
Andhvishwas or Science: नवजात बच्चे को लेकर हमारे यहां अलग-अलग तरीके की धारणा है। जब भी किसी के घर में नया बच्चा आता है तो दादी-नानियां अपने-अपने नियम बताने लगती हैं। हर क्षेत्र और समाज के अपने-अपने कुछ ऐसी धारणाएं होती हैं जिसे लोग नवजात बच्चे पर लागू करने की कोशिश करते हैं। ऐसी ही एक धारणा है कि लोग नवजात बच्चे के होते ही उन्हें हाथ-पैर के साथ कपड़े में टाइट बांधकर रखते हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि नवजात बच्चों को ऐसे बांधकर रखने से उनके हाथ-पैर सीधे रहते हैं और वे अच्छी नींद सो पाते हैं। इसके अलावा कुछ लोगों का ये भी मानना होता है कि ऐसा न करने से कई बार सोते-सोते बच्चों को शॉक लगता है और इससे उनकी जान भी जा सकती है। ये तमाम बातें धारणाएं हैं लेकिन क्या इसके पीछे कोई तर्क है? आइए, जानते हैं इस बारे में Dr. Vikram Singh, Director & Consultant, Vikram Clinic & Day Care Centre, Jaipur और Dr. Parimala V Thirumalesh, Sr. Consultant - Neonatology & Paediatrics, Aster CMI Hospital, Bangalore से ।
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नवजात बच्चे को टाइट बांधकर न रखने से हाथ-पैर टेढ़े हो सकते है?
Dr. Vikram Singh बताते हैं कि यह धारणा कि जन्म के बाद बच्चे को कसकर कपड़े या कपड़े की पट्टी से लपेटकर न रखने पर उसके हाथ-पैर टेढ़े हो जाते हैं, पूरी तरह से गलत और अंधविश्वास है। बच्चे के हाथ-पैर जन्म के समय थोड़े मुड़े हुए दिखाई देते हैं क्योंकि गर्भ में वे सीमित जगह में रहते हैं लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है, ये स्वाभाविक रूप से सीधें हो जाते हैं। तो Dr. Parimala V Thirumalesh, बताती हैं कि नवजात शिशु के हाथ-पैर कसकर बांधने की सलाह नहीं दी जाती और इससे मोरो रिफ्लेक्स (Moro reflex) या किसी भी आदिम रिफ्लेक्स में कोई कमी नहीं आती।
डॉक्टर बताते हैं कि मोरो रिफ्लेक्स (Moro reflex), जिसे स्टार्टल रिफ्लेक्स भी कहा जाता है, जीवन के पहले कुछ महीनों में शिशुओं में देखी जाने वाली एक प्राकृतिक और स्वस्थ प्रतिक्रिया है। यह तब होता है जब शिशु को अचानक सहारा न मिलने का एहसास होता है या वह कोई तेज आवाज सुनता है। शिशु के हाथ-पैर फैल जाते हैं और फिर वापस आ जाते हैं, यह सामान्य मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास का हिस्सा है।
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बच्चे को बहुत कसकर लपेटने के हैं ये नुकसान
इतना ही आगे Dr. Vikram Singh हैं कि बच्चे को बहुत कसकर लपेटना कई बार नुकसानदायक भी हो सकता है। इससे बच्चे की हड्डियों, जोड़ों और हिप (कूल्हे) के विकास पर दबाव पड़ता है और कभी-कभी “हिप डिसलोकेशन” जैसी समस्या भी हो सकती है। तो Dr. Parimala V Thirumalesh बताती हैं कि यह रिफ्लेक्स आमतौर पर 4 से 6 महीने की उम्र तक अपने आप गायब हो जाता है क्योंकि शिशु का मस्तिष्क परिपक्व हो जाता है। शिशु के अंगों को बांधकर या कसकर लपेटकर इसे रोकने या कम करने की कोशिश करना असुरक्षित हो सकता है और इससे सीमित गति, बेचैनी या सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यह रक्त परिसंचरण और उचित मांसपेशियों के विकास को भी प्रभावित कर सकता है।

स्वैडलिंग तकनीकों का उपयोग करें
डॉक्टर बताते हैं कि बच्चे को बांधने के बजाय, माता-पिता शिशु को शांत करने में मदद के लिए सुरक्षित स्वैडलिंग तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं। स्वैडलिंग का अर्थ है शिशु को एक मुलायम कपड़े या कंबल में हल्के से लपेटना, जिससे प्राकृतिक गति के लिए कुछ जगह बच जाती है। इससे शिशु सुरक्षित महसूस कर सकता है और मोरो रिफ्लेक्स के कारण होने वाली अचानक झटकेदार गतिविधियों को बिना नुकसान पहुंचाए कम कर सकता है। स्वैडल कभी भी बहुत ज्यादा कसा हुआ नहीं होना चाहिए, खासकर कूल्हों और छाती के आसपास।
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मोरो रिफ्लेक्स (Moro reflex) को ऐसे रोकें
शिशु को धीरे से झुलाना, धीमा संगीत बजाना या उसे अपने पास रखना भी मोरो रिफ्लेक्स की वजह से चौंकने पर उसे आराम पहुंचा सकता है। अगर यह रिफ्लेक्स बहुत तेज लगता है या 6 महीने से ज़्यादा समय तक रहता है, तो किसी बाल रोग विशेषज्ञ से बात करना सबसे अच्छा है। ज्यादातर मामलों में, किसी इलाज की जरूरत नहीं होती, क्योंकि मोरो रिफ्लेक्स स्वस्थ तंत्रिका विकास का एक सामान्य संकेत है। ध्यान आराम, सुरक्षा और मुक्त गति पर होना चाहिए, न कि शिशु के शरीर को बाधित करने पर।
बच्चे को लपेटना बिल्कुल गलत नहीं है लेकिन यह हल्के और ढीले कपड़े से किया जाना चाहिए ताकि बच्चा सहज रूप से हाथ-पैर हिला सके और शरीर को पर्याप्त हवा मिलती रहे। इससे बच्चे को सुरक्षा का अहसास तो मिलेगा, पर कोई नुकसान नहीं होगा। बच्चे के हाथ-पैर का आकार या सीधापन जेनेटिक और ग्रोथ पर निर्भर करता है, न कि कसकर बांधने पर। इसलिए माता-पिता को इस तरह के अंधविश्वासों पर भरोसा करने के बजाय डॉक्टर की सलाह का पालन करना चाहिए।
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Nov 12, 2025 17:35 IST
Published By : Pallavi Kumari