सीने में संक्रमण सांस संबंधी संक्रमण है। सीने में हृदय, फेफड़े आदि होते हैं। फेफड़ों में इंफेक्शन के लिए ही चेस्ट इंफेक्शन शब्द का प्रयोग किया जाता है। फेफड़ों में कोई भी सूक्ष्म जीवाणुओं का संक्रमण होता है उसी को चेस्ट इंफेक्शन कहा जाता है। आरवीटीबी हॉस्पिटल (Rajan Babu Institute of Pulmonary Medicine and Tuberculosis) में मेडिकल ऑफिसर डॉ. अनुराग शर्मा (MBBS) का कहना है कि आम जनता जिसे छाती में इंफेक्शन कहती है वह किसी डॉक्टर के लिए फेफड़ों का इंफेक्शन होता है। चेस्ट इंफेक्शन और फेफड़ों में इंफेक्शन एक-दूसरे के पर्याय हैं। इनमें थोड़ा सा अंतर है। सीने में संक्रमण निमोनिया और ब्रोंकाइटिस दो प्रकार का हो सकता है। यह बच्चों या बड़ों किसी में भी हो सकता है। यह साल के किसी भी समय में हो सकता है। डॉ. अनुराग शर्मा से हमने जाना कि सीने में संक्रमण किन कारणों से होता है और इससे कैसे बचा जाए।
सीने में संक्रमण के लक्षण
- तेज या कम बुखार
- खांसी
- जुकाम
- चेस्ट में दर्द
- बलगम का बढ़ना
- सांस फूलना
- घबराहट
- लो ब्लड प्रेशर
- भूख न लगना
- घरघराहट होना
सीने में संक्रमण के कारण
निमोनिया और ब्रोंकाइटिस दोनों ही बैक्टीरिया, वायरस से फैलने वाले रोग हैं। छाती में संक्रमण के निम्नलिखित कारण हैं-
बैक्टीरिया
कई तरह के बैक्टीरिया जैसे हिमोफिलस इंफ्लुएंजा, माइक्रोबोक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस आदि जीवाणु हैं जो छाती में इंफेक्शन करते हैं।
वायरस
जीवाणुओं की तरह कई तरह के वायरस भी हैं जो चेस्ट इंफेक्शन को बढ़ाते हैं। डॉक्टर अनुराग शर्मा ने बताया कि साइटोमेग्लोवायरस (Cytomegalovirus), कोविड-19 जैसे वायरस भी संक्रमण का कारण बनते हैं।
फंगस
फंगस से भी इंफेक्शन हो सकता है। जैसे एस्परजिलोसिस, कैंडिडा आदि फंगस की वजह से भी चेस्ट में इंफेक्शन हो सकता है। माइक्रोप्लाज्मा से भी इंफेक्शन हो सकता है।
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सीने में संक्रमण के बारे में डॉक्टर कैसे पता लगाते हैं?
डॉक्टर अनुराग शर्मा का कहना है कि सीने में संक्रमण के डायग्नोस के लिए सबसे पहले मरीज की हिस्ट्री ली जाती है। फिर मरीज का एग्जामीनेश किया जाता है। इसमें देखा जाता है कि छाती में कोई अंतर तो नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि सांस लेने पर छाती एक तरफ ज्यादा फूल रही हो और दूसरी तरफ कम फूल रही हो। परकशन विधि से देखा जाता है कि छाती से आवाज कैसी आती है। परकशन में उंगली को छाती पर लगाकर दूसरी उंगली से मारकर देखा जाता है कि आवाज कैसी आ रही है। अगर निमोनिया होता है तो वो आवाज सामान्य से बदली होती है। वह आवाज डल हो जाती है। स्टेथोस्कोप से आवाज को पहचान सकते हैं।
इसके अलावा सीवीसी की जांच कराई जाती है। तो वहीं, छाती का एक्सरे की भी कराया जाता है। इसके अलावा बलगम की जांच भी कराई जाती है जिससे टीबी का भी पता चल जाता है। और किसी और तरह का इंफेक्शन भी है तो वह भी पता चल जाता है। कई बार एक्सरे से चीजें साफ नहीं होती हैं तो सीटी-स्कैन भी कराया जाता है। कई बार ब्रोंकोस्कोपी भी करनी पड़ जाती है। दूरबीन की मदद से संक्रमण के बारे में पता किया जाता है।
सीने में संक्रमण का इलाज
- डॉक्टर अनुराग शर्मा का कहना है कि सीने में संक्रमण के इलाज के लिए पहले यह देखा जाता है कि कारण क्या है। अगर बैक्टीरियल कारण है तो एंटीबायोटिक दी जाती हैं। यह दवाएं 7 से 14 दिन तक दी जाती हैं। अगर निमोनिया का कारण टीबी है तो टीबी की दवाएं दी जाती हैं। जो 6 महीने तक चलती हैं।
- सीने में संक्रमण का कारण वायरल है तो कभी-कभी एंटीवायरल दवाएं दी जाती हैं। नहीं तो यह सपोर्टिव ट्रीटमेंट से ठीक हो जाता है।
- अगर फंगस की वजह से निमोनिया है तो एंटी-फंगल दवाएं दी जाती हैं। इस तरह के निमोनिया में ट्रीटमेंट थोड़ा लंबा चलता है। इसका इलाज 6 महीने तक चलता है।
- मरीज को अगर दर्द होता है तो उसे दर्द की दवाएं दी जाती हैं। अगर सांस फूल रही है तो उसे इनहेलर्स दिए जाते हैं। इसके अलावा बलगम निकालने के लिए दवाएं आती हैं जो मरीज को दी जा सकती हैं।
- शरीर में पानी की कमी न होने दें। आराम करें।
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सीने में संक्रमण से बचाव
इंफेक्शन से बचना मुश्किल है। लेकिन फिर भी आप बचाव कर सकते हैं। डॉक्टर अनुराग का कहना है कि आप ऐसी जगहों पर न जाएं जहां संक्रमण का खतरा ज्यादा है। दूसरे लोगों से मिलते समय मुंह को ढंक के रखें। दूसरों से दूरी बनाएं रखें। ज्यादा सर्दी होती है तो उसमें वायरल इंफेक्शन बढ़ जाते हैं तो सर्दी से खुद को बचाएं। फंगस इंफेक्शन ज्यादातर डायबिटीज के मरीजों में होता है तो अगर वे डायबिटीज को नियंत्रित रखेंगे तो उससे वे सीने में संक्रमण से बचाव कर सकते हैं।
सीने में संक्रमण कई वजहों से होता है। इससे अगर बचना है तो इसके शुरूआती लक्षणों को पहचानें। समय रहते इलाज शुरू करें।
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