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क्या म्यूजिक सुनने से बुजुर्गों को डिमेंशिया का रिस्क कम होता है? जानें क्या कहते हैं डॉक्टर

Dementia Risk: बुजुर्गों को भूलने की बीमारी से लेकर सोचने-समझने की शक्ति लगातार कम होने की स्थिति को डिमेंशिया कहा जाता है। हालिया स्टडी के अनुसार, इस बीमारी को म्यूजिक से काफी हद तक कम किया जा सकता है। इस लेख में डॉक्टर ने म्यूजिक सुनने के साथ-साथ लाइफस्टाइल मैनेज करने पर विस्तार से बताया है।
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क्या म्यूजिक सुनने से बुजुर्गों को डिमेंशिया का रिस्क कम होता है? जानें क्या कहते हैं डॉक्टर

Music Therapy: बुजुर्गों को भूलने की समस्या या फोकस न कर पाना अक्सर उम्र का तकाजा समझकर कर इग्नोर कर दिया जाता है, लेकिन कई बार यही समस्या धीरे-धीरे डिमेंशिया का रूप लेने लगती हैं, तो यह सिर्फ उस बुजुर्ग की ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के लिए चिंता का विषय बन जाता है। हालांकि डिमेंशिया के रिस्क को पूरी तरह से तो खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन हालिया रिपोर्ट के अनुसार, म्यूजिक थेरेपी से इसके रिस्क को कम करने की कोशिश की जा सकती है। इस बारे में हमने पीएसआरआई अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग के कंसल्टेंट डॉ. भास्कर शुक्ला (Dr Bhaskar Shukla, Consultant Neurology, PSRI Hospital) से बात की। उन्होंने बुजुर्गों में डिमेंशिया को मैनेज करने के तरीके भी बताए।


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डिमेंशिया और म्यूजिक थेरेपी को लेकर क्या कहती है रिसर्च?

हाल ही में International Journal of Geriatric Psychiatry में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, जो बुजुर्ग रेगुलर म्यूजिक सुनते हैं, उनमें डिमेंशिया का रिस्क करीब 39% तक कम पाया गया। स्टडी के मुताबिक, म्यूजिक सुनना दिमाग के सिर्फ एक नहीं, बल्कि कई हिस्सों को एक साथ एक्टिव करता है। इसमें मेमोरी, इमोशन्स, अटेंशन और लर्निंग से जुड़े ब्रेन एरिया शामिल हैं। इस बारे में डॉ. भास्कर कहते हैं, “जो बुजुर्ग रेगुलर अपना पसंदीदा म्यूजिक सुनते हैं, उनमें स्ट्रेस हार्मोन कम होते हैं और डोपामिन जैसे फील-गुड केमिकल्स बढ़ते हैं, जो न्यूरॉन्स के बीच बेहतर कनेक्शन बनाए रखने में मदद करते हैं। हालांकि 39% रिस्क रिडक्शन एक बेहतरीन डेटा है, लेकिन इसे किसी एक उपाय के रूप में नहीं, बल्कि पूरे लाइफस्टाइल इंटरवेंशन का हिस्सा मानना चाहिए। म्यूजिक विशेष रूप से उन बुजुर्गों के लिए फायदेमंद है जो अकेलेपन, डिप्रेशन या हल्की याददाश्त की समस्या से जूझ रहे हैं।”

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डिमेंशिया क्या है?

डॉ. भास्कर कहते हैं,”दरअसल, डिमेंशिया कोई एक बीमारी नहीं, बल्कि कई लक्षणों का ग्रुप है, जिसमें याददाश्त कमजोर होना, सोचने-समझने में दिक्कत, फैसले लेने में परेशानी और व्यवहार में बदलाव शामिल हैं। उम्र बढ़ने के साथ दिमाग की कोशिकाओं में होने वाले बदलाव, ब्लड फ्लो की कमी, लंबे समय तक तनाव, अकेलापन और कुछ बीमारियां जैसे डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर, डिमेंशिया के रिस्क को बढ़ा देती हैं। आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में बुज़ुर्गों की सोशल लाइफ कम होती जा रही है, ऐसे में अकेलापन और मानसिक परेशानी भी इस रिस्क को और तेज कर देती है।”

डिमेंशिया कम करने के लिए कैसा म्यूजिक फायदेमंद है?

