अक्सर हम यह देखते हैं कि हमारे नाखून का रंग बदलता रहता है। बदलते मौसम के चलते कई बार ऐसा होना सामान्य होता है। लेकिन कई बार नाखूनों के रंग में परिवर्तन किसी बीमारी का संकेत हो सकता है। हमारे शरीर में मौजूद ऐसे कई रोग भी होते हैं जिनके कारण हमारे नाखून बैंगनी-नीले हो जाते हैं। ऐसे में इन बीमारियों के और बारे में जानना बहुत जरूरी हो जाता है। जिससे समय रहता बीमारी का पता लगाया जा सके और अपने शरीर को स्वस्थ रखा जा सके। जानें नाखूनों के नीले पड़ने का क्या कारण है और इसके पीछे कौन से कारक जिम्मेदार हैं-
नीले नाखून आपके शरीर में मौजूद लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन का स्तर कम या ऑक्सीजन के कमी के कारण होती है। इस स्थिति को सायनोसिस नाम से भी जाना जाता है। यह समस्या तब होती है जब आपके रक्त में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं होती है। जिसके कारण हमारे नाखूनों के नीचे मौजूद त्वचा बैंगीनी-नूीली पड़ जाती है।
त्वचा की रंगत का बदलना खून के उच्च स्तर के असामान्य होने के रूप को दर्शाता है जो आपके पूरे शरीर में लगातार फैलता रहता है। हीमोग्लोबिन एक प्रोटीन है जो आपके रक्त में ऑक्सीजन के परिवहन के लिए जिम्मेदार है। ठंडे तापमान के कारण भी आपके नाखून नीले पड़ सकते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ठंडे तापमान की वजह से आपकी रक्त वाहिकाएं सिकुड़ने या छोटी होने लगती हैं। ऐसी स्थिति में आपके नाखूनों में ऑक्सीजन से भरपूर रक्त को पर्याप्त मात्रा में पहुंचा पाना मुश्किल हो जाता है।
कई बार नाखूनों का सामान्य रंग गर्म तापमान में रहने या हाथों की मालिश करने पर बदलना शुरू हो जाता है ऐसा ठन्डे तापमान के कारण होता है। जिससे आपके शरीर के उस हिस्से में पर्याप्त मात्रा में रक्त की आपूर्ति नहीं हो पाती और त्वचा पर नीले रंग वापस आ जाता है।
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ठंडे तापमान के कारण उंगलियों का नीला पड़ना शरीर की एक सामान्य प्रतिक्रिया होती है। जिससे शरीर के आंतरिक अंगों के तापमान को बनाए रखा जा सके। हालांकि, अगर नाखूनों की नीली रहने की समस्या लगातार बनी रहती है तो यह कोई रोग या इसका कोई अन्य कारण भी हो सकता है जो ऑक्सीजनयुक्त लाल रक्त को पूरे शरीर में फैलने से रोकता है।
नीला रंग किस स्थिति में होता है-
आपके नाखून का नीला रंग फेफड़ों, हृदय, रक्त कोशिकाओं, या रक्त वाहिकाओं में समस्याओं के कारण हो सकता है। साइनोसिस की स्थिति पैदा करने वाले रोग नीचे दिए गए हैं-
फेफड़ों के रोग-
- सीओपीडी (एम्फेसेमा या क्रोनिक ब्रोंकाइटिस)
- अस्थमा
- तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम (acute respiratory distress syndrome)
- निमोनिया
- फेफड़ों में रक्त का थक्का (pulmonary embolism)
हृदय रोग-
- जन्मजात हृदय रोग (जन्म के समय हृदय और वाहिकाओं की असामान्य संरचना)
- इशारेन्मर्जर सिंड्रोम (जन्मजात हृदय रोग की देर से जटिलता)
- ह्रदय की विफलता (congestive heart failure)
- असामान्य रक्त वाहिकाएं (Abnormal blood vessels)-
- रायनौड फैनम (हाथ और पैरों में रक्त वाहिकाएं अनुपयुक्त रूप से सख्त)
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सायनोसिस का निदान और उपचार-
पल्स ऑक्सीमीटर रक्त की ऑक्सीकरण की क्षमता को मापने का सबसे सरल तरीका है। जो आपके रक्त में ऑक्सीजन कितना है इसे मापने के लिए धमनी रक्त गैसों (ABG) को खींचा जाता है। यह निर्धारित करने में मदद करता है कि नीले नाखूनों के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हो सकता हैं। इस उपचार के द्वारा रोग के अंतर्निहित कारण की पहचान की जा सकती है साथ ही रक्त में पर्याप्त ऑक्सीजन को ठीक प्रकार से रक्त वाहिकाओं में पहुंचाने का काम करती है।
डॉक्टर को कब दिखाएं-
- सांस कम आने पर, सांस लेने में तकलीफ या सांस फूलने या हाँफने पर।
- छाती में दर्द होने पर।
- विपुल पसीना (profuse sweating)
- चक्कर आना या बेहोश होने पर।
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