कोरोना वायरस का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है, ऐसे में अभी तक कोई भी वैक्सीन तैयार नहीं हुई है जो कोरोना वायरस के कहर को रोक सके। कई देश इसके वैक्सीन को लेकर काम कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कामयाबी न के बराबर ही है। हालांकि, कई ऐसी दवाएं हैं जो कोरोना वायरस को कम करने में मददगार साबित हो रही है। इस बीच अमेरिका ने मलेरिया की दवा को कोरोना वायरस के इलाज के लिए मंजूरी दे दी है।
अमेरिका का दावा
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बताया कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए मलेरिया की दवा को कारगर बताया है। डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन नामक एक मलेरिया और गठिया की दवा ने कोरोना वायरस के इलाज में काफी बेहतर परिणाम दिखाए हैं। 'इंटनेशनल जर्नल ऑफ एंटीमाइक्रोबियल एजेंट' में प्रकाशित हुए एक शोध के मुताबिक, मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन के साथ एक एंटीबॉयोटिक एजिथ्रोमाइसिन देने से कोविड यानी कोरोना वायरस का इलाज हो रहा है। शोध में पाया गया है कि क्लोरोक्वीन से करीब 25 फीसदी मरीज छह दिन में कोविड-19 के मरीज ठीक हो रहे हैं।
एफडीए ने बाजार को नहीं दी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की मंजूरी
एफडीए (Food and Drug Administration) के डायरेक्टर डॉक्टर स्टेफेन हॉन ने साफ किया कि ये दवाएं अभी क्लीनिकल ट्रॉयल के लिए इस्तेमाल की जाएंगी। इसके साथ ही नियंत्रण समूह के बीच संख्या सिर्फ 12.5 प्रतिशत थी। अध्ययन को बहुत छोटा माना जाता है, परिणाम बड़े वैज्ञानिक दवा परीक्षणों की शुरुआत की उम्मीद में जारी किए गए थे। यूएस एफडीए अब ऐसा करने की योजना बना रहा है।
वहीं, मेडिकल जर्नल क्लिनिकल इन्फेक्शियस डिजीज ने 9 मार्च को बताया कि प्रयोगशाला प्रयोगों में कोरोनोवायरस को मारने के लिए हाइड्रोक्साइक्लोरोक्वीन का एक ब्रांड-नाम संस्करण प्रभावी था। हालांकि, प्रमुख निष्कर्ष निकालने के लिए विशेषज्ञों की ओर स भी इस डेटा को पर्याप्त नहीं माना गया था।
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वैक्सीन की अनुपस्थिति में, कई उपचारों के लिए पहले से मौजूद दवाओं को सुरक्षित माना जाता रहा है। जिसका अर्थ है कि कोरोनोवायरस रोगियों के इलाज के लिए 'अनुकंपा के आधार' पर इस्तेमाल किया गया है। भारत में सबसे ज्यादा शोर यहां के लोगों में है जो एचआईवी और एंटी वायरल दवाओं का संयोजन है। जिनका इस्तेमाल जयपुर के एसएमएस अस्पताल में एक इतालवी दंपत्ति के इलाज के लिए किया गया था। छह राज्य पहले ही उपचार के तौर-तरीकों की तलाश के लिए अस्पताल पहुंच चुके हैं। लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने खुद ही चेतावनी दी थी कि उचित परीक्षण किए जाने तक ये 'प्रायोगिक' बने रहेंगे। जबकि दोनों ने उपचार के बाद नकारात्मक परीक्षण किया, जिसमें 69 साल के एक व्यक्ति की 5 मार्च को 20 दिनों के बाद मौत हो गई।
इससे पहले, भारतीय दवा अनुसंधान परिषद ने आपातकाल की मंजूरी मांगी थी, इससे पहले, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने कोविड से प्रभावित लोगों के इलाज के लिए एचआईवी-रोधी दवाओं के संयोजन के 'प्रतिबंधित उपयोग' की सहमति दी थी।
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मददगार हो सकती हैं ये दवा !
कई एक्सपर्ट्स ये साफ कह चुके हैं कि ये कोरोना वायरस जैसी जानलेवा बीमारी को खत्म करने में ये दवाएं हमारी मदद कर सकते हैं, लेकिन ये कोरोना वायरस की कोई दवा नहीं है। इसके साथ ही डॉक्टरों को इस तरह की दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए अगर उन्हें कोरोना वायरस से जुड़े कोई लक्षण नजर आते हैं। लेकिन आपको ये ध्यान रखना होगा कि सभी दवाएं एक जैसी नहीं बनी हुई हैं। जैसे मलेरिया को खत्म करने वाली दवा क्लोरोक्वॉइन उन लोगों के लिए सुरक्षित नहीं है जो किडनी, फेफड़ों और दिल की बीमारियों से ग्रस्त हैं।
आपको बता दें कि ये दवाएं सिर्फ कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। आप मलेरिया जैसी दवाओं को ही कोरोना वायरस की दवा न समझें। दुनियाभर के कई देश कोरोना से लड़े वाली वैक्सीन को तैयार करने पर काम कर रहे हैं। लेकिन अभी तक किसी एक दवाई की पुष्टि नहीं की गई हैं जो कोरोना वायरस से लड़ने में हमारी मदद करें।
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