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प्रोलैक्टिन हमारे शरीर में पाए जाने वाला एक महत्वपूर्ण हार्मोन है, जो दिमाग के आधार पर स्थित पिट्यूटरी ग्लैंड से स्रावित होता है। इस हार्मोन का मुख्य काम महिलाओं में दूध के उत्पादन (Lactation) को कंट्रोल करना है। यह हार्मोन सामान्य रूप से प्रेग्नेंसी और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान ज्यादा मात्रा में बनता है, ताकि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में दूध मिल सके। हालांकि, कभी-कभी कुछ युवा लड़कियों में भी प्रोलैक्टिन का स्तर सामान्य से ज्यादा होता है, जिसे हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया कहा जाता है। ऐसे में आइए जयपुर के दिवा अस्पताल और आईवीएफ केंद्र की प्रसूति एवं स्त्री रोग की विशेषज्ञ, लेप्रोस्कोपिक सर्जन और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शिखा गुप्ता (Dr. shikha gupta, Laparoscopic surgeon and IVF specialist, DIVA hospital and IVF centre) से जानते हैं कि युवा लड़कियों में प्रोलैक्टिन का स्तर ज्यादा होने के क्या कारण हैं?
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कुछ लड़कियों में प्रोलैक्टिन लेवल ज्यादा होने के कारण
आइए डॉ. शिखा गुप्ता से समझते हैं कि युवा लड़कियों के शरीर में प्रोलैक्टिन हार्मोन ज्यादा होने के क्या कारण हो सकते हैं-
1. शारीरिक तनाव
शारीरिक या मानसिक तनाव के कारण हमारे शरीर में हार्मोनल असंतुलन होता है, जिसके कारण तनाव हार्मोन यानी कॉर्टिसोल और एड्रेनालिन जैसे हार्मोन बढ़ जाते हैं। इन हार्मोनों का सीधा असर पिट्यूटरी ग्लैंड पर पड़ता है, जिससे प्रोलैक्टिन का स्तर अस्थायी रूप से बढ़ सकता है। ऐसे में जिन लड़कियों को पढ़ाई, पेपर, पारिवारिक या सामाजिक दबाव का सामना करना पड़ता है, उनमें यह समस्या देखने को मिलती है। अगर तनाव लंबे समय तक बना रहे तो प्रोलैक्टिन स्तर लगातार बढ़ सकता है।
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2. भोजन करने के बाद बदलाव
खाना खाने के बाद खासकर प्रोटीन से भरपूर फूड्स के सेवन के बाद महिलाओं के शरीर में प्रोलैक्टिन का स्तर अस्थायी रूप से बढ़ सकता है। यह कोई गंभीर स्थिति नहीं होती है, बल्कि शरीर का सामान्य रिएक्शन होता है। हालांकि, अगर किसी लड़की में पहले से हार्मोनल असंतुलन है तो यह समस्या लंबे समय तक बनी रह सकती है।
3. सेक्सुअल इंटरकोर्स
यौन गतिविधियां या स्तनों की उत्तेजना के दौरान शरीर में प्रोलैक्टिन का स्तर स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है। इसका उद्देश्य शारीरिक संतुलन बनाए रखना और यौन प्रतिक्रिया को कंट्रोल करना होता है। हालांकि, यह सामान्य बायोलॉजिकल प्रक्रिया है, जो कुछ मामलों में पिट्यूटरी ग्लैंड के ज्यादा सेंसिटिव होने के कारण हो सकता है। युवा लड़कियों में यह स्थिति कभी-कभी चिंता या सामाजिक कारणों से ज्यादा गंभीर हो सकती है।
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4. हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया
कम उम्र की लड़कियों में जब प्रोलैक्टिन का स्तर सामान्य सीमा से काफी ज्यादा बढ़ जाता है तो इसे हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया कहा जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जिसमें दवाओं का साइड इफेक्ट, थायराइड, तनाव या नींद की कमी, शारीरिक कारण आदि।
5. पिट्यूटरी ट्यूमर
पिट्यूटरी ग्लैंड में कभी-कभी एक नॉन-कैंसर ट्यूमर विकसित हो जाता है, जिसे प्रोलैक्टिनोमा कहा जाता है। यह ट्यूमर प्रोलैक्टिन हार्मोन को ज्यादा मात्रा में बढ़ने लगता है। इसका आकार छोटा या बड़ा हो सकता है और इस समस्या के कारण सिरदर्द, धुंधला दिखाई देना, पीरियड का रुकना या अनियमित पीरियड्स, स्तनों से दूध जैसे लिक्विड निकलना आदि समस्या हो सकती है। यह ट्यूमर कैंसर नहीं होता है, लेकिन अगर इसका इलाज समय पर न किया जाए तो या पिट्यूटरी ग्लैंड और दिमाग के अन्य हिस्सों पर दबाव डाल सकता है।
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6. हाइपोथायरायडिज्म
थायराइड ग्लैंड के कम एक्टिव होने के कारण भी प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ सकता है। जब शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी होती है तो थायराट्रोपिन-रिलीजिंग हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। यह TRH सीधे पिट्यूटरी ग्लैंड को बढ़ाता है, जिससे प्रोलैक्टिन ज्यादा मात्रा में बनने लगता है।
निष्कर्ष
प्रोलैक्टिन का बढ़ा हुआ स्तर हमेशा किसी गंभीर बीमारी का संकेत नहीं होता है, लेकिन अगर यह लगातार बढ़ा हुआ पाया जाए तो डॉक्टर से कंसल्ट जरूर करना चाहिए। इतना ही नहीं, संतुलित आहार, पर्याप्त नींद, तनाव मैनेज करने और नियमित शारीरिक गतिविधियों की मदद से प्रोलैक्टिन के स्तर को संतुलित रखा जा सकता है।
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FAQ
प्रोलैक्टिन हार्मोन के बढ़ने से क्या होता है?
प्रोलैक्टिन हार्मोन बढ़ने से महिलाओं में अनियमित पीरियड्स, इनफर्टिलिटी और स्तनों से दूध आने जैसी समस्याएं हो सकती है। जबकि पुरुषों में यह यौन इच्छा की कमी और इनफर्टिलिटी का कारण बन सकता है।प्रोलैक्टिन की कमी से कौन सा रोग होता है?
प्रोलैक्टिन की कमी होने पर शीहान सिंड्रोम की समस्या हो सकती है, जिसमें डिलीवरी के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग के कारण पिट्यूटरी ग्लैंड को नुकसान होता है। इसके अलावा, यह हाइपोपिटिटारिज्म का भी कारण बन सकता है।कम प्रोलैक्टिन के लक्षण क्या हैं?
शरीर में प्रोलैक्टिन का स्तर कम होने पर थकान, कमजोरी, मूड में बदलाव, हड्डियों में कमजोरी, पुरुषों और महिलाओं में कामेच्छा की कमी जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं।
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Current Version
Nov 13, 2025 12:42 IST
Published By : Katyayani Tiwari