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दो छात्रों की आत्महत्या के बाद RGUHS हॉस्टल के पंखों पर लगाएगा एंटी-सुसाइड डिवाइस, लेकिन क्या ये पर्याप्त है?

कॉलेज होस्टलों में बढ़ते आत्महत्या के मामलों के बीच RGUHS ने फैन में एंटी-सुसाइड डिवाइस लगाने का फैसला किया है। जानें स्टूडेंट्स सुसाइड क्यों कर रहे हैं और कैसे रोकी जा सकती हैं ऐसी घटनाएं।
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दो छात्रों की आत्महत्या के बाद RGUHS हॉस्टल के पंखों पर लगाएगा एंटी-सुसाइड डिवाइस, लेकिन क्या ये पर्याप्त है?


कॉलेज स्टूडेंट्स में आत्महत्या की घटनाएं अब सिर्फ 'न्यूज' नहीं रह गईं, बल्कि चिंता का विषय बन चुकी हैं। हाल ही में मांड्या इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (MIMS) में 2 हफ्तों के भीतर दो छात्रों के आत्महत्या की घटना ने सभी को झकझोर दिया। पिछले दो दिनों में राष्ट्रीय स्तर पर इस घटना की इतनी चर्चा हुई है कि यह घटना Google Trends पर ट्रेंड कर रही है। घटना के बाद Rajiv Gandhi University of Health Sciences (RGUHS) ने कॉलेज हॉस्टल्स के पंखों में अब एंटी-सुसाइड डिवाइस लगाने का फैसला लिया है। आपको बता दें कि मांड्या इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (MIMS) कर्नाटक सरकार का एक स्वायत्तशासी सरकारी मेडिकल कॉलेज है और यह राजीव गांधी स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (RGUHS) से संबद्ध है।

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फोटो: गूगल पर बढ़ता ट्रेंड (साभार गूगल ट्रेंड्स)

हॉस्टल के पंखों में एंटी सुसाइड डिवाइस लगाने का यह फैसला एक सराहनीय कदम है। यह एक ऐसा डिवाइस है, जो पंखे में तय सीमा से ज्यादा वजन आते ही उसे हुक से अलग कर देगा, साथ ही एक अलार्म को एक्टिवेट कर देगा, जिससे व्यक्ति को तुरंत सहायता मिल सके। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये कदम वाकई छात्रों में सुसाइड की घटना रोकने में कारगर साबित होगी? आर्टिकल में आगे हम इस बारे में भी बात करेंगे कि बच्चों में सुसाइड की समस्या को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है। लेकिन इससे पहले समझते हैं समस्या कितनी बड़ी है और इसके क्या कारण हैं।

समस्या बहुत गहरी है, हल सिर्फ डिवाइस नहीं

आंकड़ों पर नजर डालें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर दिन औसतन 35 स्टूडेंट्स आत्महत्या करते हैं। साल 2022 में ऐसी घटनाओं की संख्या 13,044 थी। इनमें सबसे ज्यादा मामले 18 से 25 साल की उम्र के छात्रों के थे। रिपोर्ट के मुताबिक छात्रों में सुसाइड के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र (1764 मामले) से सामने आए थे। इसके अलावा तमिलनाडु में 1416 मामले, मध्य प्रदेश में 1340 मामले, उत्तर प्रदेश में 1060 मामले और झारखंड में 824 मामले सामने आए थे। रिपोर्ट यह भी बताती है कि कुल मामलों में से 58.2% मामलों में छात्रों में फांसी लगाकर खुद को खत्म किया। इसलिए हॉस्टल्स में ऐसे डिवाइस को लगाकर कुछ हद तक तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है। लेकिन यह इस समस्या का स्थाई हल नहीं हो सकता। एक नजर डालते हैं उन कारणों पर, जिनके कारण छात्रों में आत्महत्या की ये दुखद घटनाएं सामने आती हैं।

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आखिर क्यों कर रहे हैं स्टूडेंट्स सुसाइड?

