भारत में स्‍ट्रोक से हर साल होती है 60 लाख मौतें, जानिए लॉकडाउन के दौरान इससे कैसे बचें

लॉकडाउन के दौरान नॉन-कोविड इमरजेंसीज को लेकर सजग रहने की आवश्‍यकता है। इस विषय पर विस्‍तार से प्रकाश डाल रहे हैं कार्डियोलॉजिस्‍ट, डॉ. श्रीनिवास एल।
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भारत में स्‍ट्रोक से हर साल होती है 60 लाख मौतें, जानिए लॉकडाउन के दौरान इससे कैसे बचें

महामारी के प्रकोप ने भारत सहित अधिकतर देशों के हेल्‍थकेयर सिस्‍टम को हिलाकर रख दिया है। लेकिन एक चीज ऐसी है जिसे बदला नहीं जा सकता, और वह है देश में गैर-संचारी रोगों का बोझ जिसका सामना हमें अभी भी करना पड़ रहा है। कोविड-19 संकट के दौरान, सरकारों ने लोगों से घरों पर रहने का अनुरोध किया है ताकि नोवेल कोरोना वायरस (COVID-19)  को फैलने से रोका जा सके। हालांकि, इस अनुरोध ने दूसरी जानलेवा इमरजेंसी जैसे- स्‍ट्रोक के इलाज पर रोक लगा दी है। क्‍योंकि लोग वायरस के संक्रमण में आने के डर से अस्‍पताल जाने से डर रहे हैं।

हालांकि, भारत में ऐसे कोई आंकड़े उपलब्‍ध नहीं हैं, पर रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका और ब्रिटेन में स्‍ट्रोक के लिए अस्‍पताल जाने वाले लोगों की संख्‍या में गिरावट आई है। इसलिए, इस पड़ाव पर स्‍ट्रोक के किसी भी लक्षण को लेकर सजग रहने के बारे में जनता में जागरुकता फैलाना महत्‍वपूर्ण है। इन लक्षणों में बोलने संबंधी समस्‍यायें और हाथों एवं चेहरे में कमजोरी आना शामिल है। इस रोग को अपवाद मानते हुए, व्‍यक्ति को फौरन अस्‍पताल जाना चाहिए।

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इंडियन स्‍ट्रोक एसोसिएशन के मु‍ताबिक, 17 मिलियन (1.7 करोड़) लोगों को हर साल स्‍ट्रोक होता है और इनमें से 6 मिलियन (60 लाख) की मौत हो जाती है और पांच मिलियन स्‍थायी रूप से विकलांग हो जाते हैं। इसके अलावा, स्‍ट्रोक से होने वाली 80 प्रतिशत मौतें अपर्याप्‍त निरोधात्‍मक एवं स्‍ट्रोक प्रबंधन सुविधाओं के कारण निम्‍न व मध्‍यम आय वाले देशों में होती हैं। इसमें भारत भी शामिल है। 

कैसे होता है स्‍ट्रोक?

ज्‍यूपिटर हॉस्पिटल मुंबई के पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्‍ट, डॉ. श्रीनिवास एल के मुताबिकस्‍ट्रोक के कई कारण हैं। पीएफओ (A patent foramen ovale) से अप्रत्‍याशित शंट भी ऐसा ही एक कारण है। गर्भाशय में सभी भ्रूण में एक छोटी सी ओपेनिंग होती है जिसे फोरामेन ओवेल कहते हैं। यह दायें और बायें आट्रिया के बीच एक दीवार में होती है। इस छेद से अम्बिलिकल ब्‍लड दायें आट्रियम (परिकोष्‍ठ) से बायें आट्रियम में जाता है। जब नवजात बच्‍चे की पहली सांस से फेफेड़े फूलते हैं, तो फोरामेन ओवेल फंक्‍शनली बंद हो जाता है और यह तकरीबन 75 प्रतिशत मामलों में कुछ महीनों में ही पूरी तरह से सील हो जाता है। लेकिन शेष 25 प्रतिशत में, इस स्थिति को पेटेंट फोरामेन ओवेल (पीएफओ) कहा जाता है। 

पीएफओ में रक्‍त की कम मात्रा हृदय के दायीं ओर से बायीं ओर गुजरती है। अधिकतर लोगों में, पीएफओ से कोई मेडिकल परेशानी नहीं होती है और इसमें किसी उपचार की जरूरत नहीं पड़ती। दुर्लभ मामलों में यह हृदय में खून के थक्‍के को दायीं ओर से बायीं ओर गुजरने की अनुमति देता है और फिर यह दिमाग तक चला जाता है और वहां यह ब्‍लड वेसल को ब्‍लॉक कर सकता है जिससे स्‍ट्रोक पड़ता है।

