डिप्रेशन या अवसाद एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जाे जिंदगी जीने की वजहाें काे ही खत्म कर देती है। डिप्रेस्ड लाेग अपनी जिंदगी की अहमियत काे नहीं समझ पाते और उसे खत्म कर देना चाहते हैं। लेकिन अगर शांत दिमाग और हिम्मत से इसका सामना किया जाए, ताे इसे आसानी से हराया जा सकता है। ऐसा कहना है 2 बार डिप्रेशन काे मात दे चुकीं दिल्ली की रहने वाली 29 वर्षीय दिव्या ताेषनीवाल का। दिव्या ताेषनीव एक काउंसलर और डांस एंड मूवमेंट साइकोथेरेपिस्ट हैं। दिव्या दाे बार डिप्रेशन काे फेस कर चुकी हैं।
मैं 2 बार डिप्रेशन काे हरा चुकी हूं
दिव्या बताती हैं कि मैं दाे बार डिप्रेशन में आ चुकी हूं। पहली बार जब मैं डिप्रेशन में आई थी, ताे करीब 20 साल की थी। दूसरी बार में मेरी उम्र 24 साल थी। लेकिन दूसरी बार वाला डिप्रेशन मेरे लिए काफी गंभीर था। इस स्थिति में मेरी जीने की इच्छा खत्म हाे गई थी। जब मैं पहली बार डिप्रेशन में आई थी, ताे मैंने जल्दी रिकवर कर लिया था। दूसरी बार में डिप्रेशन से बाहर निकलने में मुझे करीब 2 साल लग गए।
7 साल का रिश्ता टूटने के बाद हुई थी डिप्रेस्ड
दिव्या बताती हैं कि दूसरी बार के डिप्रेशन की वजह मेरा रिश्ता टूटना है। साल 2016 में उस व्यक्ति के साथ मेरा रिश्ता टूट गया था, जिसके साथ मैंने अपने 7 साल बिताए थे। एक ऐसा इंसान जिससे मैं सबसे ज्यादा प्यार करती थी। जब आप किसी ऐसे व्यक्ति से अलग हाेते हैं, ताे दिमाग काम करना बंद कर देता है। मन में तरह-तरह के विचार आने लगते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। रिश्ता टूटने के बाद मेरी आंखाें के आगे अंधेरा छा गया था, मेरी जीने की वजह ही खत्म हाे गई थी। यही सब साेच-साेचकर मैं धीरे-धीरे डिप्रेशन में चली गई।
डिप्रेशन में दिखे थे ये लक्षण
- हमेशा दुखी रहना
- नींद न आना
- अकेला रहना
- शांत रहना
- किसी से बात करने की इच्छा न हाेना
- मन में तरह-तरह के विचार आना
- जीने की इच्छा खत्म हाेना
- भूख न लगना
डिप्रेशन में मैं एकदम शांत और अकेला रहना पसंद करती थी। इस दौरान मेरी जीने की इच्छा बिल्कुल खत्म हाे गई थी। मैं हर रात साेते समय भगवान से प्रार्थना करती थी कि सुबह मेरी आंख न खुले। आज भी जब मैं उस समय काे याद करती हूं, ताे सहम जाती हूं।
जीवन काे खत्म करने का प्रयास भी किया
रिश्ता टूटने के बाद मैं भी पूरी तरह से टूट गई थी। मुझे लगा कि मैं अब पहले जैसी दिव्या कभी नहीं बन सकती हूं। मैंने अपने प्यार काे खाे दिया था, मैं बस अपने जीवन काे खत्म कर देना जाना चाहती थी। इसके लिए मैंने कई प्रयास भी किए, लेकिन मैं असफल हाे जाती थी। इस दौरान मुझे आंखाें के आगे सिर्फ अंधेरापन दिखाई देता था। मैं भले ही घरवालाें के सामने मुस्कुराती जरूर थी, लेकिन मेरे अंदर की भावनाएं मैं किसी काे व्यक्त नहीं कर पाती थी।
न जीने की चाहत में स्लीपिंग पिल्स भी ली
