
दिवाली (diwali 2020) आने वाली है। ऐसे में हम में ज्यादातर लोग अपने घरों की लाइटिंग (diwali lights) और डेकोरेशन पर खास ध्यान देंगे। इस दौरान हमेशा की तरह बिजली बजाने के लिए ज्यादातर लोग LED लाइट्स का ही चुनाव करेंगे। लेकिन आपको ये जान कर हैरानी होगी ये बिजली बचाने वाला LED बल्ब (led bulb) आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। ये हम नहीं, बल्कि हाल ही में आया शोध बता रहा है। विश्व जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल साइकेट्री (World Journal of Biological Psychiatry)द्वारा किए गए एक शोध में बताया गया है कि एलईडी बल्ब का इस्तेमाल आपकी नींद और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। वो कैसे? तो इसके लिए सबसे पहले जान लेते हैं कि led बल्ब के नुकसान को लेकर क्या कहता है ये शोध।
led बल्ब के नुकसान को लेकर क्या कहता है ये शोध (disadvantages of LED)
दरअसल, पेरिस से ब्रुकलिन की परिषदों और स्थानीय सरकारों ने ऊर्जा-बचत वाले एलईडी बल्बों को सोडियम वाले बल्बों में बदल दिया है। इसके पीछे एक बड़ा कारण ब्लू लाइट के कारण स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान हैं। इस साल की शुरुआत में, विश्व जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल साइकेट्री ने प्रमुख मनोचिकित्सकों के एक समूह द्वारा एक पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें मानसिक बीमारी पर एलईडी लाइटिंग के संभावित नुकसानों से जुड़ी चेतावनी दी गई थी। इसने नींद पर ब्लू लाइट के प्रभाव, नींद की गड़बड़ियों से जुड़े लक्षणों और इससे किशोरों को होने वाले संभावित नुकसानों को लेकर चिंता जताई गई।
शोध में बताया गया कि कैसे led बल्ब के ब्लू रेज आंखों को ही नहीं, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इसकी जगह सोडियम वाले गर्म पीली रोशनी वाले ब्लब सेहत के लिहाज से ज्यादा सही हैं। शोध में कहा गया कि हममें से ज्यादातर लोग स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टीवी और घर में ब्लू लाइट के संपर्क में रहते हैं, जिससे हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर असर हो सकता है।
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led बल्ब के नुकसान (disadvantages of LED)
शोध में बताया गया है कि led बल्ब से निकलने वाली ब्लू रेज बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) को बढ़ावा दे सकते हैं। साथ ही ये अवसाद के कुछ लक्षणों को भी बढ़ावा दे सकते हैं। इससे अलग अगर हम इसके प्रारंभिक नुकसानों को देखें, तो ये led बल्ब हमारी नींद को प्रभावित करते हैं। ये हमारी स्लीर साइकिल को बिगाड़ देते हैं। इसके साथ ही इन ब्लब का इस्तेमाल हमारे मूड पर भी एक गहरा प्रभाव डालता है।
स्वस्थ वयस्कों पर नीली रोशनी के प्रभाव के अध्ययन से पता चलता है कि यह मेलाटोनिन के रिलीज को रोकता है जो नींद को बाधित करता है और जीवन की गुणवत्ता, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और बीमारी के लिए संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकता है। बच्चों और किशोरों में नींद की गड़बड़ी के कई अध्ययन नींद से जुड़ी बीमारियों और डिजिटल डिवाइस के उपयोग की आवृत्ति के बीच एक स्पष्ट और सुसंगत संबंध दिखाते हैं।
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लाइटिंग का हमारे मन पर प्रभाव
शिकागो के फीनबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के मनोचिकित्सा और इस रिसर्च पेपर की लेखक प्रोफेसर जॉन गॉटलीब की मानें, तो एलईडी बल्बों की डिम लाइट और उज्ज्वल पीली रोशनी वाले ब्लबों के प्रकाश की तुलना करें, तो उज्ज्वल पीली रोशनी वाले सोडियम बल्ब को रोशनी दिमाग पर सकारात्मक असर डालती है। वो कहती हैं, कि हमारे आस पास की लाइटिंग का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर एक गहरा प्रभाव पड़ता है। अगर ये लाइटिंग हमें खुशहाल लगती है, तो ये हमारे खराब मूड को भी बूस्ट करने का काम करती है। अगर ये डल और कम रोशनी वाली होती है, तो ये हमें दुखी कर सकती है और नेगेटिन थॉट्स को ट्रिगर करती है। प्रोफेसर जॉन गॉटलीब ये भी कहती हैं कि हमने अवसाद के कई रोगियों पर लाइटिंग का प्रभाव देखा है। इसने उन्हें ठीक करने में भी काफी मदद की है। इसके साथ ही सही लाइटिंग की वजह से उनका स्लीप साइकिल भी सही था।
नेशनल स्लीप फाउंडेशन के दिशानिर्देश बिस्तर पर जाने से 30 मिनट पहले प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं करने और बेडरूम से मोबाइल और टीवी जैसी चीजों को हटाने का सुझाव देते हैं। चूंकि एलईडी प्रौद्योगिकी तेजी से दुनिया भर में फैल गई है, ऐसे में लोगों को इसके नुकसानों के बारे में जागरूक करना और उन पर भरोसा दिलाना एक मुश्किल काम हो गया है।
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