वैरिकोसील क्या है... यह बीमारी क्यों होती है। पुरुषों को होने वाली इस बीमारी के कारण किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सहित बीमारी के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जमशेदपुर के बिष्टुपुर में प्रैक्टिस करने वाले जनरल फिजिशियन डॉ. यूके सिन्हा से बात कर जानेंगे। बता दें कि इन दिनों यह समस्या काफी सामान्य है। ज्यादातर 15 से लेकर 30 साल के युवाओं में देखने को मिलती है। यदि इसका इलाज न कराया जाए तो इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के साथ स्पर्म काउंट में कमी सहित कई समस्याएं हो सकती है। एक्सपर्ट के नजरिए से वैरिकोसील की जानकारी जानने के लिए पढ़ें यह आर्टिकल।
वैरिकोसील क्या है, यह वैरिकोस से कैसे अलग है
जनरल फिजिशियन डॉ. यूके सिन्हा बताते हैं कि पुरुष के शरीर में टेस्टिस सबसे महत्तवपूर्ण अंग होता है। यह मेल रिप्रोडक्टिव ऑर्गन का सबसे अहम हिस्सा होता है। टेस्टिस के अंदर जो वेन (नसें) होती हैं, जो रक्त संचार करतीं हैं यदि वो किसी कारणों से फूल जाती हैं (बता दें कि यह रक्त कोशिकाओं में खून का प्रवाह जाम होने के कारण होता है) इस कारण खून का दौरा जाम होता है क्योंकि टेस्टिस के अंदर वाल्व्स खून के दौरे को वापिस नहीं जाने देते उसे रोककर रखते हैं ये खुल जाते हैं। इस वजह से खून का दौरा ग्रेविटी (ग्रुत्वाकर्षण) के कारण नीचे की ओर जाने लगता है। इसे वैरिकोस वीन कहते हैं। यही वैरिकोस जब टेस्टिस में होता है तो उसे वैरिकोसील कहा जाता है।
वैरिकोसील कैसे है होता
डॉक्टर बताते हैं कि पुरुषों में दो टेस्टिस होते हैं। पहला दाहिना टेस्टिस व दूसरा बायां टेस्टिस। ये टेस्टिस एक प्रकार की थैली के अंदर होते हैं, मेडिकल टर्म में इसे स्क्रोटम (Scrotum) कहा जाता है, आम बोलचाल की भाषा में अंडकोष कहा जाता है। टेस्टिस स्पर्मेटिक कॉर्ड के जरिए स्क्रॉटम के अंदर लटकता है। स्पर्मेटिक कॉर्ड तीन-चार तत्वों से बनी होती है, जिसके अंदर टेस्टुकुलर आर्टरी होती है, जो खून को अंदर लेकर आती है। वेस डिफ्रेंस होता है जो स्पर्म को प्रोस्टेट तक लेकर जाता है। इसमें टेस्टुकुलर वेन्स भी होती हैं, यह एक गुच्छे में जाती है, जिसे पेनपेमिफम प्लेक्सस कहते हैं। इसी पेनपेमिफम प्लेक्सस के अंदर वैरिकोस वेन होता है। यानि वेन्स खुल जाती हैं, वॉल्व कमजोर हो जाते हैं तो ऐसे में ये खून के दौरे को रोक नहीं पाते हैं। इसी समस्या को वैरिकोसील कहा जाता है। इसे आसान भाषा में कहा जाए तो टेस्टिस में जो ऊपर से खून आता है और जब वो वापिस वेन्स के जरिए जाता है तब कुछ कंडीशन में वेन्स सही से अपना काम नहीं कर पाती हैं, उनके वाल्व कमजोर हो जाते हैं, इसी स्थिति को वैरिकोसील कहा जाता है।
वैरिकोसील पुरुषों के शरीर को किस तरह से करता है प्रभावित
डॉक्टर बताते हैं कि वैरिकोसील पुरुषों के शरीर को कई तरह से नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि हमारे टेस्टिस के फंक्शन्स (टेस्टिस क्या काम करते हैं) क्या हैं।
टेस्टिस के दो अहम काम
- पहला : टेस्टिस पुरुषों के शरीर में टेस्टेस्टेरोन बनाते हैं। यह मेल हार्मोन है, जिसका निर्माण टेस्टिस खुद ब खुद ही करते हैं।
- दूसरा : स्पर्म (वीर्य) का उत्पादन करते हैं।
वैरिकोसील होने पर होने वाली समस्या
डॉक्टर बताते हैं कि जब भी किसी पुरुष को वैरिकोसील की समस्या होती है तो टेस्टिकल्स सही तरीके से काम नहीं कर पाते हैं। बीमारी का इलाज न कराया जाए तो टेस्टिकल्स सिकुड़ जाता है, जिसे टेस्टिकल्स का छोटा होना कहते हैं।
स्पर्म प्रोडक्शन होता है कम
