कई बार जिंदगी हमें ऐसे मोड़ पर ले आती है जहां हमें हार मानने के अलावा कोई और रास्ता नजर नहीं आता, लेकिन हौसला और सही इलाज मिल जाए तो मुश्किल से मुश्किल लड़ाई भी जीती जा सकती है। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है 47 वर्षीय डीआरडीओ वैज्ञानिक देवेंद्र बारलेवार की, जिन्होंने तीन बार किडनी ट्रांसप्लांट करवाकर एक नई जिंदगी पाई। आज उनके शरीर में कुल पांच किडनियां हैं और वह स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। जनवरी 2025 में फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में देवेंद्र बारलेवार का तीसरी बार किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। यह प्रक्रिया बेहद जटिल थी, लेकिन डॉक्टरों की विशेषज्ञ टीम ने इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया। अब देवेंद्र पूरी तरह से स्वस्थ हैं और अपने जीवन का आनंद ले रहे हैं। इस लेख में 5 किडनियों के साथ जीवन जी रहे डीआरडीओ वैज्ञानिक देवेंद्र बारलेवार की कहानी जानेंगे।
तीसरी बार हुआ किडनी ट्रांसप्लांट
फरीदाबाद स्थित अमृता हॉस्पिटल ने हाल ही में एक दुर्लभ किडनी ट्रांसप्लांट को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। इस सर्जरी के तहत 47 वर्षीय डीआरडीओ वैज्ञानिक देवेंद्र बारलेवार का तीसरा किडनी ट्रांसप्लांट किया गया, जिसके बाद अब उनके शरीर में कुल पांच किडनी मौजूद (Can a person have 5 kidneys) हैं। यह ट्रांसप्लांट प्रक्रिया डॉ. अनिल शर्मा, यूरोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. अहमद कमाल, कार्डियक सर्जरी के सीनियर कंसल्टेंट और प्रमुख डॉ. समीर भाटे और नेफ्रोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. कुणाल राज गांधी द्वारा की गई।
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कैसे शुरू हुई किडनी की समस्या?
देवेंद्र बारलेवार को 2008 में पीलिया और हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) की समस्या हुई, जिसके बाद उनकी किडनी खराब होने लगी। साल 2010 में, AIIMS दिल्ली में उनका पहला किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। उनकी मां बसंती देवी (60 वर्ष) ने अपनी किडनी दान की थी। हालांकि, यह ट्रांसप्लांट लंबे समय तक कारगर नहीं रहा और कुछ ही सालों में उनका क्रिएटिनिन लेवल बढ़ने लगा।
दूसरा किडनी ट्रांसप्लांट और फिर नया संघर्ष
पहले ट्रांसप्लांट के असफल होने के बाद, 2012 में उनका दूसरा किडनी ट्रांसप्लांट किया गया। इस बार, उनके जीजा जी (45 वर्ष) ने उन्हें अपनी किडनी दान की। यह ट्रांसप्लांट सफल रहा और देवेंद्र लगभग 10 वर्षों तक बिना किसी परेशानी के जीवन व्यतीत कर रहे थे। लेकिन साल 2022 में कोविड-19 संक्रमण के कारण देवेंद्र की किडनी फिर से खराब होने लगी। डॉक्टरों ने उन्हें कुछ समय के लिए एंटी-इम्यून मेडिसिन बंद करने की सलाह दी ताकि शरीर कोविड से लड़ सके। हालांकि, इस निर्णय का असर यह हुआ कि उनकी किडनी ने सही से काम करना बंद कर दिया और क्रिएटिनिन लेवल दोबारा बढ़ने लगा।
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बहन और मां बनीं सहारा
दो बार किडनी ट्रांसप्लांट फेल होने और डायलिसिस पर निर्भर रहने के कारण देवेंद्र मानसिक रूप से काफी टूट चुके थे। हालांकि, उनकी मां और बहन ने हमेशा उनका हौसला बनाए रखा। शुरुआत में डायलिसिस के लिए वह अकेले जाते थे, लेकिन बाद में उनकी बहन हर वक्त उनके साथ रहने लगीं। परिवार के सहयोग से उन्होंने तीसरी बार किडनी ट्रांसप्लांट कराने का निर्णय लिया।
तीसरे किडनी ट्रांसप्लांट के लिए चुना अमृता हॉस्पिटल