1. अत्यधिक एकेडमिक प्रेशर
मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसे फील्ड्स में कॉम्पिटिशन का दबाव जानलेवा होता जा रहा है। पढ़ाई का भारी दबाव और सफल होने की होड़ कई बार युवाओं मन में एक अनकहा बोझ बन जाती है।

2. अकेलापन और हॉस्टल कल्चर
घर और परिवार से दूर हॉस्टल के अकेलेपन में वे अपनी भावनाओं को किसी से साझा नहीं कर पाते। ऐसे में इमोशनल सपोर्ट की कमी कई बार ऐसी घटनाओं का कारण बनती है।

3. मेंटल हेल्थ सपोर्ट की कमी
भारत के ज्यादातर कॉलेजों में काउंसलिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है या है भी तो भगवान भरोसे है। ज्यादातर जगहों पर न तो योग्य काउंसलर होते हैं और न ही छात्रों को इस बारे में पर्याप्त जानकारी दी जाती है।

4. सोशल मीडिया प्रेशर
सोशल मीडिया का दबाव भी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहा है। यहां हर कोई अपनी “फेक परफेक्शन" को दिखाता है, जिससे युवा दूसरों की "परफेक्ट" जिंदगी से अपनी तुलना करते हैं और खुद को नाकाम और नाकाबिल समझने लगते हैं।

डिवाइस लगाना ठीक, लेकिन जरूरत सही गाइडेंस की

RGUHS कॉलेज का पंखों पर एंटी सुसाइड डिवाइस लगाने का फैसला ठीक तो है लेकिन ऐसी घटनाओं को कम करने के लिए कॉलेजों में नियमित मेंटल हेल्थ स्क्रीनिंग की व्यवस्था होनी जरूरी है। इसके लिए हर कॉलेज में प्रशिक्षित काउंसलर मौजूद होने चाहिए, और सबसे जरूरी बात यह है कि समाज के तौर पर हमें ऐसा माहौल बनाना होगा कि जहां अपनी निजी जिंदगी की परेशानियां शेयर करना, मजाक का विषय या कमजोरी न माना जाए, बल्कि व्यक्ति को खुल कर बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए या जरूरी मदद पहुंचाई जाए।

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क्या बच्चों में सुसाइड को रोकने के लिए कुछ किया जा सकता है?

भाटिया हॉस्पिटल, मुंबई की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ फोरम मटालिया (Dr. Foram Matalia, Clinical Psychologist, Bhatia Hospital, Mumbai) के अनुसार सुसाइड के मामलों को रोकने के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक तौर पर कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

लाइफ स्किल्स और करियर गाइडेंस
स्कूल और कॉलेज में बच्चों को ऐसी ट्रेनिंग और गाइडेंस देना जरूरी है, जिससे वे तनाव से निपटना सीखें और मानसिक रूप से मजबूत बनें।

मानसिक स्वास्थ्य को शर्म का विषय न समझें
मानसिक स्वास्थ्य को शर्म का विषय न बनाना सिर्फ स्कूल कॉलेजों को नहीं, हमें भी अपने घर-परिवार में बच्चों को ऐसा माहौल देने की जरूरत है, जिससे बच्चे अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात कर सकें।

सपोर्ट नेटवर्क बनाएं
स्कूल-कॉलेज और सोसाइटी में ऐसे ग्रुप और नेटवर्क तैयार करने की जरूरत है, जहां लोग अपनी समस्याएं साझा कर सकें और एक-दूसरे से मदद पा सकें।

बात करें और मदद के लिए आगे आएं
अगर कोई अपना अचानक चुपचाप रहने लगे, ज्यादा सोने या कम सोने लगे, सोशल एक्टिविटी से दूरी बनाने लगे या बार-बार नेगेटिव बातें करे, तो यह संकेत हो सकते हैं कि वह परेशान है। ऐसे में जज किए बिना उसकी बात सुनना और मदद दिलवाना जरूरी है।

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मां-बाप बच्चों भी दें ध्यान

बच्चों का खास ध्यान रखना चाहिए। अगर आपका बच्चा अकेला या उदास महसूस करे, तो उसे अकेला न छोड़ें। उससे खुलकर बात करें और समझने की कोशिश करें कि उसे क्या परेशान कर रहा है। अगर आपको बच्चे के व्यवहार में कोई बदलाव दिखे, तो उसे अनदेखा न करें। इस स्थिति में आप स्कूल के टीचर या दोस्तों की मदद ले सकते हैं। इस दौरान बच्चों को केवल काउंसलिंग या दवाइयों की नहीं, बल्कि परिवार के प्यार और साथ की भी बहुत जरूरत होती है।

इन सुझावों का मकसद है कि हम सब मिलकर मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं और आत्महत्या के मामलों को रोकने में मदद करें।

 

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