
बच्चा अगर ज्यादा एक्टिव है, पढ़ाई में ध्यान नहीं देता, शैतानी करता है या छोटी-छोटी चीजें जल्दी भूल जाता है, तो शुरुआत में पेरेंट्स को ये नॉर्मल लगता है। लेकिन जब ये लक्षण रोजमर्रा की जिंदगी और बच्चे की परफॉर्मेंस को प्रभावित करने लगते हैं, तो पेरेंट्स की चिंता शुरू होती है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर के पास जाने पर संभव है कि वह इसे ADHD बताएं। पिछले 24 घंटे में ADHD गूगल ट्रेंड्स पर ट्रेंड कर रहा है। ADHD यानी Attention Deficit Hyperactivity Disorder एक न्यूरो-डेवलपमेंटल कंडीशन है। अब आपके मन में सवाल आएगा कि अगर किसी बच्चे को ADHD है, तो इसका पता लगाने के लिए कौन से टेस्ट होते हैं? दरअसल इस कंडीशन का पता लगाने के लिए कोई एक ब्लड टेस्ट या ब्रेन स्कैन मौजूद नहीं है। इसकी सही पहचान के लिए कई तरह के मूल्यांकन की जरूरत होती है। इस बारे में जानने के लिए हमने बात की Sharda Care, Health City, Noida के General Physician and Internal Medicine Specialist, Dr Bhumesh Tyagi से। आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा।
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डॉक्टर क्या कहते हैं?
डॉ भूमेश बताते हैं कि बच्चों में ADHD का पता लगाने के लिए कोई एक टेस्ट नहीं, इसलिए कई चीजों पर गौर करके और कुछ पैमानों के आधार पर इसका पता लगाया जाता है। उनके अनुसार, “ADHD का कोई सिंगल टेस्ट नहीं है। प्रक्रिया में बच्चे और माता-पिता का क्लिनिकल इंटरव्यू, स्टैंडर्डाइज्ड रेटिंग स्केल्स (जो पैरेंट्स और टीचर्स भरते हैं) और एक फिजिकल एग्जाम शामिल होता है, ताकि दूसरी मेडिकल कंडीशन्स को रूल आउट किया जा सके। सही डायग्नोसिस के लिए अलग-अलग जगहों, जैसे- घर, स्कूल और सोशल सिचुएशन्स- से जानकारी ली जाती है, ताकि यह कंफर्म हो सके कि लक्षण हर जगह मौजूद हैं और बच्चे की डेली लाइफ को प्रभावित कर रहे हैं।”
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ADHD की पहचान के लिए किए जाने वाले टेस्ट और असेसमेंट
आइए विस्तार से जानते हैं कि किसी बच्चे या वयस्क में ADHD की जांच के लिए कौन से जरूरी टेस्ट व चरण हैं।
1. क्लिनिकल इंटरव्यू और बिहेवियरल असेसमेंट
सबसे पहले तो डॉक्टर ADHD के लक्षणों के आधार पर बच्चे और माता-पिता से बातचीत करते हैं। इसमें रोजमर्रा की एक्टिविटीज, पढ़ाई-लिखाई, नींद की आदत और पारिवारिक इतिहास से जुड़ी जानकारियां ली जाती हैं। कई बार बच्चे के टीचर्स से भी फीडबैक लिया जाता है।
2. ADHD रेटिंग स्केल्स
ADHD के लिए कुछ स्टैंडर्ड रेटिंग स्केल हैं। इसके लिए कुछ सवालों की एक लिस्ट है, जिसे पैरेंट्स और टीचर्स भरते हैं। इन सवालों के जरिए यह देखा जाता है कि बच्चे के लक्षण कितने गंभीर हैं और कितनी बार दिखाई देते हैं।

3. न्यूरोसाइकोलॉजिकल टेस्ट
ये टेस्ट दिमाग की क्षमताओं जैसे मेमोरी, अटेंशन, फोकस और डिसीजन-मेकिंग को जांचते हैं। उदाहरण के लिए Continuous Performance Test (CPT) से पता चलता है कि बच्चा कितनी देर तक ध्यान बनाए रख सकता है।
4. मेडिकल और साइकोलॉजिकल इवैल्यूएशन
कई बार ADHD जैसे लक्षण थायरॉइड प्रॉब्लम, नींद की कमी, डिप्रेशन या एंग्जायटी की वजह से भी हो सकते हैं। इसलिए डॉक्टर फिजिकल चेकअप और ब्लड टेस्ट के जरिए दूसरी बीमारियों का भी पता लगाने की कोशिश करते हैं।
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5. ऑब्जर्वेशन
डॉक्टर या मनोवैज्ञानिक बच्चे को अलग-अलग परिस्थितियों में ऑब्जर्व भी करते हैं। जैसे घर, स्कूल या खेल का माहौल। इससे समझ आता है कि लक्षण हर जगह दिखाई देते हैं या सिर्फ एक खास जगह पर।
कुल मिलाकर ADHD की पहचान के लिए कोई एक सिंगल टेस्ट नहीं होता। यह एक पूरा प्रोसेस है, जिसमें क्लिनिकल इंटरव्यू, रेटिंग स्केल्स, न्यूरोसाइकोलॉजिकल टेस्ट और फिजिकल एग्जाम, सभी शामिल होते हैं। अगर आपके बच्चे में ध्यान न लगना, हाइपरएक्टिविटी या इम्पल्सिव बिहेवियर जैसी समस्याएं लगातार दिख रही हैं, तो किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह जरूर लें। सही समय पर डायग्नोसिस और थेरेपी से बच्चे की पढ़ाई और जिंदगी दोनों पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।
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