किचन घर की सबसे हसीन जगह है, जहां मन से खाना बनाया जाता है और अपनेपन से परोसा जाता है। लेकिन कई बार यह प्यार टॉक्सिक भी हो जाता है। हमें पता ही नहीं होता कि यहां उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुएं, खासतौर पर कुछ कुकवेयर्स सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कोई नया डिनर सेट दिखा नहीं कि उसकी खूबसूरती पर मर मिटे और उसे खरीद लिया। अपनी सुविधानुसार मनमाने ढंग से उसका उपयोग भी करने लगे, बिना यह जाने कि कहीं इसका ऐसा उपयोग सेहत पर भारी तो नहीं पडेगा! जानें रोज इस्तेमाल में आने वाले ये बर्तन हमें किस तरह नुकसान पहुंचाते हैं। बता रहे हैं दिल्ली स्थित मूलचंद मेडिसिटी के इंटर्नल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. श्रीकांत शर्मा।
प्लास्टिक कुकवेयर्स
कई बार माइक्रोवेव में प्लास्टिक बोल रख कर खाना गर्म करना सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। जब माइक्रोवेव में प्लास्टिक कंटेनर में खाना रखा जाता है तो उससे कुछ ऐसे केमिकल्स निकलते हैं, जो पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। शोधों में पाया गया है कि इनसे कुछ खास तरह के कैंसर्स का खतरा बढ सकता है। जब तक कंटेनर पर माइक्रोवेव सेफ का लेबल न लगा हो, उसे गर्म करने न रखें।
प्लास्टिक की बॉटल्स लगभग हर घर में पानी के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। सामान्य तौर पर इन्हें 1 से 7 तक की रेटिंग दी जाती है। बॉटल की बाहरी तली में ये नंबर्स एक त्रिकोण के अंदर दिखते हैं, जिससे पता चलता है कि इनमें कितना टॉक्सिक प्रोडक्ट इस्तेमाल किया गया है। नंबर 3, 6 एवं 7 की रेटिंग वाली बॉटल्स ज्यादा टॉक्सिक होती हैं। नॉर्मल पेट (पीईटी) बॉटल्स को 1 की रेटिंग दी जाती है, जो सुरक्षित है। मगर इनमें गर्म पानी रखने या धूप के सीधे संपर्क में रखने से बचना चाहिए। सॉफ्ट ड्रिंक्स या जूस की बॉटल्स को पानी पीने या स्टोर करने के लिए न इस्तेमाल करें।
नॉन स्टिक कुकवेयर
महानगरीय किचन में आजकल टैफलोन कोटेड कुकवेयर्स का इस्तेमाल काफी हो रहा है। बनाने में आसान और सफाई में भी सरलता वाले ये कुकवेयर्स भारतीयों की रसोई में अपनी विशेष जगह बना रहे हैं। इनकी खोज करीब 70 साल पहले हुई थी। नॉन-स्टिक यूटेंसिल्स में एक खास केमिकल इस्तेमाल होता है, जिसे पीएफओए कहा जाता है। इसके अधिक और निरंतर इस्तेमाल का प्रभाव भ्रूण पर पड सकता है, जिससे बच्चे के थायरॉयड हॉर्मोन का स्तर गिरता है और इससे ब्रेन का विकास अवरुद्ध होता है, आइक्यू घटता है और बच्चों में बिहेवियरल समस्याएं हो सकती हैं।
द एन्वायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) के अनुसार पीएफओए के इस्तेमाल से सेहत को नुकसान हो रहा है। इस धातु के प्लांट्स में कार्यरत स्त्रियों को गर्भावस्था के दौरान कई परेशानियों के बाद प्लांट से हटाकर दूसरे प्लांट में शिफ्ट किया गया। नेल पॉलिश रिमूवर, आई ग्लासेज और पिज्जा बॉक्सेज की लाइनिंग में भी इस धातु का प्रयोग किया जाता है। टॉक्सि कोलॉजिस्ट्स के अनुसार यदि भविष्य में ऐसे कुकवेयर्स का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दें तो भी इनका असर खत्म होने में शरीर को 20 साल लग सकते हैं।
कुकिंग टें प्रेचर 260 डिग्री के आसपास पहुंचते ही ये केमिकल्स डिग्रेड होने लगते हैं और कुछ फ्यूम्स रिलीज करते हैं, जिससे फ्लू जैसे लक्षण पनपते हैं। चिकित्सीय भाषा में इसे पोलिमर फ्यूम फीवर कहा जाता है। ऐसे कुकवेयर्स के लगातार इस्तेमाल से पैंक्रियाज, लिवर और टेस्टिस संबंधी कैंसर, कोलाइटिस, प्रेग्नेंसी में हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कोटिंग छूटने लगे तो बर्तन और हानिकारक हो सकता है। ऐसे बर्तनों के इस्तेमाल से बचें। लाइटवेट कुकवेयर्स जल्दी गर्म हो जाते हैं, इसलिए नॉन-स्टिक कुकवेयर खरीदते समय ध्यान रखें कि ये हेवी वेट वाले हों। स्क्रेच से बचाने के लिए इनमें मेटल स्पूंस के बजाय वुडेन स्पूंस का इस्तेमाल करें। स्टील वूल या स्क्रबर से बचा जाना चाहिए।
