आज के समय में बदलती लाइफस्टाइल, तनाव, असंतुलित खानपान और बढ़ते हार्मोनल इंबैलेंस का सीधा असर लोगों की फर्टिलिटी पर पड़ रहा है। खासतौर पर महिलाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या लगातार बढ़ रही है। देर से शादी करना, पीरियड्स में गड़बड़ी, पीसीओडी/पीसीओएस, थायराइड और मोटापा जैसे कारणों से कई बार नेचुरल प्रेग्नेंसी संभव नहीं हो पाती। ऐसे में बच्चे की चाह रखने वाले कपल्स IVF (In Vitro Fertilization) का सहारा लेते हैं। IVF एक बेहद शारीरिक व मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया होती है, जिसमें महिला के शरीर को हार्मोनल इंजेक्शन्स और देखभाल की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया के दौरान हर छोटी बात मायने रखती है, चाहे वह खानपान हो, डेली रूटीन हो या फिर नींद की पोजीशन। जी हां, IVF के दौरान सोने की पोजीशन भी उतनी ही अहम होती है जितनी दवाओं और डॉक्टर की सलाह। सही तरीके से सोने से गर्भाशय में ब्लड फ्लो बेहतर होता है, भ्रूण के इम्प्लांटेशन में मदद मिलती है और IVF के सफल रिजल्ट की संभावना बढ़ जाती है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि IVF के दौरान सोने की सही पोजीशन क्या होनी चाहिए? इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए हमने जयपुर के दिवा अस्पताल और आईवीएफ केंद्र की प्रसूति एवं स्त्री रोग की विशेषज्ञ, लेप्रोस्कोपिक सर्जन और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शिखा गुप्ता (Dr. shikha gupta, Laparoscopic surgeon and IVF specialist, DIVA hospital and IVF centre) से बात की-
IVF के दौरान सही सोने की पोजीशन क्या है? - How to sleep during IVF process
IVF यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक नाजुक और संवेदनशील प्रक्रिया है, जिसमें महिला के हार्मोन, इम्यून सिस्टम और मानसिक स्थिति सब प्रभावित होते हैं। इस दौरान न सिर्फ लाइफस्टाइल का ख्याल रखना जरूरी है, बल्कि सोने की पोजीशन भी बहुत अहम होती है। सही तरीके से सोने से शरीर को आराम मिलता है, ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और यूट्रस (गर्भाशय) पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता, जिससे गर्भधारण की संभावना बढ़ सकती है।
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डॉ. शिखा गुप्ता के अनुसार, IVF के बाद लेफ्ट साइड यानी बाईं करवट सोना सबसे सुरक्षित और लाभकारी माना जाता है। बाईं तरफ सोने से यूट्रस और किडनी में ब्लड सप्लाई बेहतर होती है, जिससे इम्प्लांटेशन की संभावना बढ़ती है। IVF के दौरान सही पोजीशन बनाए रखने के लिए तकियों का सही उपयोग करना जरूरी है। बाईं करवट सोते समय पैरों के बीच एक तकिया रखना, पीठ के पीछे एक सहारा देना और गर्दन के लिए सपोर्टिव तकिया इस्तेमाल (ivf transfer ke baad kaise sona chahiye) करना चाहिए। इससे नींद के दौरान शरीर स्थिर रहता है और करवट बार-बार नहीं बदलती।
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IVF ट्रांसफर के बाद किन पोजीशनों से बचना चाहिए
IVF के बाद पेट के बल सोना पूरी तरह से टाला जाना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे यूट्रस पर सीधा दबाव पड़ता है। पीठ के बल सोना भी लंबे समय तक सही नहीं माना जाता। ऐसा इसलिए, क्योंकि इससे शरीर का वजन पीठ, फेफड़ों और हार्ट पर आ जाता है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है। इसके अलावा, सोते समय एक ही पोजीशन में घंटों तक लेटे रहना भी ठीक नहीं है। हर कुछ घंटे बाद पोजीशन थोड़ी बदलना फायदेमंद हो सकता है, लेकिन पेट के बल कभी न लेटें।
IVF के समय महिलाएं मानसिक रूप से काफी तनाव में रहती हैं। ऐसे में सिर्फ पोजीशन पर ध्यान देना पर्याप्त नहीं है, बल्कि मन को भी शांत रखना जरूरी है। योग, सांस की एक्सरसाइज और मेडिटेशन न केवल नींद की क्वालिटी बढ़ाते हैं, बल्कि सोने की पोजीशन को भी बनाए रखने में मदद करते हैं। अगर मन शांत रहेगा, तो शरीर की नींद भी अच्छी आएगी।
निष्कर्ष
IVF की प्रक्रिया भले ही चुनौतीपूर्ण हो, लेकिन एक शांत और संतुलित लाइफस्टाइल अपनाकर इस समय को आसान बनाया जा सकता है। नींद की समस्या को नजरअंदाज न करें। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह IVF के रिजल्ट पर सीधा असर डाल सकती है।
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FAQ
क्या IVF के बाद बेड रेस्ट करना पड़ता है?
IVF के बाद पूरी तरह बेड रेस्ट करना जरूरी नहीं होता, लेकिन हल्का-फुल्का आराम और भारी कामों से बचना जरूरी होता है। डॉक्टर आमतौर पर एम्ब्रियो ट्रांसफर के बाद 24–48 घंटे तक आराम की सलाह देते हैं, ताकि शरीर को रिकवर करने का समय मिले। हालांकि लंबा बेड रेस्ट करने से ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित हो सकता है, जिससे नुकसान भी हो सकता है।आईवीएफ ट्रांसफर के बाद क्या नहीं करना चाहिए?
IVF ट्रांसफर के बाद कुछ सावधानियां बरतना बेहद जरूरी होता है ताकि इम्प्लांटेशन में कोई रुकावट न आए। इस समय भारी सामान उठाने, सीढ़ियां तेजी से चढ़ने, हैवी एक्सरसाइज करने या पेट पर दबाव डालने वाले काम नहीं करने चाहिए। मानसिक तनाव, ज्यादा कैफीन, धूम्रपान और एल्कोहल से भी पूरी तरह दूर रहना चाहिए। ज्यादा देर तक एक ही पोजीशन में लेटे रहना भी ब्लड सर्कुलेशन के लिए हानिकारक हो सकता है।भ्रूण कितने दिन में चिपक जाता है?
IVF प्रक्रिया में एम्ब्रियो ट्रांसफर के बाद भ्रूण आमतौर पर 6 से 10 दिन के भीतर यूट्रस की दीवार (एंडोमेट्रियम) से चिपक जाता है, जिसे इम्प्लांटेशन कहा जाता है। यह समय हर महिला की शारीरिक स्थिति और भ्रूण की क्वालिटी पर निर्भर करता है। आमतौर पर 5 दिन के ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर के बाद इम्प्लांटेशन जल्दी (2 से 5 दिन में) हो सकता है। इस दौरान हल्का पेट दर्द या स्पॉटिंग होना सामान्य माना जाता है।