दिव्या बताती हैं कि मैं किसी भी तरह से अपने जीवन काे खत्म कर देना चाहती थी। क्याेंकि मुझे जीने की काेई वजह नहीं दिखाई दे रही थी। इसके लिए मैंने प्रयास ताे किए, लेकिन मैं असफल रही। फिर एक दिन मैंने काफी सारी स्लीपिंग पिल्स खा ली, ताकि शायद इससे सुबह मेरी आंख न खुले। मेरी यह काेशिश भी नाकामयाब रही। स्लीपिंग पिल्स लेने के बाद मैं जिंदा रही, लेकिन 3-4 दिन तक हाेश में नहीं रही। इसके बाद जब मुझे हाेश आया ताे मेरी हालत काफी खराब हाे गई थी। फिर मुझे लगा कि इस तरह से अपनी जिंदगी खराब करना सही नहीं है, मुझे उठना चाहिए और डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारी का डटकर सामना करना चाहिए। मैंने डांस मूवमेंट थेरेपी की क्लासेज लेनी शुरू की। इसके बाद धीरे-धीरे मेरी मानसिक स्थिति पहले जैसे हाेने लगी।
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अपने करियर और परिवार काे बनाया जीने की वजह
स्लीपिंग पिल्स लेने के बाद जब मैं हाेश में आई ताे मुझे अहसास हुआ कि मेरे घरवालाें के लिए मेरी लाइफ कितनी अहमियत रखती है। इसके बाद मैंने जिंदगी जीने और डिप्रेशन से बाहर निकलने का फैसला लिया। फिर मैंने खुद काे बिजी रखने के लिए अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखने का साेचा। दरअसल, मुझे मनाेविज्ञान में हमेशा से दिलचस्पी रही है। इसलिए मैंने मनाेविज्ञान की पढ़ाई शुरू कर दी। खुद काे पढ़ाई, माता-पिता और भाई-बहनाें के साथ व्यस्त रखा। इस तरह धीरे-धीरे मुझे जीने की वजह मिलती गई। लेकिन मैं डिप्रेशन से बाहर नहीं निकली थी।
लेखन के जरिए बिताती थी अपना समय
दिव्या बताती हैं कि एक समय ऐसा था, जब मैं किसी से बात करना पसंद नहीं करती थी। लेकिन मेरे दिमाग में विचार चलते रहते थे। इन विचाराें काे व्यक्त करने के लिए मैंने लिखना शुरू कर दिया। मुझे लिखने और पढ़ने का शौक पहले से ही था, डिप्रेशन के दौरान अपने विचाराें काे व्यक्त करने का जरिया लेखन बना। इसके बाद मैंने ब्लॉग, लेख लिखने शुरू किए। इतना ही नहीं मेरी किताबें भी पब्लिश हुई हैं। लेखन ने मुझे एक नई पहचान दी।
डांस एंड मूवमेंट थेरेपी के बारे में कैसे पता चला?
दिव्या बताती हैं कि मनाेविज्ञान की पढ़ाई के दौरान मुझे मनाेचिकित्सा के एक नए पहलू-अभिव्यंजक उपचार यानी expressive therapies के बारे में पता चला। मैं इसके बारे में जानने के लिए काफी उत्सुक थी। फिर जब मुझे पता चला कि हमारे एरिया में डांस और मूवमेंट थेरेपी के डिप्लाेमा काेर्स हाे रहे हैं, ताे मैंने इसमें एडिमशन ले लिया। दरअसल, डांस हमेशा से मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा रहा है। इसलिए मैंने इसे पूरे इंटरेस्ट के साथ किया। पहले दिन कुछ भी नहीं बदला था, मैं शांत थी और डिप्रेस्ड फील कर रही थी।
डिप्रेशन से बाहर निकलने में डांस एंड मूवमेंट थेरेपी ने की मेरी मदद
डांस एंड मूवमेंट थेरेपी की पहली क्लास में मैं काफी डिप्रेस्ड महसूस कर रही थी। उस समय भले ही मैंने जीने का मन बना लिया था, लेकिन मैं जीना नहीं चाहती थी। मैं डांस एंड मूवमेंट थेरेपी के लिए राेजाना जाया करती थी, लेकिन दिलचस्पी अभी मुझमें दिखाई नहीं दे रही थी। फिर कुछ महीनाें बाद मुझे महसूस हुआ कि मैं डांस के प्रति फिर से इंटरेस्ट ले रही हूं। अब मैं हमेशा इसकी क्लासेज लेना चाहती थी, इसके बारे में अधिक जानना चाहती थी। मेरे डांस एंड मूवमेंट थेरेपी के बैच में 15 लाेग थे, वाे मेरा एक परिवार बन गया था। जब मेरा काेर्स कंप्लीट हुआ ताे मेरा