मेलामाइन कुकवेयर्स
मेलामाइन के बर्तन को उबालने के लिए इस्तेमाल न करें। इन्हें लंबे समय तक भी प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। एक नए अध्ययन के अनुसार मेलामाइन से बने प्लास्टिक बोल्स में गर्म खाना सर्व किया जाए तो केमिकल खाने में चला जाता है, जिससे किडनी स्टोन हो सकता है, किडनी टिश्यूज को नुकसान पहुंच सकता है। यूरिन संबंधी गडबडियां (कम यूरिन, यूरिन में ब्लड आना) और हाइ ब्लड प्रेशर की समस्या भी हो सकती है। मेलामाइन बोल में सामान्य तापमान पर फ्रूट्स रखना सही है, लेकिन इनमें एसिडिक, हॉट या लिक्विड फूड नहीं रखना चाहिए। मेलामाइन वाले माइक्रोवेव डिशेज का इस्तेमाल कम करना चाहिए।
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एल्युमिनियम कुकवेयर्स
ऐसे यूटेंसिल्स लाइटवेट, रस्ट-फ्री, सस्ते और आसानी से उपलब्ध होते हैं, लिहाजा किचन में इनका इस्तेमाल काफी होता है। लेकिन डॉक्टर्स कहते हैं कि इनका लंबे समय तक इस्तेमाल हानिकारक है। कारण यह है कि एल्युमिनियम वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया करता है और एल्युमिनियम ऑक्साइड रिलीज करता है। एल्यूमिनियम ऑक्साइड यूटेंसिल्स की तली में लेयर्स बना देता है। जब हम इन बर्तनों में खाना खाते हैं तो यह टॉक्सिक पदार्थ खाने के जरिये शरीर में चला जाता है। यह ब्रेन पर सीधे असर करता है। साथ ही, किडनी और रेनल को भी नुकसान पहुंचाता है। एल्युमिनियम से खाने में मौजूद विटमिंस व मिनरल्स कम होते हैं। नमक, चाय, सोडा, लेमन, टमाटर जैसी चीजें इनमें न रखें। चपाती रोल करने के लिए एल्युमिनियम फॉयल का प्रयोग होता है। इसकी भीतरी डल परत ही सुरक्षित कोटिंग है, जो खाने को नुकसान से बचाती है।
स्टील कुकवेयर्स
स्टील कुकवेयर्स सबसे कम हानिकारक हैं। आजकल कॉपर और एल्युमिनियम की लेयर वाले स्टील कुकवेयर्स चलन में हैं। ये मेटल्स हीट के अच्छे कंडक्टर हैं और जल्दी गर्म हो जाते हैं। इससे टॉक्सिक पदार्थ खाने में सीधे नहीं आ पाते। लेकिन स्टील कुकवेयर्स को स्टील वूल से न साफ करें।
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ग्लास कुकवेयर्स
लंबे समय तक एक से ग्लास कुकवेयर्स का इस्तेमाल सेहत को नुकसान पहुंचान सकता है। पुराने ग्लास पॉट्स से लीड टॉक्सिसिटी प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। वैसे पिछले 10 वर्षो से हो रहे निरंतर शोधों ने इन्हें काफी सुरक्षित बना दिया है।
सेहत को बचाएं ऐसे
- 1. हार्ड प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल न करें।
- 2. ऐसे कुकवेयर्स इस्तेमाल न करें, जिनकी कोटिंग उखडने लगे।
- 3. सिरेमिक यूटेंसिल्स में एसिडिक या खट्टे खाद्य पदार्थ न रखें।
- 4. ऐसे डिशवेयर्स का इस्तेमाल न करें, जिन्हें धोने के बाद उनमें डस्टी या चॉकी किस्म की लेयर दिखाई दे।
- 5. सिरेमिक या प्लास्टिक वेयर्स में गर्म लिक्विड्स जैसे सूप न रखें ।
- 6. नॉन-स्टिक कुकवेयर्स को केवल कम तापमान या आंच पर रखें। अगर पैन को खाली बिना ऑयल के आंच पर रखा जाए तो वह पांच मिनट के अंदर ही 800 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हीट पैदा करता है, जो खाने को दूषित कर सकता है।
इंदिरा राठौर
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