डिप्रेशन और मानसिक बामारियों से जुड़ी एक स्टडी से पता से चला है कि अचानक से हंसना और रोना एक नर्वस डिसऑर्डर हो सकता है। इस बीमारी को पीबीए (Pseudobulbar affect)कहते हैं। पीबीए(Pseudobulbar affect)तंत्रिका तंत्र यानी कि एक नर्वस सिस्टम डिसऑर्ड है, जिसके कारण कोई भी व्यक्ति अपने हंसने, रोने या गुस्सा होने को कंट्रोल नहीं कर पाता है। पीबीए को भावनात्मक विकृति, भावनात्मक असंयम, भावनात्मक दायित्व, अनैच्छिक रोना और रोगजनक हंसी और रोना भी कहा जाता है। खास बात ये है कि इस बामारी से ग्रसित ज्यादातर लोगों में इसे डिप्रेशन के हाई स्टेज के रूप में देखा जा रहा है। आइए आज हम आपको इस बीमारी से अवगत करवाते हैं।
पीबीए (Pseudobulbar Affect) का कारण
स्यूडोबुलबर एफेक्ट (PBA) नामक ये बीमारी विभिन्न प्रकार के न्यूरोसाइकियाट्रिक रोगों के साथ हो सकता है। ये बीमारी ज्यादातर स्ट्रोक, दर्दनाक मस्तिष्क की चोट, ब्रेन में ट्रॉमेटिक इंजरी, पार्किंसंस रोग, मल्टीपल स्केलेरोसिस, अल्जाइमर, ब्रेन ट्यूमर आदि जैसे विभिन्न न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से पाड़ित लोगों को होता है। पीबीए में, व्यक्ति सामान्य रूप से भावनाओं का अनुभव करता है पर उन्हें दर्शाने में अपना कंट्रोल खा देता है। यानी कि इस बीमारी के कारण इंसान अपनी किसी भी भावना पर कंट्रोल नहीं कर पाता है। हालांकि डॉ धनश्री पेडवाड, एमबीबीएस, एमडी (जनरल मेड), डीएम (न्यूरोलॉजी), सलाहकार न्यूरो-लॉजिस्ट, कॉन्टिनेंटल हॉस्पिटल्स का मानें, तो पीबीए से पाड़ित लोगों के लिए ये बीमारी शर्मिंदगी, सामाजिक अलगाव या चिंता का कारण भी बन सकती है।
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पीबीए (Pseudobulbar Affect) के लक्षण
स्यूडोबुलबर एफेक्ट (पीबीए) का प्रारंभिक लक्षण अक्सर रोने या हँसने के अनैच्छिक और बेकाबू हो जाना है, जो आपकी भावनात्मक स्थिति को और खराब कर देती है। ऐसे लोगों में हंसी अक्सर आँसू में बदल जाती है। ऐसे लोगों में कभी मूड सामान्य दिखाई देगा, तो कभी एकदम से बिगड़ जाएगा। हालांकि, रोना हंसने की तुलना में पीबीए का अधिक सामान्य संकेत माना जा रहा है। इस प्रकार, रोगी की भावनात्मक अभिव्यक्ति और उसके भावनात्मक अनुभव के बीच समानता नहीं होती। जिसके कारण रोगी, परिवार और देखभाल करने वालों के लिए हाई सेंस्टिव हो जाता है, क्योंकि उन्हें समझ नहीं आता कि रोगी कब क्या करेगा। इस तरह ये एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा पीबीए से पाड़िक लगभग 30-35 प्रतिशत रोगी डिप्रेशन से पाड़ित भी पाए गए हैं, जो कि एक बड़ी चिंता कारण है।
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पीबीए (Pseudobulbar Affect) का इलाज
वहीं इस बीमारी की जटिलताओं की बात करें, तो ये रोगी को शर्मिंदगी, सामाजिक अलगाव, चिंता और अवसाद महसूस कराता है, जिससे ये बीमारी और बढ़ने लगती है। मरीज का अचानक बेकाबू होकर रोना और अनुचित हँसना, जैसी भावनात्मक प्रतिक्रियाएं आमतौर पर स्थितियों के उलट होती हैं। वहीं अब इसके इलाज की बात करें, तो पीबीए का इलाज अक्सर चिकित्सक द्वारा अनौपचारिक तरीके से उसके न्युरोप्सियाट्रिक मूल्यांकन के बाद ही शरू किया जाता है। ऐसे कई पैमाने हैं, जो इसे मापते हैं। जैसे, मस्तिष्क (एमआरआई आदि) के न्यूरोइमेजिंग सेरिबैलम और सेरेब्रल कॉर्टेक्स में घावों को समझना इस बामारी में बेहद जरूरी होता है। इसके बाद इन रोगियों को एंटीडिप्रेसेंट्स, जैसे ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स (TCAs) और चयनात्मक सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर (SSRIs)आदि दवाइयां दी जा सकती हैं। पर इस बीमारी में सबसे बड़ी गलती तब हो जाती है, जब इसके लोग मूड-स्विंग्स या तनाव आदि समझ लेते हैं। कई बार अवसाद जैसी बीमारी को लंबे समय तक इलाज न हो पाना पीबीए को जन्म दे सकता है।
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