Sleeplessness in middle age may lead to dementia in Hindi: स्वस्थ रहने के लिए नींद का ध्यान रखना काफी जरूरी होता है। अधूरी नींद सेहत से जुड़ी कई समस्याओं का कारण बन सकती है। स्लीपिंग पैटर्न खराब होने से हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और मोटापे जैसी समस्या हो सकती है। खराब स्लीपिंग पैटर्न केवल यही नहीं, बल्कि डिमेंशिया के जोखिम को भी बढ़ाता है। हाल ही में इंसर्म और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ता डॉ. सेवरीन साबिया द्वारा की गई एक स्टडी के मुताबिक बढ़ती उम्र में स्लीपिंग पैटर्न खराब होने से डिमेंशिया का जोखिम बढ़ता है। ठीक तरीके से नहीं सोना या कम नींद लेना बुढ़ापे में डिमेंशिया के जोखिम को तेजी से बढ़ाता है।
8 हजार लोगों पर की गई रिसर्च
नेश्नल इंस्टीट्यूट ऑन एजिंग (NIA) द्वारा लिए गए डेटा के मुताबिक कुल 8 हजार लोगों पर यह रिसर्च की गई है। जिनमें 50 से 60 वर्ष वाले लोगों को शामिल किया गया। सालभर तक निगरानी करने के बाद नतीजा सामने निकलकर आया कि जिन लोगों ने दिनभर में 6 घंटे या इससे कम की नींद ली थी, उनमें डिमेंशिया का खतरा ज्यादा रहता है। रात के समय में कम नींद लेने वाले लोगों में सामान्य लोगों की तुलना में डिमेंशिया का अधिक खतरा रहना रहता है।
अधूरी नींद डिमेंशिया का कारण कैसे बनती है?
नींद की कमी का डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी बीमारी से सीधा संबंध होता है। दरअसल, सोने के दौरान हमारा दिमाग ब्रेन सेल्स बनाता है। यह सेल्स सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूड दिमाग में जमा टॉक्सिन्स का सफाय करता है, जिससे दिमाग में प्लाक नहीं जमते हैं। इससे अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसे रोगों का खतरा कम होता है। वहीं, अगर आप एक अच्छी और क्वालिटी नींद नहीं लेते हैं तो इससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ता है। डिमेंशिया के पीछे काफी हद तक खराब लाइफस्टाइल भी जिम्मेदार माना जाता है। इससे बचने के लिए आपको अपने स्लीपिंग पैटर्न को सुधारने की जरूरत है।
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