ऑर्थोस्‍कोपिक सर्जरी क्‍या है, जानें कब पड़ती है इसकी जरूरत

जोड़ बदलने की सर्जरी या संयुक्‍त बदलने की सर्जरी का प्रयोग आर्थराइटिस जैसी बीमारी के इलाज के लिए किया जा रहा है। ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी या आर्थोप्लास्टी की मदद से आर्थराइटिस का सफल इलाज संभव हो पाया है।
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ऑर्थोस्‍कोपिक सर्जरी क्‍या है, जानें कब पड़ती है इसकी जरूरत


इस बात में कोई संदेह नहीं कि, चिकित्सा क्षेत्र में प्रतिदिन नये तरीके अपनाये जा रहे हैं। वो बीमारियां जिनका नाम सुनते ही लोग डर जाया करते थे, आज उनका इलाज आसानी से उपलब्ध है। ऐसी ही आजीवन रहने वाली बीमारियों में से एक है ‘आर्थराइटिस’।

अर्थराइटिस का दर्द इतना तीव्र होता है कि मरीज़ उठ बैठ भी नहीं पाता। कभी-कभी मरीज़ को हिलने-डुलने में भी तकलीफ होती है। अर्थराइटिस की चिकित्सा के लिए आज ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी का प्रयोग किया जा रहा है और इसे आर्थोप्लास्टी भी कहा जाता है।

 

नई दिल्ली, अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ जाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डाक्टर आर.के शर्मा  ने जाइंट रिप्ले‍समेंट सर्जरी पर प्रकाश डाला। जाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी का प्रयोग मुख्यत: नी रिप्लेसमेंट या हिप रिप्लेसमेंट के लिए किया जाता है। जाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी, वो प्रक्रिया है जिसमें खराब जोड़ों को नकली जोड़ों से बदल दिया जाता है और जोड़ों के आकार को ऐसा बनाया जाता है कि घुटनों को मोड़ने में कोई परेशानी ना हो।

यह सर्जरी आर्थराइटिस के मरीज़ों में बहुत ही सफल सिद्ध हुई है। इससे हड्डियों और जोड़ों में मजबूती आती है, जिससे जोड़ों को मोड़ने में तकलीफ नहीं होती, दर्द से राहत मिलती है और जोड़ों की विकृति भी ठीक की जा सकती है। सर्जरी के बाद ठीक होने में कितना समय लगता है, यह व्‍यक्ति के स्‍वास्‍थ्‍य पर निर्भर करता है। कभी-कभी सर्जरी के बाद मरीज़ के लिए जीवनशैली में बदलाव लाना बेहद आवश्यगक हो जाता है। कुछ मरीज़ों के लिए शारीरिक श्रम आवश्यक हो जाता है।

सर्जरी या आपरेशन के बाद पुनर्वास कार्यक्रम की सहायता से मरीज़ अपने जोड़ों में मजबूती और गति वापस पा सकता है। इस कार्यक्रम में मशीन के प्रयोग से जोड़ों को गतिशील बनाने का प्रयास किया जाता है। इसके बाद मरीज़ को बताया जाता है कि उसे किस प्रकार का व्यायाम करना है। 

गंगाराम अस्पताल के वरिष्ठ जाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डाक्टर ओ.एन नागी के शब्दों में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी के लिए मरीज़ को लगभग 2 से 3 दिनों तक अस्पताल में रहना होता है। सर्जरी के 6 हफ्तों बाद, अधिकतर मरीज़ छड़ी की मदद से आसानी से चलने में सफल होते हैं हैं। सात से आठ हफ्तों बाद मरीज़ कार तक चला सकता है।

टोटल नी रिप्लेसमेंलट के लिए अधिकतर मरीज़ों की उम्र 60 से 80 वर्ष की होती है। सर्जरी मरीज़ की स्थिति की आवश्यकता को देखते हुए की जाती है। हांलांकि सभी उम्र के लोगों में अबतक इस सर्जरी के परिणाम अच्छे आये हैं। 

डाक्टर ओ.एन नागी के शब्दों में जाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी की कुछ सीमाएं हैं :

•    सर्जरी के दौरान रक्तत के जमने का डर
•    संक्रमण का खतरा
•    अगर कोई पुरानी हृदय, गुर्दे या फेफड़े की बीमारी है, तो यह स्थिकति जटिल हो सकती है ।
•    कभी-कभी रक्त  संचार में भी समस्याकएं आती हैं। लेकिन इसमें संचार के दौरान फैलने वाली बीमारियों की संभावना कम होती है क्योंकि मरीज़ के ही रक्तै का इस्तेमाल होता है।

फोर्टिस अस्प‍ताल के वरिष्ठ जाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डाक्टर नवीन तलवार के अनुसार सर्जरी के बाद कुछ इस प्रकार की सावधानियां अपनायी जानी चाहिए।

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नी रिप्ले समेंट में सावधानियां:

•    जबतक आपका चिकित्सक आपसे ना कहे कि आप अपने पैरों पर अपना पूरा भार डालें, तबतक आप अपने पैरों पर अपना भार ना डालें।
•    बहुत से लोग सर्जरी के बाद घुटनों को मोड़ने से डरते हैं क्यों कि शुरू में घुटनों को मोड़ने में बहुत दर्द होता है। लेकिन घुटनों को मोड़ते रहना चाहिए।
•    जिन घुटनों को आपरेशन हुआ है उन्हें तकिये पर ना रखें।

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हिप रिप्लेसमेंट के बाद सावधानियां:

•    आपरेशन के बाद हिप को 90 डिग्री से अधिक ना मोड़ें।
•    अपने टखनों को छूने की कोशिश ना करें।
•    अधिक छोटी कुर्सी या सोफे पर ना बैठें।
•    पैरों को अंदर की तरफ ना मोड़ें।
•    ज़मीन पर बैठते समय सावधानी बरतें।

सर्जरी के बाद आप पहले की तरह चल-फिर सकते हैं और आपको असामान्य दर्द से भी रहत मिलेगी।

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