Causes Of Late Term Pregnancy and Complications: प्रेग्नेंसी किसी भी महिला के जीवन के सबसे खुशी भरे पलों में से एक होता है, जो उनकी लाइफ में कई सारे बदलावों को लेकर आता है। लेकिन, प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हालही में टीवी एक्ट्रेस दृष्टि धामी ने अपनी बेटी को जन्म दिया है। एक्ट्रेस दृष्टि धामी के लिए की प्रेग्नेंसी जर्नी उनके लिए काफी दिलचस्प थी, लेकिन 9 महीने पूरे होने के बाद भी उन्हें कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा। दरअसल, एक्ट्रेस को 10वें महीने में डिलीवरी हुई, जिसका मतलबा है कि डॉक्टर द्वारा दी गई ड्यू डेट के बाद 10नें महीनें में उन्हें बेबी हुई। ऐसे में आइए दिल्ली के आनंद निकेतन में स्थित गायनिका: एवरी वुमन मैटर की सीनियर कंसल्टेंट, ऑब्सटेट्रिक्स और गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. (कर्नल) गुंजन मल्होत्रा सरीन से जानते हैं कि लेट टर्म प्रेग्नेंसी क्या होती है और इसके कारण क्या-क्या समस्याएं हो सकती हैं?
लेट टर्म प्रेग्नेंसी क्या होती है?
डिलीवरी की डेट निकलने जाने के बाद भी आपको डिलीवरी पैन नहीं होता है, तो अक्सर महिलाएं घबरा जाती हैं। प्रेग्नेंसी नॉर्मल रहने के बाद भी कई महिलाओं को 10वें महीनें में बच्चा होता है। दरअसल, डॉक्टर के द्वारा दी गई ड्यू डेट के दो हफ्तों के बाद तक भी प्रेग्नेंसी में डिलीवरी न होना पर इसे लेट टर्म प्रेग्नेंसी के रूप में देखा जाता है। आमतौर पर प्रेग्नेंसी 9 से साढ़े 9 महीने तक चलती है। लेकिन, नियत तिथि यह नहीं बताती है कि आपका बच्चा कब आएगा। नियत तिथि से पहले या बाद में बच्चे को जन्म देना आम बात है। वास्तव में, गर्भावस्था को केवल तभी "पोस्टटर्म" माना जाता है जब नियत तिथि से दो सप्ताह बाद डिलीवरी हो।
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लेट-टर्म प्रेग्नेंसी के कारण
- डिलीवरी की तारीख गलत गिनना लेट-टर्म प्रेग्नेंसी का कारण बन सकती है।
- पहली बार मां बनने वाली महिलाओं में डिलीवरी की अवधी बढ़ सकती है।
- लंबे समय तक गर्भधारण का पारिवारिक इतिहास भी लेट-टर्म प्रेग्नेंसी का कारण हो सकता है।
- हाई बॉडी मास इंडेक्स (BMI) को लंबी गर्भधारण अवधि से जोड़ा गया है, यानी मोटापा भी डिलीवरी में देरी का कारण बन सकता है।
- 35 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं में लेट-टर्म प्रेग्नेंसी का अनुभव होने की संभावना ज्यादा हो सकती है।
- जिन महिलाओं ने पहले 41 सप्ताह से अधिक समय में बच्चे को जन्म दिया है, उनकी फिर से देर से डिलीवरी होने की संभावना ज्यादा होती है।

देर से डिलीवरी होने के जोखिम
- गर्भावस्था के 41 सप्ताह से आगे बढ़ने पर डेथ बर्थ का जोखिम बढ़ जाता है।
- देरी से डिलीवरी होने पर एमनियोटिक फ्लूड में कमी हो सकती है, जो बच्चे की सेहत को प्रभावित कर सकती है और गर्भनाल के दबने का कारण बन सकती है।
- अगर बच्चा गर्भ में मेकोनियम (पहला मल) पास करता है, तो यह फेफड़ों में सांस के साथ जा सकता है, जिससे जन्म के बाद सांस से जुड़ी समस्याएं हो सकती है।
- बच्चे औसत से बड़े हो सकते हैं, जो डिलीवरी को मुश्किल बना सकते हैं और सिजेरियन सेक्शन के जोखिम को बढ़ा सकता है।
- देर से डिलीवरी होने पर महिलाओं को बच्चा होने के बाद ब्लीडिंग की समस्या बढ़ सकती है।
लेट टर्म प्रेग्नेंसी कई समस्याओं का कारण बन सकता है, इसलिए जरूरी है कि आप समय-समय पर अपनी जांच करवाएं और डॉक्टर की सलाह का पालन करें।
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