जीने का, साेचने का नजरिया पूरी तरह से बदल गया था। मैं अब जीना चाहती थी, खुद के सपनाें काे पूरा करना चाहती थी। करीब 2 साल के डिप्रेशन से बाहर निकलने में डांस एंड मूवमेंट थेरेपी ने मेरी काफी मदद की। डांस एंड मूवमेंट थेरेपी के दौरान मैंने खुद से प्यार करना सीखा। अपनी लाइफ की अहमियत समझी। धीरे-धीरे मैं खुश रहने लगी और अपनी जिंदगी से प्यार करने लगी। उसके बाद मुझे जीने के लिए किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ी।
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कैसे मददगार रही डांस एंड मूवमेंट थेरेपी
दिव्या बताती हैं कि डांस एंड मूवमेंट थेरेपी के दौरान मुझे एक ऐसी जगह मिली, जहां मैं फिर से मैं बन सकूं। इस काेर्स की सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि यहां मेरे अतीत के बारे में काेई नहीं जानता था। लेकिन फिर भी सभी एक-दूसरे के प्रति काफी संवेदनशील थे। सभी एक-दूसरे काे सपाेर्ट करते थे।
दरअसल, डिप्रेशन के दौरान मेरे मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे, जाे मैं किसी के साथ शेयर नहीं कर पाती थी। लेकिन डांस एंड मूवमेंट थेरेपी के जरिए मैं बिना कुछ बताए अपनी बाताें काे कह सकती थी। इस दौरान मैं वह सभी अपने एक्सप्रेशन से कह पा रही थी, जाे शब्दाें से नहीं कह सकती थी। यहां पर खुद से प्यार करना सिखाया जाता है, जीवन की अहमियत समझायी जाती है। साथ ही कॉन्फिडेंस लेवल काे भी डेवलप किया जाता है। डांस थेरेपी ने मुझे अपने करियर के बारे में साेचने का एक नया नजरिया दिया।
परिवार वालाें ने किया पूरा सपाेर्ट
डिप्रेशन के दौरान मेरी कंडीशन देखकर मेरे परिवार वाले बहुत दुखी और चिंतित हाे गए थे। उन्हें मेरे वर्तमान और भविष्य की चिंता हाेने लगी थी। लेकिन उन्हाेंने कभी मुझे ऐसा महसूस नहीं हाेने दिया कि मैं मानसिक रूप से बीमार हूं। मेरे माता-पिता, दादी, भाई-बहनाें और मेरे अंकल-आंटी ने मुझे पूरा सपाेर्ट किया। मैं ज्वाइंट फैमिली में रहती हूं, परिवार के सभी सदस्य हर स्थिति में वे मेरे साथ खड़े रहें। शायद यही वजह है कि मैं इस डिप्रेशन से उभर पाई।
डिप्रेशन में आने वाले लाेगाें काे दिया ये सुझाव
दिव्या बताती हैं कि डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है। इसमें व्यक्ति स्ट्रेस फील करता है और उसे अकेला रहना पसंद हाेता है। अगर काेई व्यक्ति ऐसा महसूस कर रहा है, ताे उसे अपना खास ख्याल रखना चाहिए। खुद से प्यार करने की काेशिश करनी चाहिए। अपने लिए समय निकालना चाहिए, आपकाे क्या पसंद है क्या पसंद नहीं है इसका ध्यान रखना चाहिए। स्ट्रेस से उभरने के लिए सबसे जरूरी है मी टाइम (खुद के लिए समय) निकालना। आप काफी हद तक अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव करके भी डिप्रेशन से उभर सकते हैं। लेकिन अगर लंबे समय तक आप स्ट्रेस फील करें या आप में डिप्रेशन के अन्य लक्षण दिखे, ताे मनाेचिकित्सक से जरूर कंसल्ट करें। दिव्या बताती हैं कि वैसे ताे कुछ मामलाें में लाेग सेल्फ केयर से ही डिप्रेशन से उभर सकते हैं, लेकिन कुछ मामलाें में मेडिकेशन की जरूरत भी पड़ती है।
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