21वीं सदी में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी लोग तकनीकि के बढ़ते प्रभाव को नकार नहीं सकते है। तकनीकी के बढ़ते प्रभाव में लोगो में सोशल मीडिया यानि फेसबु सरीखे प्लैटफार्म को भी काफी जगह दी है। आज बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी में इसका क्रेज देखा जा सकता है। पर फेसबुक से बढ़ता लगाव लोगों के जीवन में कई तरह के नाकारात्मक प्रभावों को पढ़ा रहा है। अपनी खुशी और गम को फेसबुक पर लिख देने वालों में अवसाद, अकेलापन जैसी बातें घर कर गई है। इसके नुकसान के बारे में जाने
- बदलते दौर में बच्चों व युवाओं पर तो फेसबुक का भूत इस कदर चढ़ गया है कि अब वे अपना हर दुख-दर्द व खुशी अपने फेसबुक फ्रेंड से शेयर कर रहे हैं। इससे न केवल उनकी पढ़ाई अपितु सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। जो वक्त उन्हें अपनी पढ़ाई में लगाना चाहिए, उसकी जगह वे फेसबुक पर लड़कियों से फ्लर्ट करते नजर आते हैं।
- बच्चों व युवाओं द्वारा फेसबुक पर ज्यादा देर तक समय बिताने से समाज में विकृति पैदा हो रही है, जिससे न केवल उनका स्वयं का नुकसान हो रहा है, अपितु वे अपने परिवारों से दूर होते जा रहे हैं। दिन भर दफ्तर में रहने के बावजूद शाम होते ही वे घर पर भी फेसबुक चलाने लगते हैं। जिससे न केवल उनका परिवार परेशान रहता है, अपितु वे रोजमर्रा के जरूरी काम भी नहीं कर पाते।
- अध्ययन बताता है कि 90% से ज्यादा किशोर जो सोशल मीडिया पर लगातार बने रहते हैं वह भावनात्मक परेशानियों से ग्रस्त पाए गए। यही परेशानियां बढ़ कर इनके युवा होने पर गंभीर मानसिक बीमारियों का रूप ले लेती हैं। यह बच्चों के लिए एक क्रेज़ के जैसा है जिसमें वह लगातार सोशल मीडिया से कनेक्ट रहना चाहते हैं।
- अक्सर रात भर जाग कर दोस्तों से चैट आदि करने के लिए बच्चे कई घंटे जागते हैं। इन आदतों के चलते बच्चे अक्सर चिढ़चिढ़े हो जाते हैं जो जल्द ही अवसाद का रूप ले लेता है। अमरीका के मिशिगन विश्वविद्यालय के एक शोध से ये पता चला है। मिशिगन विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार युवा जितना ज़्यादा फ़ेसबुक ब्राउज़ करते हैं, सुखी होने का एहसास और जीवन से संतुष्टि कम होती जाती है।
सतही तौर पर तो फ़ेसबुक से सामाजिक जुड़ाव की बुनियादी ज़रूरत पूरी होती दिखती है लेकिन इस शोध से पता चलता है कि सुखी होने का एहसास बढ़ाने के बजाय फ़ेसबुक का इस्तेमाल इसे कम कर सकता है।
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