WHO की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में दुनियाभर में 5 करोड़ से ज्यादा लोग डिमेंशिया से पीड़ित थे और हर साल करीब एक करोड़ डिमेंशिया के नए केस रिपोर्ट होते हैं। ऐसे में म्यूजिक थेरेपी से 39 प्रतिशत तक डिमेंशिया का रिस्क कम होना काफी अच्छा डेटा है। म्यूजिक बुजुर्गों के मूड को बेहतर बनाता है और उन्हें मेंटल लेवल पर एक्टिव रखता है। स्टडी में उनके पसंदीदा म्यूजिक के बारे में कहा गया है कि बचपन या युवावस्था से जुड़ा कोई म्यूजिक, मन और दिमाग को शांत करने वाला म्यूजिक बुजुर्गों के लिए काफी असरदार हो सकता है। इसके उलट अगर बुजुर्गों को तेज शोर वाला म्यूजिक सुनाया जाए, तो यह स्ट्रेस बढ़ा सकता है।

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डिमेंशिया का रिस्क कम करने के तरीके

डॉ. भास्कर कहते हैं कि डिमेंशिया के रिस्क को कम करने के लिए सबसे जरूरी मानसिक, शारीरिक और सामाजिक गतिविधियों का संतुलन होना चाहिए। डिमेंशिया कम करने के लिए लोगों को अपने लाइफस्टाइल में भी कुछ बदलाव करने चाहिए।

  1. रोजाना एक्सरसाइज करना - सभी को रेगुलर 30 मिनट तक वॉक, योग और स्ट्रेचिंग जरूर करनी चाहिए। इससे इससे दिमाग में ब्लड फ्लो बेहतर होता है और ब्रेन सेल्स को ऑक्सीजन मिलती है।
  2. दिमाग को एक्टिव रखना - लोगों को अपने दिमाग को जितना हो सके, उतना इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए किताबें, अखबार या मैगजीन पढ़ना, सुडोकू, क्रॉसवर्ड, शतरंज खेलना, कोई नया शौक सीखना शामिल है। ये सभी चीजें कॉग्निटिव डिक्लाइन को धीमा कर सकती हैं।
  3. सोशल होना - अकेलापन डिमेंशिया का एक बड़ा रिस्क फैक्टर माना जाता है। परिवार से रेगुलर बातचीत, दोस्तों से मिलना, ग्रुप एक्टिविटीज या सत्संग में हिस्सा लेना जरूरी है। लोगों से मिलकर दिमाग इमोशनल और मेंटल रूप से एक्टिव रहता है।
  4. सही खानपान - ब्रेन हेल्थ के लिए हरी सब्जियां और फल, ओमेगा-3 फैटी एसिड वाले फूड जैसे अलसी, अखरोट, मछली, कम चीनी और कम प्रोसेस्ड फूड खाना चाहिए। साथ ही रोजाना कम से कम 7 से 8 घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए। अच्छी नींद दिमाग को खुद को रिपेयर करने का समय देती है।
  5. बीमारियों पर कंट्रोल - हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल सीधे तौर पर दिमाग की सेहत पर असर डालती हैं। उनका सही इलाज और रेगुलर जांच डिमेंशिया के रिस्क को कम कर सकती है।

निष्कर्ष

डॉ. भास्कर कहते हैं कि डिमेंशिया से डरने नहीं, बल्कि इसे समझकर इलाज करना जरूरी है। बुजुर्गों को सही लाइफस्टाइल, खानपान और सोशली एक्टिव होना बहुत जरूरी है। वैसे म्यूजिक भी बुजुर्गों का खाली समय का साथी बन सकता है। मनपसंद गाने या म्यूजिक सुनते हुए मन और दिमाग को शांति मिलती है। इसके अलावा, अगर किसी बुजुर्ग को भूलने या फोकस करने में परेशानी हो, तो उसे डॉक्टर से जरूर मिलना चाहिए ताकि समय पर सही इलाज हो सके।

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FAQ

  • डिमेंशिया बीमारी क्यों होती है?

    डिमेंशिया दिमाग की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाली कई बीमारियों के कारण होता है। इसमें सोचने-समझने की क्षमता घटती है। इसके मुख्य कारणों में अल्जाइमर रोग, दिमाग में ब्लड फ्लो की कमी और फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया शामिल हैं। उम्र, फैमिली हिस्ट्री, सिर की चोट और हार्ट की समस्या जैसे रिस्क फैक्टर्स हो सकते हैं।
  • भूलने की बीमारी किसकी कमी से होती है?

    भूलने की बीमारी कई कारणों से होती है, जिसमें मुख्य रूप से विटामिन बी12 और बी1 की कमी, सिर की चोट, स्ट्रेस, डिप्रेशन, शराब बहुत ज्यादा पीना, नींद की कमी और अल्जाइमर जैसी बीमारियां शामिल हैं।
  • क्या डिमेंशिया को ठीक किया जा सकता है?

    वर्तमान में डिमेंशिया का कोई इलाज नहीं है, क्योंकि डिमेंशिया कई बीमारियों के कारण होता है, इसलिए इसका कोई एक इलाज होना संभव नहीं है। अगर इस बीमारी का समय रहते पता चल जाए, तो डॉक्टर की मदद से इसे मैनेज किया जा सकता है।

 

 

 

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  • Current Version

  • Dec 22, 2025 18:31 IST

    Published By : Aneesh Rawat

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