ पाते हैं। नवजात शिशु में आपने यह देखा होगा कि जब वो थके होते हैं तो अपनी आंखों को अक्सर क्रॉस कर लेते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें स्क्विंट (आंखों के तिरछापन) की समस्या है। यदि आपको किसी प्रकार का संदेह हो तो डॉक्टरी सलाह लेना उचित होता है। डॉक्टर इस बीमारी का पता लगाने के लिए एक आंख को बंद कर दूसरी आंख की जांच करते हैं और बीमारी का पता लगाने की कोशिश करते हैं।
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