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यह स्थिति बहुत आम है, पीएफओ के साथ जी रहे अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं है कि उन्‍हें यह बीमारी है क्‍योंकि इसके कोई लक्षण नहीं होते हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि यदि किसी व्‍यक्ति को गंभीर माइग्रेन, ट्रांसिएंट इश्‍चेमिक अटैक या स्‍ट्रोक जैसे लक्षण हैं। यह स्थिति आम आबादी की एक तिहाई आबादी में है जोकि 40 से 50 प्रतिशत रोगियों में बढ़ जाती है जिन्‍हें बिना किसी कारण स्‍ट्रोक होता है, इसे क्रिप्‍टोजेनिक स्‍ट्रोक भी कहते हैं। 

कुछ रोगियों में, पीएफओ के साथ आट्रियल फाइब्रिलेशन भी हो जाता है जिससे स्‍ट्रोक का खतरा बढ़ता है। पीएफओ की पहचान इकोकार्डियोग्राम से होती है। इसे कार्डियक इको भी कहते हैं। इसमें अल्‍ट्रासाउंड की मदद से हृदय की इमेज बनाई जाती है।

कम से कम चीरफाड़ वाली तकनीकों के साथ स्‍ट्रोक को मैनेज करना 

स्‍ट्रोक के रोगियों को कारण जानने के लिए न्‍यूरोलॉजिस्‍ट द्वारा पूरी तरह से जांच करने की जरूरत होती है। यदि व्‍यापक जांच के बाद पीएफओ दोषी होता है, तो यह उपचार की आसान समस्‍या है। ऑक्‍लूडर जैसे उपकरणों के साथ पीएफओ को बंद करने के लिए कम से कम चीरफाड़ वाली प्रक्रिया ड्रग थेरैपी की तुलना में दूसरे स्‍ट्रोक की संभावना को कम देती है। प्रक्रिया के दौरान, डॉक्‍टर अपर लेग की वेन में कैथेटर नामक पतला धागा डालता है और ऑक्‍युलेड को ब्‍लड वेसल के जरिये हार्ट तक पहुंचाता है। 

एक बार डिवाइस पीएफओ पर लग जाती है तब कार्डियक इमेजिंग टूल्‍स की मदद से उसकी स्थिति की जांच की जाती है। कार्डियोलॉजिस्‍ट जब डिवाइस की सेटिंग से संतुष्‍ट होता है, तो इसे स्‍थायी रूप से हार्ट में छोड़ दिया जाता है। इस पर समय के साथ हार्ट टिश्‍यू विकसित हो जाते हैं, और डिवाइस को हार्ट का हिस्‍सा बना देते हैं।

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डॉ. श्रीनिवास एल कहते हैं, "हम संचारी और गैर-संचारी रोगों जैसेकि स्‍ट्रोक के दोहरे बोझ का सामना कर रहे हैं जोकि भारत में मौतों एवं विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक बन गया है। स्‍ट्रोक को रोकने के लिए, लोगों में जागरुकता फैलाने की अत्‍यंत आवश्‍यकता है। साथ ही हमें हेल्‍थकेयर के अलग-अलग स्‍तरों पर क्षमता निर्माण भी करना होगा। तकनीकी प्रगति गुणवत्‍तापूर्ण उपचार के लिए मार्ग प्रशस्‍त कर रही हैं और हेल्‍थकेयर इंडस्‍ट्री में पहले से कहीं अधिक बदलाव ला रही है। कोविड-19 के समय में जितने भी चिकित्‍सा उपचार उपलब्‍ध हैं, उनमें हृदय को स्‍वस्‍थ बनाए रखकर जीवन जीना अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है। हृदय को स्‍वस्‍थ बनाए रखने के लिए शारीरिक गतिविधि को बढ़ाएं, हेल्‍दी डाइट लें, स्‍मोकिंग से बचें और अल्‍कोहल का सेवन सीमित कर दें। साथ ही तनाव को भी कम करें।"

नोट: यह लेख ज्‍यूपिटर हॉस्पिटल मुंबई के पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्‍ट, डॉ. श्रीनिवास एल से हुई बातचीत पर आधारित है।

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