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वात, पित्त और कफ (त्रिदोष) को संतुलित करने के लिए इस तरीके से खाएं आंवला, दूर होंगी कई समस्याएं

त्रिदोष हमारे शरीर के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को कंट्रोल करते हैं। इनके असंतुलन से व्यक्ति को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
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वात, पित्त और कफ (त्रिदोष) को संतुलित करने के लिए इस तरीके से खाएं आंवला, दूर होंगी कई समस्याएं

वर्तमान समय में बिगड़ी लाइफस्टाइल, तनाव और अनियमित खानपान के कारण लोगों को कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आयुर्वेद की मानें तो शरीर में त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) शरीर की संपूर्ण कार्यप्रणाली का आधार माने जाते हैं। ये तीनों दोष हमारे शरीर के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को कंट्रोल करते हैं और जब शरीर में त्रिदोष संतुलन में होते हैं, तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है, लेकिन अगर इनमें असंतुलन हो जाता है, तो तरह-तरह की बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। त्रिदोष को कंट्रोल करने के लिए आयुर्वेद में आंवला का सेवन लाभकारी बताया गया है। बता दें कि आंवला आयुर्वेद में एक औषधि के रूप में जाना जाता है। यह त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने में बेहद लाभकारी होता है। इसके नियमित सेवन से शरीर में संतुलन बना रहता है, जिससे कई स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सकता है। इस लेख में आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा से जानेंगे कि त्रिदोष को संतुलित करने के लिए आंवला का सही तरीके से सेवन कैसे किया जाए।

त्रिदोष क्या है?

आयुर्वेद के अनुसार, त्रिदोष वात, पित्त और कफ से मिलकर बना होता है। जब ये तीनों तत्व संतुलन में होते हैं, तो शरीर स्वस्थ रहता है। अगर इनमें से कोई भी दोष असंतुलित होता है, तो शरीर में बीमारियां होने लगती हैं। वात दोष शरीर के तंत्रिका तंत्र को कंट्रोल करता है तो वहीं पित्त दोष पाचन और मेटाबॉलिज्म को कंट्रोल करता है। आंवला त्रिदोष को संतुलित करने के लिए एक बेहतरीन उपाय है, जो वात, पित्त और कफ सभी पर प्रभाव डालता है। जो आंवले सर्दियों के मौसम में मिलते हैं और छोटे-छोटे साइज के होते हैं उनका प्रयोग ही लाभकारी होता है। आयुर्वेद में आंवले को पंचरस प्रधान बताया गया है।

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त्रिदोष को संतुलित करने के लिए आंवला

डॉक्टर श्रेय बताते हैं कि वर्तमान समय में लोग आंवले का सेवन कई तरह से करते हैं, कोई इसको चूर्ण रूप में खाना पसंद करता है तो किसी को आंवले की कैंडी पसंद होती है। लेकिन समझने की बात ये है कि आंवले की कैंडी से शरीर को सिर्फ फाइबर मिलता है न कि इसके सभी पोषक तत्व। डॉक्टर श्रेय ने बताया कि आंवला कैंडी में कोई भी औषधीय गुण नहीं बचता है, वहीं अगर आप आंवले का जूस पीते हैं तो इसका असर शरीर पर सीमित समय तक ही काम करेगा। ऐसे में अगर आप आंवला के औषधीय गुणों का लाभ उठाना चाहते हैं तो इसका सेवन चूर्ण के रूप में करें और इस बात का खास ध्यान रखें कि चूर्ण अच्छी कंपनी का लें। डॉक्टर श्रेय बताते हैं कि आयुर्वेद में लिखा है कि आंवले के फल त्वक से बना चूर्ण ही लाभकारी होता है, अगर आपको आंवले का चूर्ण ज्यादा कड़वा लगता है तो हो सकता है कि उस चूर्ण में आंवले की गुठली का उपयोग भी हो। ऐसे में सिर्फ बिना गुठली के सिर्फ फल से बने आंवले के चूर्ण का ही सेवन करें, जो कि त्रिदोष को कंट्रोल करने में सहायक हो सकता है।

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आंवला का सेवन कैसे करें?

आंवला चूर्ण आयुर्वेदिक औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। आप इसे गुनगुने पानी या शहद के साथ मिलाकर सोते समय 1-3 ग्राम अपने शरीर के अनुसार सेवन कर सकते हैं। यह शरीर में तीनों दोषों को कंट्रोल करने में सहायक होता है। 

निष्कर्ष

आंवला त्रिदोष को संतुलित करने का एक आयुर्वेदिक उपाय है। इसके नियमित सेवन से न केवल वात, पित्त और कफ संतुलित रहते हैं, बल्कि शरीर को अन्य लाभ भी मिलते हैं। अगर आप अपने शरीर में संतुलन बनाए रखना चाहते हैं और प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो आंवला चूर्ण को अपनी डाइट में शामिल करें।

All Images Credit- Freepik

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