डॉक्टर बताते हैं कि टेस्टिस जब सही तरीके से काम नहीं कर पाता है तो इसका असर स्पर्म प्रोडक्शन पर पड़ता है। स्पर्म की उत्पादकता कम हो जाती है। इस कारण टेस्टेस्टेरॉन हार्मोन का प्रोडक्शन भी कम होता है। यह प्रजन्न व इंफर्टिलिटी का सबसे बड़ा कारण बनता है। स्पर्म कम होने से इंफर्टिलिटी की समस्या होती है और टेस्टेस्टेरॉन कम होने के कारण हमारे शरीर में कई प्रकार के बदलाव आते हैं जैसे;
- सेक्सुअल एक्टिविटी करने की इच्छा में भारी कमी
- पुरुषों का चिड़चिड़ा होना
- पुरुषों में तनाव
- टेस्टोस्टेरॉन के कारण शरीर में कई अन्य बदलाव भी आते हैं
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किन कारणों से होती है वैरिकोसील की समस्या
डॉक्टर यूके सिन्हा बताते हैं कि वर्तमान में मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोग इस बीमारी-समस्या के होने के कारणों पर शोध कर रहे हैं कि आखिरकार यह बीमारी क्यों होती है। लेकिन इस बीमारी के होने के सही-सही कारणों का अबतक पता नहीं चल पाया है। इन लोगों में ज्यादा देखने को मिलती है समस्या;
- 15 से लेकर 30 साल के युवाओं में
- वैसे पुरुष जो जिम में हेवी वेट लिफ्टिंग करते हैं (नस खिंचने के कारण)
- दाहिने की तुलना में लेफ्ट टेस्टिस ज्यादा प्रभावित होती है
वैरिकोसील के लक्षण, जानें इस बीमारी को कैसे पहचानें
डॉक्टर बताते हैं कि इस बीमारी के होने पर कई केस में किसी भी प्रकार का लक्षण नजर ही नहीं आता है। रूटीन इग्जामिनेशन में भी इस बीमारी का पता नहीं चलता है। कई केस में शादीशुदा पुरुष-महिला शिशु के जन्म न होने के कारण डॉक्टरी सलाह लेने के लिए आते हैं, वहीं टेस्ट व अल्ट्रासाउंड कराने पर उन्हें इस बीमारी का पता चलता है। कुछ केस में मरीज को टेस्टिकल्स में दर्द होता है। वहीं बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंच जाए तो टेस्टिकल्स व स्क्रॉटम में मौजूद वेन्स सूज जाती हैं। इस हाथ से छूने पर गांठ जैसा महसूस होता है। वहीं मरीज यदि भारी सामान उठाता है तो उसे टेस्टिस में दर्द होता है। लेकिन ज्यादातर केस में इस बीमारी के लक्षण सामान्य लक्षणों की तरह नजर ही नहीं आते हैं। वहीं कुछ केस में मरीज खुद डॉक्टर के पास आता है और टेस्टिकल्स में गांठ की शिकायत करता है।
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कैसे लगाया जाता है इस बीमारी का पता
डॉक्टर बताते हैं कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर मरीज को कुछ खास जांच की सलाह देते हैं, जिसके रिपोर्ट की आधार पर बीमारी का पता किया जाता है, इन जांच में ;
- स्क्रॉटम का अल्ट्रासाउंड बनाने की सलाह दी जाती है : अल्ट्रासाउंड में बहुत क्लीयर हो जाता है कि मरीज को वैरिकोसील है या नहीं। अल्ट्रासाउंड में पेनपेनिफाम प्लेक्सर की वेन्स बढ़ी हुई हैं तो वो अल्ट्रासाउंड में साफ नजर आ जाएगा।
दवा और सर्जरी से इलाज
डॉक्टर बताते हैं कि तमाम लक्षणों का पता लगाने के बाद इस बीमारी का उपचार एक्सपर्ट सर्जन ऑपरेशन करते हैं। वहीं कुछ मामलों में दवा देकर वैरिकोसील का इलाज किया जाता है। लेकिन सबसे जरूरी है कि बिना डॉक्टरी सलाह लिए न तो लोगों को दवा का सेवन करना चाहिए न ही उपचार। यदि आप भी इन्हीं समस्याओं को झेल रहे हैं तो आपको डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। ताकि बीमारी का जल्द से जल्द उपचार किया जा सके। यदि इसका इलाज न किया जाए तो पार्टनर के साथ शारिरिक संबंध बनाने के बावजूद भी स्पर्म काउंट में कमी होने की वजह से गर्भधारण करने में परेशानी होती है।
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