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उम्र बढ़ने के साथ बाइपोलर डिसऑर्डर में मुश्किलें क्यों बढ़ जाती हैं? डॉक्टर से जानें

ज्यादातर लोगों को उम्र बढ़ने के साथ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस लेख में जानते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ बाइपोलर  डिसऑर्डर का जोखिम क्यों बढ़ जाता है?
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उम्र बढ़ने के साथ बाइपोलर डिसऑर्डर में मुश्किलें क्यों बढ़ जाती हैं? डॉक्टर से जानें


कई व्यक्तियों को उम्र बढ़ने के साथ ही मूड में तेजी से बदलाव और मानसिक स्थिति में उतार चढ़ाव महसूस होता है। दरअसल, यह मानसिक स्थिति से जुड़ी बाइपोलर डिसऑर्डर का संकेत हो सकता है। इस समस्या में व्यक्ति की मानसिक स्थिति स्थिर नहीं रहती है और इसके कारण लाइफस्टाइल भी प्रभावित हो सकती है। बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) में व्यक्ति को कभी ज्यादा खुशी तो कभी उदासी महसूस होने लगती है। जिस व्यक्ति को बाइपोलर डिसऑर्डर होता है, उनके घर के लोगों को उन्हें सपोर्ट करने की आवश्यकता होती है। इस समस्या में व्यक्ति को मेनिया और डिप्रेशन भी हो सकता है। यदि इसका सही समय पर और प्रभावी इलाज न किया जाए, तो उम्र के साथ इसकी स्थिति और भी गंभीर होती जाती है। इस लेख में नारायण अस्पताल गुरुग्राम के कंसल्टेंट साइकैटरिस्ट डॉक्टर राहुल कक्कड़ से जानते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ बाइपोलर डिसऑर्डर में मुश्किलें क्यों बढ़ जाती हैं?

उम्र के साथ बाइपोलर डिसऑर्डर क्यों बिगड़ता है? - Why Does Bipolar Disorder Worsen With Age In Hindi

बाइपोलर डिसऑर्डर को "मूड डिसऑर्डर" भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति के मन की स्थिति से तेजी से बदलती है। कभी वह बहुत एनर्जेटिक, आत्मविश्वासी और तेज बोलने वाला होता है, तो कभी वह अत्यधिक दुखी, थका हुआ और उदास होता है। इसे मैनिक फेज और डिप्रेसिव फेज से जाना जाता है। यह समस्यी व्यक्ति की लाइफस्टाइल, रिश्तों और करियर को प्रभावित कर सकती है। इस लेख में जानते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ बाइपोलर डिसऑर्डर में मुश्किलें क्यों बढ़ जाती हैं?

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Abstract tree and brain illustration

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ब्रेन में कैमिकल्स में बदलाव होना

उम्र बढ़ने के साथ ही व्यक्ति के ब्रेन में मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर्स जैसे सेरोटोनिन, डोपामिन और नॉरएपिनेफ्रिन का स्तर बदलने लगता है। यह कैमिकल्स व्यक्ति के मूड को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। इनके अंसतुलित होने से बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षण तेजी से दिखने लगते हैं।

दवाओंं के असर

बुज़ुर्ग लोगों में डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, थायरॉइड, या न्यूरोलॉजिकल समस्याएं आम हो जाती हैं। इन बीमारियों की दवाइयों का असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ सकता है और बाइपोलर लक्षणों को बढ़ा सकता है।

अकेलापन

उम्र बढ़ने के साथ सामाजिक दायरा सीमित हो जाता है। रिटायरमेंट, बच्चों का दूर चले जाना जैसी घटनाएं मानसिक तनाव को बढ़ाती हैं, जो बाइपोलर एपिसोड्स को ट्रिगर कर सकती हैं।

डिमेंशिया (Dementia) का खतरा बढ़ना

बाइपोलर डिसऑर्डर के लोगों में बढ़ती उम्र के साथ डिमेंशिया होने की आशंका बढ़ जाती है। यह व्यक्ति की याददाश्त, निर्णय लेने की क्षमता और व्यवहार पर असर डालती है और लक्षणों को और जटिल बना देता है।

दवाओं का कम असर

कई बार उम्र के साथ शरीर की दवाइयों को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है। इससे बाइपोलर डिसऑर्डर की दवाइयां उतनी प्रभावी नहीं रह जातीं, जितनी पहले होती थीं।

इसे भी पढ़ें: बाइपोलर डिसऑर्डर को मैनेज करने के लिए लाइफस्टाइल में करें ये बदलाव, मिलेगा आराम

बाइपोलर डिसऑर्डर में व्यक्ति को समय पर दवाएं लेना, लाइफस्टाइल में बदलाव करना, दोस्तों के साथ समय बिताने, पर्याप्त नींद लेने और योग व मेडिटेशन से स्ट्रेस को दूर करने की सलाह दी जाती है। बाइपोलर डिसॉर्डर की समस्या का इलाज काउंसिलिंग के माध्यम से किया जा सकता है। परिवार के सपोर्ट से इस समस्या को जल्द कम किया जा सकता है।

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