22q11.2 एक कोड भाषा या पासवर्ड की तरह महसूस होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। यह डाउन सिंड्रोम के बाद सर्वाधिक पाई जाने वाली क्रोमोसोमल विकृति का नाम है। इस बारे में हमें मेडजिनोम लैब्स प्रोग्राम डायरेक्टर-एनआईपीटी की डॉक्टर प्रिया कदम बता रही हैं। आइए जानें इस अनजानी क्रोमोसोमल विकृति के बारे में जानें और ये भी जानें कि इस बीमारी से शिशु कैसे प्रभावित होते है और इससे बचने के लिए हमें कौन से उपाय अपनाने चाहिए।
22q11.2 क्या है?
यह क्रोमोसोमल विकृति 22q11.2 स्थान पर क्रोमोसोम 22 या उसके कुछ हिस्से के नष्ट होने से उत्पन्न होती है। इसलिए इसका नाम 22q11.2 डिलीशन सिंड्रोम पड़ गया। इस विकृति की विविध अभिव्यक्तियां हैं। यह शरीर के अलग अलग हिस्सों को प्रभावित कर सकती है। यह आमतौर पर दिल, किडनी, मुंह, ब्रेन और इम्यूनिटी या एंडोक्राईन सिस्टम को प्रभावित करती है, जिससे अनेक विकृतियां पैदा होती हैं।
हर 2000 जन्म में से 1 शिशु को होने वाली यह विकृति ज्यादातर मामलों में अनायास ही होती है, जबकि 5 से 10 प्रतिशत मामलों में यह अनुवांशिक होती है तथा 50 प्रतिशत मामलों में इसका संचार होता है। यद्यपि इसकी जानकारी न होने के कारण ज्यादातर मामलों में इसका पता बच्चों के जन्म के बाद, उनके बचपन में या फिर कभी कभी बड़े होने के बाद चलता है।
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केस के उदाहरण
अपेक्षित मां, जूही को जब अपने गर्भ का पता चला, तो वह बहुत उत्साहित थी। यद्यपि जूही का गर्भपात हो चुका था, क्योंकि उसके शिशु को डाउन सिंड्रोम हो गया था। लेकिन इसके बाद भी जूही ने उम्मीद नहीं खोई और कुछ माह बाद वह फिर से गर्भवती हो गई। इस बार सावधानी बरतते हुए उसने जेनेटिसिस्ट से संपर्क किया, जिसने उसे नॉन-इन्वेसिव प्रि-नैटल टेस्ट कराने का परामर्श दिया, ताकि न केवल डाउन सिंड्रोम, बल्कि अन्य क्रोमोसोमल विकृतियों का भी पता चल सके।
उसे यह जानकर काफी निराशा हुई कि इस बार उसके शिशु को 22q11.2 माईक्रोडिलीशन सिंड्रोम नामक क्रोमोसोमल विकृति थी, जिसे डाईजॉर्ज सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है। प्रारंभ में वह बहुत परेशान हुई, लेकिन उसे खुशी थी कि उसे समय पर इसका पता चल गया, जिसकी वजह से वह सही निर्णय ले सकती थी।
आज ज्यादातर अपेक्षित माता-पिता को डाउन सिंड्रोम के बारे में मालूम है। यह सब इसके बारे में बढ़ाई गई जागरुकता का परिणाम है। यद्यपि अनेक विकृतियां ऐसी भी हैं, जिनके बारे में न तो कुछ कहा गया है और न ही सुना गया है, क्योंकि ये विकृतियां बहुत दुर्लभ हैं। इससे भी मुश्किल बात यह है कि न तो इस विकृति के बारे में ज्यादा पता है और न ही इसके इलाज के बारे में।
इसलिए हमें अक्सर ऐसे माता-पिता की कहानियां सुनने को मिलती हैं, जो अपने बच्चे की विकृति की पहचान के लिए दर-दर की ठोकरें खाते हैं या फिर उनके इलाज के लिए पूंजी की मांग करते रहते हैं।
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समाधान
यह बात साफ है कि ऐसी विकृतियों का कोई इलाज नहीं, इसलिए मरीज की जिंदगी में सुधार का एकमात्र रास्ता प्रबंधन है। रोकथाम में अनेक चीजें शमिल हैं :
- विशेष बीमारियों के लिए आपकी अनुवांशिक संरचना की जानकारी होना।
- अपने परिवार का इतिहास मालूम होना।
- शिशु के बारे में सोचने से पहले अपने पति/पत्नी के जीन्स का मिलान करना।
- गर्भपात के मामले में इसका मूलभूत कारण पहचानना और अगले गर्भ में उसका ख्याल रखना।
- गर्भावस्था के दौरान नॉन-इन्वेसिव प्रिनैटल टेस्ट कराना, जिससे किसी भी क्रोमोसोमल विकृति का पता चल सके। यह ब्लड की जांच द्वारा होता है और गर्भ के 9 हफ्तों तक कराया जा सकता है।
- जब शिशु का जन्म हो जाए, तब नवजात शिशु का स्क्रीनिंग टेस्ट कराएं, ताकि विविध विकृतियों का पता चल सके।
- समय पर जांच परिणामों में सुधार कर सकती है और ऐसी विकृतियों की पहचान का मुख्य तरीका जागरुकता है।
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