Common Eye Problems In Children and How To Prevent Them: 14 नवंबर को भारत में बाल दिवस (Children's Day Celebrations 2024) मनाया जाता है। बाल दिवस के मौके पर स्कूल, कॉलेज और विभिन्न संस्थानों द्वारा कई प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। बाल दिवस का मौका है, तो सबसे पहले उनके स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है। बच्चों के स्वास्थ्य के लिए जितना पोषण जरूरी है, उतना ही जरूरी है विजन यानी की आंखें।
स्क्रीन टाइम, डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल करने और खाने में पोषक तत्वों की कमी के कारण आजकल छोटे-छोटे बच्चों को आंखों से जुड़ी समस्याएं हो रही हैं। यह समस्या खासकर छोटे बच्चों में चिंताजनक बन रही है, क्योंकि कम उम्र में ही आंखों पर अत्यधिक दबाव बच्चों के देखने की क्षमता पर असर डाल सकता है। बाल दिवस के खास मौके पर श्री वेंकटेश नेत्र संस्थान के विट्रो रेटिना विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण पाटिल (Dr Pravin Patil, Vitreo Retina Specialist, Shri Venkatesh Eye Institute) से जानते हैं बच्चों को कम उम्र में आंखों की समस्या से बचाने के लिए पेरेंट्स को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
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बच्चों को क्यों हो रही है आंखों से जुड़ी समस्याएं?- Why are children facing eye related problems?
डॉ. प्रवीण पाटिल के अनुसार, आजकल बच्चे मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप और टीवी स्क्रीन पर अपने दिन का एक तिहाई से ज्यादा समय बिताते हैं। इन डिजिटल स्क्रीन से ब्लू लाइट निकलती है, जो बच्चों की आंखों को नुकसान पहुंचाती है। स्क्रीन पर समय बिताने के कारण बच्चों की आंखों में थकान, ड्राइनेस और जलन जैसी समस्याएं होती हैं। इसके अलावा लंबे समय तक स्क्रीन देखने से बच्चों में मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) का खतरा भी बढ़ जाता है। डॉक्टर का कहना है कि समय रहते यदि बच्चे की आंखों से जुड़ी समस्या पर ध्यान न दिया जाए, तो यह उनके स्कूल परफॉर्मेंस और कॉन्फिडेंस पर असर पड़ता है।
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बच्चों में आंखों से जुड़ी समस्याओं के लक्षण- Symptoms of eye problems in children
आपके बच्चे को आंखों से जुड़ी समस्याएं हैं या नहीं, इस आप नीचे बताए गए लक्षणों से पहचान सकते हैंः
1. सिरदर्द और आंखों में तनाव: बार-बार सिरदर्द होना, पढ़ते या टीवी देखते समय असुविधा होना आंखों से जुड़ी समस्याओं का संकेत हो सकता है। इसके कारण बच्चे आंखें सिकोड़ सकते हैं, ज्यादा पलकें झपका सकते हैं।
2. पढ़ने या लिखने में कठिनाई: अगर कोई बच्चा पढ़ने में रुचि नहीं लेता है या लिखने में संघर्ष करता है, तो यह मायोपिया जैसी किसी आंखों की बीमारी का संकेत हो सकता है। यह ध्यान केंद्रित करने की समस्या का भी संकेत हो सकता है, जहां पढ़ते समय बच्चे की आंखें टेक्स्ट को स्पष्ट नहीं देख पाती है।
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3. शारीरिक गतिविधियों से दूरी बनाना: आंखों की परेशानी से जूझ रहे बच्चे अक्सर खेलने, बाहर जाने, दोस्त बनाने से दूरी बनाते हैं। उदाहरण के लिए बच्चा बास्केटबॉल या टेनिस जैसे फोकस बनाने वाले गेम्स खेलने से दूरी बनाता है, तो यह आंखों से जुड़ी परेशानी का संकेत हो सकता है।
4. आंखों को बहुत अधिक रगड़ना: खासकर जब थका हुआ न हो, तो यह आंखों की थकान या सूखी आंखों या एलर्जी का पहला संकेत है।
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5. पोषण की कमी : आंखों के लिए विटामिन A, C, E, ओमेगा-3 फैटी एसिड, और जिंक जैसे पोषक तत्व जरूरी होते हैं। यदि बच्चों के आहार में इन पोषक तत्वों की कमी हो, तो उनकी आंखों की सेहत पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। पोषण की कमी से आंखों की रोशनी कमजोर हो सकती है और बच्चे को देखने व फोकस बनाने में परेशानी हो सकती है।
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बच्चों की आंखों से जुड़ी समस्या पर पेरेंट्स को किन बातों पर गौर करना चाहिए?
- नेत्र विशेषज्ञ का कहना है कि माता-पिता आंखों की समस्याओं का पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बच्चों की आदतों का निरीक्षण करना, पढ़ते समय या होमवर्क करते समय उन्हें कैसा महसूस होता है, इस बारे में उनसे बात करें।
- अगर बच्चा बार-बार आंखों में खुजली कर रहा है, तो उससे पूछे कि क्या उसे पढ़ने में या कोई चीज देखने में परेशानी हो रही है।
- बच्चों को आंखों से जुड़ी समस्या है या नहीं इसके लिए नियमित रूप से उनकी आंखों की जांच करवाएं। डॉक्टर के अनुसार, बच्चों को हर 6 महीने में एक बार विजन टेस्ट करवाना चाहिए। विजन टेस्ट करवाने से बच्चों को भविष्य में होने वाली आंखों से जुड़ी समस्या से बचा जा सकता है।
- यदि कोई बच्चा पढ़ने से परहेज करता है, बॉल गेम खेलने में संघर्ष करता है या अक्सर सिरदर्द की शिकायत करता है, तो इस विषय पर डॉक्टर से बात करें।
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बच्चों को कम उम्र में आंखों से जुड़ी समस्याएं न हो इसके लिए स्क्रीन टाइम को कम करें। नवजात शिशुओं को मोबाइल पर वीडियो कॉल पर बात करवाने से परहेज करें।