धूल-मिट्टी से हो जाती है बार-बार एलर्जी? जानें कैसे किया जाता है इसका इलाज

अगर आपको भी बार-बार छींक आती है तो ये डस्ट एलर्जी की ओर इशारा करता है। जानें इस समस्या का इलाज कैसे किया जाता है?

 
Vikas Arya
Written by: Vikas AryaUpdated at: Feb 14, 2023 16:34 IST
धूल-मिट्टी से हो जाती है बार-बार एलर्जी? जानें कैसे किया जाता है इसका इलाज

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कुछ लोगों को धूल व मिट्टी में जाते ही छींकें आने लगती है और ये सामान्य छींकों की तरह एक या दो बार नहीं आती। ऐसे में व्यक्ति को बार-बार छींक आने लगती है। आपको बता दें कि ये डस्ट एलर्जी (Dust Allergy) की ओर संकेत करता है। डस्ट एलर्जी में व्यक्ति को धूल व मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म बैक्टीरिया की वजह से एलर्जी होने लगती है। इस समस्या में कई बार व्यक्ति को बुखार, सांस लेने में परेशानी या गले में जलन की परेशानी हो सकती है। कई बार मरीज की सांसे तक फूलने लगती है। लेकिन इसे अस्थमा नहीं समझना चाहिए, क्योंकि धूल हटते ही व्यक्ति को आराम आने लगता है। ये समस्या किसी भी व्यक्ति को हो सकती है। मुख्य रूप से कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों को धूल की वजह से डस्ट एलर्जी होने की संभावना अधिक होती है। इस लेख में हम आपको डस्ट एलर्जी के कुछ सामान्य लक्ष्ण और इसके इलाज के बारे में बता रहे हैं।  

धूल से एलर्जा में क्या लक्षण दिखाई देते हैं? Dust Allergy Symptoms in Hindi  

  • व्यक्ति को बार-बार छींक आना,  
  • आंखें लाल हो जाना और आंख से पानी आना,  
  • नाक या गले में खुजली लगना,  
  • खांसी होना,  
  • सांस लेने में परेशानी होना,  
  • गले में सांस लेते समय गरगराहट की आवाज आना, आदि।  

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dust allergy in hindi

धूल से एलर्जी का इलाज कैसे किया जाता है? Dust Allergy Treatment in Hindi  

धूल से बचने के लिए आपको सबसे पहले घर से धूल को साफ रखना चाहिए। यदि आप डस्ट माइट (धूल के साथ रहने वाले सूक्ष्मजीव) के संपर्क में नहीं आते हैं तो आपको एलर्जी होने की संभावना बेहद कम हो जाती है। हालांकि धूल में मौजूद डस्ट माइट को पूरी तरह से हटा पाना मुश्किल है। आगे जानते हैं धूल से एलर्जी का इलाज कैसे किया जाता है।  

इस समस्या में डॉक्टर मरीज को नाक की एलर्जी को कम करने के लिए दवाएं देते हैं।  

एंटीहिस्टामाइन  

इस समय डॉक्टर ऐसी दवाएं देते हैं, जो मरीज की इम्यून सिस्टम में एलर्जी होने की संभावना बढ़ाने वाले कैमिकल को कम करती हैं। इससे मरीज को बार-बार छींक आना, नाक बहना व खुजली होने की समस्या में आराम मिलता है।  

कॉर्टिकोस्टेरॉयड  

इस तरह की दवाओं में मरीज को स्प्रे दिया जाता है। ये स्प्रे नाक की सूजन और हे फीवर को कम करने में सहायक होता है। आपको बता दें कि कॉर्टिकोस्टेरॉयड की टेबलेट की अपेक्षा स्प्रे से मरीज को साइड इफेक्ट होने की संभावना कम हो जाती है।  

नाक को खोलने वाली दवाएं  

ये दवाएं मुख्य रूप से एलर्जी की वजह से नाक के श्वसन मार्ग (नेजल पैसेज) के टिशू में सूजन को कम करती है। इसकी वजह से बंद नाक खुल जाती है और मरीज को सांस लेने में किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। लेकिन इन दवाओं से बीपी बढ़ने की संभावना अधिक होती है। इस वजह से डॉक्टर मरीज की मौजूदा मेडिकल कंडीशन और फैमिली हिस्ट्री को जानने के बाद ही ये दवाएं देते हैं।  

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ल्यूकोट्रीन मॉडिफायर 

इस तरह की दवाएं इम्यून सिस्टम के कैमिकल की सक्रियता को रोकने का काम करती है। लेकिन इस दवाओं के साइड इफेक्ट में सिर दर्द और बुखार को भी शामिल किया जाता है। इन दवाओं से मरीज को मूड स्विंग की परेशानी और तनाव भी हो सकता है।  

किसी भी तरह का इंफेक्शन होने पर यदि आपको सांस लेने में अधिक परेशानी हो रही है तो ऐसे में आपको तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। एलर्जी को लंबे समय तक नजरअंदाज करने से आपको कई अन्य समस्याओं होने की संभावना हो सकती है।  

 

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