डिप्रेशन और फटीग, दोनों ही गंभीर समस्याएं हैं। क्या आप जानते हैं कि दोनों समस्याएं एक साथ भी हो सकती हैं। जानिए, इनके बीच क्या संबंध है।
How Fatigue and Depression Are Connected in Hindi: डिप्रेशन एक तरह का मानसिक विकार है। डिप्रेशन होने पर मरीज खुद को हताशा और निराशा से घिरा हुआ पाता है। वह हर चीज को नकारात्मकता से जोड़ने लगता है। उसका किसी भी तरह का काम करने का मन नहीं करता है, वह थका-थका रहता है और हर समय एक ही जगह बैठे रहने का उसका मन करता है। दरअसल, कई बार ऐसा देखने में आता है कि डिप्रेशन के मरीज को काफी ज्यादा थकान होती है। मरीज को इसकी असली वजह का पता नहीं चल पता है। इसकी वजह से वह खुद का सही तरह से इलाज नहीं करवा पाता या दूसरों से मदद नहीं लेता। यहां सवाल उठता है कि क्या डिप्रेशन और थकान का आपस में कोई संबंध है? विस्तार से जानिए, इस लेख में।
डिप्रेशन और क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम, दोनों ही ऐसी स्थितियां हैं, जिनमें मरीज खुद को थका हुआ महसूस करता है। यहां तक कि रात को पूरी नींद लेने के बावजूद मरीज की थकान कम नहीं होती है। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि डिप्रेशन और क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम दोनों एक साथ हो सकते हैं। यही नहीं, आम आदमी के लिए दोनों स्थिति में फर्क करना भी मुश्किल हो सकता है। यहां आपको बता दें, डिप्रेशन तब होता है जब व्यक्ति लंबे समय से उदासीन है, चिंतित है या निराशा महसूस करता है। आमतौर पर, जो लोग उदास रहते हैं, उन्हें अक्सर नींद की समस्या होती है। डिप्रेशन के मरीजों को सोने से संबंधी परेशानी हो सकती है, जैसे या तो उसे नींद नहीं आती या वे बहुत ज्यादा सोते रहते हैं। यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है, जिसके कारण व्यक्ति बिना किसी ठोस वजह के लगातार थकान महसूस करता है। कभी-कभी क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम को अवसाद समझ लिया जाता है।
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डिप्रेशन और क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम में मुख्य फर्क यही है कि डिप्रेशन एक मानसिक विकार है, जबकि क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम एक शारीरिक समस्या है। दोनों के लक्षणों में कुछ समानताएं हो सकती हैं। इसके बावजूद, दोनों के बीच काफी फर्क देखने को मिलता है।
क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम वाले लोगों में अक्सर शारीरिक लक्षण होते हैं, जो आमतौर पर अवसाद से जुड़े नहीं होते हैं, जैसे-
डिप्रेशन के इलाज के तौर पर थेरेपी और काउंसलिंग की जाती है। इसके साथ ही डॉक्टर्स की कुछ दवाईयां, जिनमें एंटीडिप्रेसेंट, एंटीसाइकोटिक्स और मूड स्टेबलाइजर्स शामिल हैं। एंटीडिप्रेसेंट दवाई लेने से कभी-कभी क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम के लक्षण बिगड़ सकते हैं। इसलिए कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर से कॉन्टेक्ट करें और क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम के बारे में उन्हें अवगत कराएं या जरूरी हो, तो जांच भी करवाएं। यहां हम आपको कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं, जिनकी मदद से डिप्रेशन और क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम के मरीज, दोनों को फायदा हो सकता है।
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