प्रदूषण छीन रहा है दिल्ली में रहने वालों की 12 साल उम्र, देश के अन्य हिस्सों में 5 साल कम जिएंगे लोग: स्टडी

शोधकर्ताओं ने प्रदूषण के चलते दिल्ली के लोगों की उम्र 12 साल तक कम होने की बात कही है।
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प्रदूषण छीन रहा है दिल्ली में रहने वालों की 12 साल उम्र, देश के अन्य हिस्सों में 5 साल कम जिएंगे लोग: स्टडी


दुनियाभर में प्रदूषण एक बड़े खतरे के तौर पर देखा जा रहा है। हर साल प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के चलते लाखों लोग जान गंवाते हैं। हाल ही में शिकागो यूनिवर्सिटी द्वारा की गई एक स्टडी के मुताबिक भारत में बढ़ते प्रदूषण के कारण लोगों की उम्र 5 साल तक कम हो सकती है। यही नहीं शोधकर्ताओं ने प्रदूषण के चलते दिल्ली के लोगों की उम्र 12 साल तक कम होने की बात कही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि दिल्ली एयर क्वालिटी इंडेक्स लेवल (एक्यूआई) लेवल अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की तय सीमा को पार करता है तो ऐसे में शहर के लोगों की उम्र 11.9 साल तक कम हो सकती है। 

दिल्ली प्रदूषण में सबसे आगे 

दिल्ली को प्रदूषण की उच्च श्रेणी में रखा गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार बांग्लादेश दुनिया का सबसे प्रदूषित देश है, जिसके बाद दूसरे नंबर पर भारत का नाम आता है। ऐसे में दिल्ली देश का सबसे प्रदूषित शहर माना गया है। यही नहीं दिल्लीवासियों के साथ-साथ दिल्ली से सटे इलाके जैसे गुरुग्राम में 10.8 साल, फरीदाबाद में 10.1 साल, लखनउ और कानपुर में 9.2 और उत्तर प्रदेश के जौनपुर में 9.7 साल तक लोगों की उम्र कम होने की बात कही जा रही है। 

बढ़ रहा बीमारियो का खतरा

हाल ही में हुए एक और अध्यन की मानें तो प्रदूषण दुनियाभर में किसी गंभीर बीमारी से कम नहीं है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह लोगों की सेहत के लिए धूम्रपान और शराब से भी ज्यादा खतरनाक साबित होता है। यह शरीर के लिए धीरे-धीरे जहर की तरह काम करता है। यह न सिर्फ दिल की बीमारियां, बल्कि फेफड़ों से जुड़ी कुछ गंभीर समस्याओं का भी कारण बन सकता है। लगातार दूषित हवा में रहने से धीरे-धीरे हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर जैसी बीमारियों का भी जोखिम बढ़ने लगता है।

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प्रदूषण के पीछे इन्हें माना जा रहा है कारण 

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के पीछे लगातार बढ़ रही आबादी को भी इसका मुख्य कारण माना जा रहा है। दिल्ली में लोगों के साथ-साथ गाड़ियों, घरों और इंडस्ट्रीज की भी संख्या बढ़ती जा रही है, जिससे निकलने वाले वेस्ट प्रदूषण में तब्दील हो जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनियाभर में 91 प्रतिशत लोग एक्यूआई लेवल की तय सीमा पार होने वाले हिस्सों में रह रहे हैं। 

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