जानें क्या है घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम का मामला, कब पड़ती है रिप्लेसमेंट की जरूरत

हिप रिप्लेसमेंट को आर्थोप्लास्टी भी कहते हैं। ये एक ऐसी सर्जरी है, जिसमें किसी खतरनाक रोग के होने पर रोगी के हिप ज्वाइंट को निकालकर उसकी जगह आर्टिफिशियल हिप ज्वाइंट सिस्टम लगाया जाता है।
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जानें क्या है घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम का मामला, कब पड़ती है रिप्लेसमेंट की जरूरत


अमेरिका की फार्मा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की सहायक इकाई ने भारत में 3600 घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम बेचे थे। इस बात का पता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की सरकारी समिति की रिपोर्ट में हुआ है। इसके साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए कहा कि कंपनी सभी मरीजों को 20-20 लाख रुपए मुआवजे के रूप में दे। समिति ने माना कि घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम के कारण 4 मरीजों की मौत हो गई है और हजारों मरीजों की जान खतरे में है क्योंकि इसमें घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया था। आइए आपको बताते हैं क्यों पड़ती है हिप रिप्लेसमेंट की जरूरत और किन खतरों के कारण मरीजों को है जान का खतरा।

क्यों पड़ती है हिप रिप्लेसमेंट की जरूरत

हिप रिप्लेसमेंट को आर्थोप्लास्टी भी कहते हैं। ये एक ऐसी सर्जरी है, जिसमें किसी खतरनाक रोग के होने पर रोगी के हिप ज्वाइंट को निकालकर उसकी जगह आर्टिफिशियल हिप ज्वाइंट सिस्टम लगाया जाता है। इस सर्जरी की जरूरत आमतौर पर उन लोगों को पड़ती है, जिनका हिप ज्वाइंट अपनी जगह से खिसककर नीचे चला जाता है। आमतौर पर ऐसा ऑस्टियोअर्थराइटिस, र्यूमेटॉइड अर्थराइटिस, हड्डियों के ट्यूमर या किसी चोट की वजह से हिप ज्वाइंट्स के टूटने के कारण होता है। हिप ज्वाइंट्स की इन समस्याओं के कारण मरीज को असहनीय दर्द के साथ-साथ चलने-फिरने और उठने-बैठने में परेशानी होने लगती है, तो डॉक्टर हिप रिप्लेसमेंट की सलाह देते हैं। आमतौर पर 50 से 80 साल की उम्र में इसकी जरूरत पड़ती है। कई बार जुवेनाइल अर्थराइटिस के कारण छोटे बच्चों और युवाओं में भी हिप रिप्लेसमेंट की जरूरत पड़ती है।

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कैसा होता है आर्टिफिशयल हिप ज्वाइंट

हिप ज्वाइंट्स में बॉल और सॉकेट होता है, जो मुलायम टिशूज से बने कार्टिलेज से ढका होता है। इस कार्टिलेज के ऊपर लुब्रिकेटिंग मेंब्रेन होता है, जिससे ये सुरक्षित रहे। जब हिप रिप्लेसमेंट किया जाता है, तो खराब हुई हड्डी और कार्टिलेज को निकाला जाता है और इसे प्रोस्थेटिक कंपोनेंट्स से बदला जाता है।  इस प्रक्रिया में खराब हो चुके हिप ज्वाइंट्स की जगह मेटल यानी धातु से बने सिस्टम को लगाया जाता है। कार्टिलेज की जगह धातु का ही सॉकेट लगाया जाता है, जिसे नट-बोल्ट और कई बार खास सीमेंट की सहायता से फिक्स किया जाता है। दोनों धातुओं में घर्षण को रोकने के लिए इनके बीच प्लास्टिक या सेरामिक का स्पेसर लगाया जाता है।

क्यों हुआ जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी का विवाद

दरअसल  हिप्स रिप्लेसमेंट के लिए पॉलीथीन और धातु से बने या पॉलीथीन और सेरामिक से बने सिस्टम को अच्छा और सुरक्षित माना जाता है। मगर जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी द्वारा बेचे गए आर्टिफिशियल सिस्टम मेटल ऑन मेटल की तकनीक पर आधारित हैं। ये सिस्टम कोबाल्ट, क्रोमियम और मेलिबडेनम जैसे तत्वों से बने हैं। इस सिस्टम को जिस रोगी के हिप्स के साथ रिप्लेस किया गया है उनके हिप्स के बॉल और सॉकेट चलने-फिरने के दौरान एक दूसरे से रगड़ते हैं, जिससे ये जल्दी खराब हो जाते हैं। इसके अलावा मुख्य समस्या ये है कि रगड़ने के कारण धातु के कण मरीज के रक्त में मिल जाते हैं, जिससे कई बार उन्हें जानलेवा स्थितियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में सभी मरीजों को दोबारा सर्जरी की जरूरत पड़ रही है। भारत में 2006 के बाद से अब तक कंपनी ने 4700 हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम बेचे हैं।

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जॉनसन एंड जॉनसन पर आरोप

जॉनसन एंड जॉनसन पर आरोप है कि उसने भारत में वे सिस्टम बेचे हैं, जिन्हें दुनिया के दूसरे कई देशों में पहले ही रिजेक्ट कर दिया गया था और कंपनी ने जिन्हें 2010 में वापस मंगा लिया था। फिर भी कंपनी ने सुरक्षा मानकों और लोगों के जान की परवाह किए बगैर भारत में ये सिस्टम बेचे।

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