Heart Problems in Obese Kids: आजकल जिस तरह से बच्चों के खाने में जंक फूड की बढ़ोतरी हुई है और खेलने के लिए घंटों तक मोबाइल स्क्रोलिंग हो रही है, उसे देखते हुए बच्चों में मोटापा एक गंभीर और तेजी से बढ़ने वाली समस्या बनकर उभरा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि बचपन का मोटापा न सिर्फ बच्चों को शारीरिक तौर पर परेशान करता है, बल्कि यह भविष्य में हार्ट की बीमारियों का कारण भी बन सकता है। आज वर्ल्ड हार्ट डे (World Heart Day) के मौके पर हमने बच्चों में बढ़ते मोटापे के कारणों के साथ उनके हार्ट डिजीज से जुड़े कई विषयों पर क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के फाउंडर चेयरमैन और नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. आर किशोर कुमार ( Dr. R Kishore Kumar, Founder Chairman & Neonatologist, Cloudnine Group of Hospitals) से बात की। उन्होंने बचपन के मोटापे के रिस्क को कम करने के तरीके भी बताए हैं।
प्रेग्नेंसी में शिशु के हार्ट का रखें ध्यान
इस बारे में डॉ. किशोर कहते हैं कि बच्चों के हार्ट की बीमारियों पर जितना जल्दी ध्यान दिया जाए, उतना ही बेहतर है। अगर प्रेग्नेंसी में न्यूट्रिशन की कमी हो जाए, खासतौर पर फोलेट और विटामिन B12 की, तो बच्चों में हार्ट की समस्याएं होने का रिस्क बढ़ जाता है। इसलिए प्रेग्नेंसी में मां की स्क्रीनिंग होना जरूरी है। इसके लिए डिलीवरी से पहले ही Antenatal scans के जरिए शिशु के हार्ट के विकास पर नजर रख सकती है। जन्म के बाद Critical Cyanotic Congenital Heart Disease (CCCHD) स्क्रीनिंग जरूरी है। यह सस्ता और नॉन-इनवेसिव टेस्ट है जो नवजात के हाथ-पैर की ऑक्सीजन सैचुरेशन मापकर जन्मजात हार्ट डिजीज की पहचान करता है। गर्भावस्था के दौरान पोषण की कमी, विशेष रूप से फोलेट और विटामिन B12 की कमी के कारण बच्चों में हार्ट के रिस्क को और बढ़ा सकती है।
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कम वजन के बच्चों को हार्ट का रिस्क
डॉ. किशोर कहते हैं कि यूनिसेफ के अनुसार करीब 20% भारतीय बच्चे कम वजन के साथ पैदा होते हैं। ऐसे बच्चों को भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज और हार्ट डिजीज होने का रिस्क तीन गुना ज्यादा रहता है। इसके साथ अच्छी बात यह भी है अगर बच्चों के न्यूट्रिशन पर ध्यान दिया जाए तो इस रिस्क को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
बच्चों के मोटापे से जुड़ी स्टडी?
अगर भारत में मोटापे से ग्रस्त बच्चों के आंकड़ों की बात की जाए, तो NFHS-5 (2019–21) के अनुसार, अब 5 साल से कम उम्र के 3.4% बच्चे ओवरवेट हैं, जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा सिर्फ 2.1% था। वहीं यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार, अगर बच्चों के मोटापे के आंकड़ों की यही रफ्तार रही, तो भारत में साल 2030 तक लगभग 2.7 करोड़ बच्चों के मोटापे से ग्रसित होने की संभावना है।
बचपन का मोटापा कैसे बनता है हार्ट रिस्क?
डॉ. किशोर कहते हैं कि NIH की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1.44 करोड़ से ज्यादा बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं, जो दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। पहले नंबर पर चीन है। इसलिए बच्चों को मोटापे से बचाना महत्वपूर्ण है। अगर बच्चों को मोटापा होता है, तो उन्हें ये बीमारियों का रिस्क रहता है।
- हाई ब्लड प्रेशर - मोटापे की वजह से ब्लड प्रेशर बढ़ता है, जिससे हार्ट पर प्रेशर पड़ता है।
- हाई कोलेस्ट्रॉल – मोटापे के कारण फैट जमा होने से ब्लड वेसल्स ब्लॉक होने लगती हैं।
- इंसुलिन रेजिस्टेंस – मोटापे से डायबिटीज का रिस्क बढ़ जाता है, जो हार्ट डिजीज होने की मुख्य वजह है।
- मेटाबॉलिक सिंड्रोम – मोटापा कई मेटाबॉलिक समस्याओं को जन्म देता है, जो भविष्य में हार्ट अटैक या स्ट्रोक का कारण बन सकती हैं।
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परिवार को बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत
डॉ. किशोर कहते हैं कि बच्चों की सेहत पूरे परिवार की जिम्मेदारी होती है। इसलिए पैरेंट्स को बच्चों के लिए ये काम करने चाहिए।
- घर में हेल्दी डाइट दें।
- बच्चों को जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक्स और तली-भुनी चीजें कम दें।
- बच्चों को फिजिकल एक्टिविटी के लिए कहें।
- अगर बच्चे को हार्ट संबंधी समस्या है, तो उसके ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर का रेगुलर चेकअप कराएं।
निष्कर्ष
डॉ. आर किशोर का कहना है कि बचपन का मोटापा हार्ट की बीमारियों को बढ़ा सकता है, लेकिन इसका समाधान भी परिवार के पास है। अगर प्रेग्नेंसी में मां को सही न्यूट्रिशन मिले, तो बच्चों को मोटापे के रिस्क से बचाया जा सकता है। बच्चों को हार्ट के रिस्क से बचाने के लिए बचपन के मोटापे से बचाया जाना जरूरी है।
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Sep 29, 2025 15:44 IST
Modified By : Aneesh RawatSep 29, 2025 15:43 IST
Modified By : Aneesh RawatSep 29, 2025 15:43 IST
Published By : Aneesh Rawat