देवेंद्र बारलेवार ने फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में तीसरी बार किडनी ट्रांसप्लांट कराने का निर्णय लिया। इस दौरान उन्हें डॉक्टर अर्जुन और उनकी मेडिकल टीम का पूरा समर्थन मिला। जनवरी 2025 में उनका तीसरा किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया।
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5 किडनियों के साथ जीवन जी रहे हैं देवेंद्र बारलेवार
इस दुर्लभ सर्जरी के बाद अब देवेंद्र बारलेवार के शरीर में कुल 5 किडनी हैं। इस जटिल प्रक्रिया को डॉ. अनिल शर्मा (यूरोलॉजी), डॉ. अहमद कमाल (कार्डियक सर्जरी), डॉ. समीर भाटे (सर्जरी प्रमुख) और डॉ. कुणाल राज गांधी (नेफ्रोलॉजी) ने अंजाम दिया।
इस केस की जटिलताएं
1. इम्यूनोलॉजिकल खतरा
पहले से शरीर में चार किडनी होने के कारण प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) किडनी को अस्वीकार (rejection) कर सकता था। इसलिए, विशेषज्ञ डॉक्टरों ने स्पेशल इम्यूनोलॉजी प्रोटोकॉल अपनाए।
2. शारीरिक जटिलताएं
देवेंद्र का शरीर पतला था और पहले की सर्जरी के निशान (cheer) मौजूद थे। इससे पांचवीं किडनी के लिए जगह बनाने में कठिनाई आई।
3. रक्त वाहिकाओं से जुड़ी समस्या
पिछली सर्जरी में मुख्य रक्त वाहिकाओं का इस्तेमाल हो चुका था, इसलिए नई किडनी को जोड़ने के लिए वैकल्पिक रास्ता तलाशना पड़ा।
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देवेंद्र बारलेवार का रिएक्शन
तीसरी बार किडनी ट्रांसप्लांट के बाद अब देवेंद्र एक सामान्य जीवन जी रहे हैं। उन्होंने कहा, "दो असफल ट्रांसप्लांट्स से गुजरना बेहद मुश्किल था। डायलिसिस पर रहना मानसिक और शारीरिक रूप से थका देने वाला था। लेकिन अमृता हॉस्पिटल की टीम ने मेरी जिंदगी बदल दी। आज मैं फिर से अपने जीवन का आनंद ले सकता हूं।"
डॉक्टरों की राय
डॉ. कुनाल गांधी (नेफ्रोलॉजी, सीनियर कंसल्टेंट) ने कहा कि नॉन-फंक्शनिंग किडनियां इम्यूनोलॉजिकल समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं, जिससे शरीर ट्रांसप्लांट को अस्वीकार कर सकता है। उन्होंने बताया कि नवीनतम मेडिकल टेक्नोलॉजी और एडवांस्ड इम्यूनोलॉजी टेस्ट की मदद से सही निर्णय लिए गए।
डॉ. अहमद कमाल (यूरोलॉजी, सीनियर कंसल्टेंट) ने बताया कि इस केस में सबसे बड़ा खतरा इम्यूनोलॉजिकल प्रतिक्रिया थी। उन्होंने कहा, "हमने ट्रांसप्लांट से पहले मरीज के इम्यून सिस्टम को अनुकूलित किया ताकि नया अंग आसानी से शरीर में स्वीकार किया जा सके।"
डॉ. अनिल शर्मा (यूरोलॉजी, सीनियर कंसल्टेंट) ने सर्जरी की जटिलताओं के बारे में बताया, "मरीज की पूर्व सर्जरी के कारण नई किडनी को लगाने के लिए जगह कम थी। लेकिन, हमारी टीम ने सुरक्षित और प्रभावी तरीके से इस समस्या का हल निकाला।"
ऑर्गन डोनेशन की अहमियत
देवेंद्र बारलेवार का केस ऑर्गन डोनेशन के महत्व को दर्शाता है। एक मृतक डोनर के परिवार द्वारा दिखाई गई उदारता ने देवेंद्र को नई जिंदगी दी। भारत में ऑर्गन ट्रांसप्लांट तकनीकों में निरंतर सुधार हो रहा है, जिससे गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों को जीवन जीने का एक नया मौका मिल रहा है।
निष्कर्ष
तीन बार किडनी ट्रांसप्लांट करवाने के बाद अब पांच किडनी के साथ जीवन जी रहे हैं देवेंद्र बारलेवार (Who has 5 kidneys)। यह मामला मेडिकल साइंस के लिए एक नई मिसाल है और बताता है कि सही इलाज और विशेषज्ञ डॉक्टरों की मदद से कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है। यह कहानी न केवल मेडिकल एडवांसमेंट, बल्कि परिवार के प्यार और समर्थन का भी एक बेहतरीन उदाहरण है।