बदलते जामाने के साथ फुटवेयर सेक्टर में तमाम नेशनल और मल्टीनेशनल कंपनियां अलग-अलग तरह चप्पल और जूते बना रहे हैं। मार्केट में आपको तमाम तरह के ब्रांडेड फुटवेयर मिल जाएंगे। जो सही मायने में केवल स्टाइलिश और फैशनेबल ही होते हैं लेकिन इसका आपकी सेहत से कोई लेना-देना नही होता है, हां ये जरूर है कि इससे आपके पैर सुरक्षित रहते हैं। लेकिन आज हम ऐसे फुटवेयर की बात करने जा रहे हैं जिसका चलन काफी कम हो चुका है। इसे आप कुछ चुनिंदा लोगों के पैरों में ही देख सकते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं खड़ाऊ की...
खड़ाऊ या चरण पादुका आज फैशन में नहीं है लेकिन इसका चलन भारत में हजारों वर्ष पुराना है, इसे बहुत ही उत्कृष्ठ फुटवेयर माना जाता रहा है। इसका प्रमाण आपको रामायण में भी मिलेगा। लकड़ी से निर्मित खड़ाऊं पहले ऋषि-मुनि करते थे। आज भी साधु और संत पादुका का ही प्रयोग करते हैं। प्राचीन भारत में विभिन्न प्रकार के खड़ाऊ बनाए जाते थे। कहीं पर इन्हें पांव के आकार का बनाया जाता था तो कहीं पर मछली के आकार का। कहीं-कहीं तो हाथी दांत या चांदी के भी खड़ाऊ बनाए जाते थे। इसे महिलाएं भी पहनती थी। आमतौर जैविक शक्तियों के बचाने के लिए साधु-संतों ने पैरों में खड़ाऊ पहनने की प्रथा शुरु की।
खड़ाऊ पहनने के स्वास्थ्य लाभ
1. खड़ाऊ पहनने से आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है और आपका बॉडी पॉश्चर सही रहता है।
2. यह पैर के कुछ एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स पर प्रेशर बनाते हैं, जिससे शरीर में सुचारू रूप से रक्त का संचार होता है।
3. सबसे खास बात यह है कि खड़ाऊ को निर्मित करने में किसी जानवर की हत्या नहीं की जाती है बल्कि यह लकड़ी से बनाया जाता है।
4. खड़ाऊ पहनने से पांव को सर्दी भी नहीं लगती और उबड़-खाबड़ रास्तों पर चलना भी आसान हो जाता है।
5. खड़ाऊ पहनने से आपके पैरों की मांशपेशियों को आराम मिलता है, जिससे आपका शरीर और दिमाग, दोनों तनावमुक्त होते हैं।
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