भोजन को पचाने में लिवर का अहम रोल होता है। लेकिन, कई बार खानपान की अनियमित आदतें आपके लिवर के कार्यों पर दबाव डाल सकती हैं, जिसकी वजह से लोगों को लिवर से जुड़ी समस्याएं हो सकती है। लिवर से जुड़ी समस्याओं में फैटी लिवर डिजीज को भी शामिल किया जाता है। इस समस्या में लिवर में फैट जमा हो जाता है। लिवर से जुड़ी समस्या के कारण शरीर में अन्य समस्या शुरु की संभावना बढ़ जाती है। लिवर शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकलता है, पोषक तत्वों को प्रोसेस करता है और एनर्जी को संतुलित करता है। लिवर की समस्या के कारण पोषण तत्व प्रभावित होते हैं, जो कुछ मामलों में एनीमिया की समस्या का कारण बन सकता है। इस लेख में डॉ. राजेश अग्रवाल, डायरेक्टर, नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट से जानते हैं कि क्या नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज एनीमिया कारण बन सकता है?
नॉन-एल्कोहोलिक फैटी लीवर डिजीज (NAFLD) क्या है?
NAFLD एक ऐसी स्थिति है, जिसमें लीवर की कोशिकाओं में अत्यधिक फैट जमा हो जाता है। यह समस्या अक्सर उन लोगों में देखी जाती है जो मोटापे, डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल या इंसुलिन रेसिस्टेंस से ग्रस्त होते हैं। इस समस्या के भी दो चरण होते हैं, इसमें पहले को सिंपल फैटी लिवर कहा जाता है, इस स्थिति में लिवर में फैट हो जाता है लेकिन सूजन नहीं आती है। वहीं, दूसरी स्थिति Non-alcoholic steatohepatitis (NASH) होती है। इसमें फैट के साथ लिवर में सूजन और कोशिकाओं को नुकसान होता है, जो आगे चलकर सिरोसिस में बदल सकता है।
नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) और एनीमिया के बीच संबंध - Connection Between Non Alcholic Fatty Liver And Anemia In Hindi
क्रॉनिक सूजन (Chronic Inflammation)
NAFLD कई मामलों में दूसरी स्टेज यानी जब NASH में बदलता है, तो शरीर में क्रॉनिक इंफ्लेमेशन (दीर्घकालिक सूजन) उत्पन्न करता है। यह सूजन शरीर में हिप्सिडिन (Hepcidin) नामक हार्मोन को बढ़ा देती है, जो आयरन के अवशोषण को रोकता है। इसके चलते आयरन डिफिशिएंसी यानी एनीमिया की परेशानी हो सकती है।
पोषक तत्वों का अवशोषण प्रभावित होना
नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर से ग्रसित लिवर की कार्यक्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है, जिससे विटामिन B12, फोलिक एसिड और आयरन जैसे आवश्यक पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है। इन तत्वों की कमी से एनीमिया की स्थिति सामने आ सकती है।
रेड ब्लड सेल्स के उत्पादन में लिवर का रोल
बहुत से लोग नहीं जानते कि लिवर शरीर में Erythropoietin (EPO) नामक हार्मोन की प्रक्रिया में सहयोग करता है, जो रेड ब्लड सेल्स के उत्पादन को बढ़ावा देता है। लीवर की खराब स्थिति EPO के सिग्नलिंग को प्रभावित कर सकती है, जिससे एनीमिया हो सकता है।
लिवर सिरोसिस और रक्तस्राव
नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर जब सिरोसिस में बदलता है, तो स्प्लीन (तिल्ली) का आकार बढ़ जाता है, जिससे RBCs अधिक मात्रा में नष्ट होते हैं। इसके साथ-साथ पेट में वेन्स में दबाव बढ़ने से आंतरिक रक्तस्राव (internal bleeding) की संभावना भी बढ़ जाती है, जो एनीमिया को गंभीर बना सकता है।
नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर होने पर लाइफस्टाइल में क्या बदलाव करें?
- वजन नियंत्रित करें
- तली-भुनी चीजें और मीठा का सेवन कम करें
- नियमित व्यायाम करें
- हरी पत्तेदार सब्जियां और आयरन युक्त भोजन लें।
- शराब से दूर रहें।
- डॉक्टर की सलाह अनुसार सप्लिमेंट्स व दवाएं लें।
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नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर और एनीमिया दो अलग-अलग बीमारियां लग सकती हैं, लेकिन शरीर में चल रही क्रॉनिक सूजन और पोषक तत्वों की कमी इन दोनों को आपस में जोड़ सकती है। नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर से पीड़ित लोगों को अक्सर आयरन डिफिशिएंसी या एनीमिया की समस्या होती है, जो यदि समय रहते पहचानी न जाए तो गंभीर रूप ले सकती है।
FAQ
फैटी लिवर रोग क्यों होता है?
फैटी लिवर रोग खानपान की अनियमित आदतों, शराब पीना, एक्सरसाइजन करना और डायबिटीज की वजह से हो सकती है।फैटी लीवर को ठीक करने का सबसे तेज़ तरीका क्या है?
जीवनशैली में बदलाव करना, नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और वजन को नियंत्रित करने जैसी स्वस्थ आदतें अपनाने नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (NAFLD) को रोकने और उसका इलाज करने में जरूरी मानी जाती हैं।क्या फैटी लिवर में गर्म पानी पीना चाहिए?
फैटी लिवर होने पर आप तेज गर्म पानी पीने की जगह पर हल्का गुनगुना पानी पीने की आदत डालें। इससे शरीर को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है।
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