जब तक कोविड-19 संक्रमण से बचाव के लिए वैक्सीन और उपचार के लिए कोई कारगर दवा नहीं ढूंढ ली जाती, डॉक्टर प्लाज्मा थेरेपी की मदद से इस बीमारी का उपचार करने की कोशिश कर रहे हैं। मेडिकल साइंस की भाषा में इसे प्लाज्माफेरेसि नाम से जाना जाता है। वैसे तो पहले भी वायरल इन्फेक्शन से बचाव के लिए इस थेरेपी का उपयोग किया जाता रहा है। 1892 में डिप्थीरिया और 1918 में स्पैनिश फ्लू के उपचार के लिए इस थेरपी का उपयोग किया जा चुका है। फिर 1920 में स्कारलेट फीवर के ट्रीटमेंट के लिए भी इसका इस्तेमाल किया गया था। हाल के वर्षों में जब विश्व के कई हिस्सों में इबोला और एन-1 एच-1 फ्लू फैला था तो उसकी रोकथाम में भी इसकी मदद ली गई थी।
प्लाज्मा क्या है?
दरअसल, मानव शरीर में ब्लड तीन प्रमुख तत्वों से मिलकर बना होता है, रेड ब्लड सेल्स, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो प्लाज्मा में कई ऐसे आवश्यक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के इम्यून सिस्टम को सुचारु रूप से चलाने में मददगार होते हैं। इतना ही नहीं, इसमें क्लॉटिंग फैक्टर भी मौज़ूद होता है। जब कभी शरीर का कोई हिस्सा कट जाता है तो यही तत्व ब्लीडिंग रोकने में मददगार होता है और अब इसका उपयोग कोविड-19 संक्रमण से बचाव के लिए किया जा रहा है।
कोरोना वायरस और प्लाज्मा थेरेपी
जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित होता है तो उसके शरीर के भीतर मौज़ूद एंटीबॉडीज़ 14 दिनों के भीतर उससे लडऩे के लिए अनुकूल रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। इसे एक छोटे उदाहरण से कुछ इस तरह समझा जा सकता है। कई बार बाइक पर सवार व्यक्ति बगल से गुज़रने वाले हाथ रिक्शा पर अपना एक पैर टिका देता है, जिससे उसके पहिये अपने आप आगे की ओर बढऩे लगते हैं और हाथ रिक्शा खींचने वाले व्यक्ति को पैडल चलाने की ज़रूरत नहीं होती, जिससे उसे थोड़ी देर के लिए राहत मिलती है। यहां प्लाज्मा थेरेपी भी संक्रमित व्यक्ति के उपचार में इसी तरह मददगार होती है। डोनर के शरीर से जो प्लाज़्मा लिया जाता है, उसमें कोराना के विरुद्ध एंटी बॉडीज़ विकसित हो चुकी होती है। अगर संक्रमण के चौथे-पांचवें दिन किसी मरीज़ को ज्य़ादा तकलीफ होती है तो ऐसी स्थिति में कोरोना से लड़कर स्वस्थ हो चुके व्यक्ति का प्लाज़्मा बीमार व्यक्ति की मदद उस स्थिति तक करता है, जब तक उसके शरीर में अपनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो जाती।
प्लाज्मा थेरेपी के अन्य उपयोग
किसी भी ऑर्गन ट्रांस्प्लांट सर्जरी और स्पोट्र्स इंजुरी के उपचार के लिए भी प्लाज़्मा थेरेपी का किया जाता है। मायस्थीनिया ग्रोविस नामक न्यूरोलॉजिकल बीमारी, जिसमें व्यक्ति की मांसपेशियां कमज़ोर पड़ जाती हैं, उसके उपचार में भी प्लाज्मा एक्सचेंज थेरेपी की मदद ली जाती है अर्थात मरीज़ के शरीर से संक्रमित खून को बाहर निकालकर उसे स्वस्थ प्लाज्मा दिया जाता है, जबकि कोराना के उपचार में मरीज़ को केवल प्लाज्मा दिया जाता है। गुलियन बेरी सिंड्रोम में व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है। इसके उपचार में भी प्लाज्मा थेरेपी की मदद ली जाती है।
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प्लाज्मा डोनेट कौन कर सकता है?
- 18 से 60 वर्ष का कोई भी स्वस्थ पुरुष, जो पहले कोरोना से संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो चुका हो, वह संक्रमण के 28 दिनों के बाद प्लाज्मा डोनेट कर सकता है।
- कोई भी ऐसी स्वस्थ स्त्री जिसने पहले कभी गर्भधारण न किया हो, वह प्लाज्मा डोनेट कर सकती है। आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) की ओर से ऐसी बाध्यता इसलिए रखी गई है क्योंकि रिसर्च से यह साबित होता है कि गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों में ऐसी एंडी बॉडीज़ विकसित हो जाती हैं, जिससे उनका प्लाज्मा दूसरों के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
- डोनर के ब्लड में एंटी बॉडीज़ टाइटर का लेवल 1/640 होना चाहिए।
- प्लाज्मा डोनेशन के लिए भी आमतौर पर वही नियम लागू होते हैं, जो ब्लड डोनेशन के लिए अपनाए जाते हैं। मसलन, हीमोग्लोबिन, ब्लड शुगर लेवल के अलावा ब्लडप्रेशर आदि की जांच की जाती है। (ब्लड डोनेट करने से मिलते हैं ये 7 आश्चर्यजनक फायदे)
मरीज़ों के लिए वरदान है प्लाज्मा थेरेपी
कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि प्लाज्मा डोनेट करने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो जाती है पर वास्तव में ऐसा नहीं होता। किसी भी स्वस्थ व्यक्ति के लिए 400 मिली. प्लाज्मा देना पूर्णत: सुरक्षित है। हां, कोराना संक्रमित व्यक्ति को जब यह थेरेपी दी जाती है तो कई बार उसमें धुंधला दिखने जैसे मामूली साइड इफेक्ट नज़र आते हैं, लेकिन दवाओं की मदद से इन्हें आसानी से नियंत्रित कर लिया जाता है। मरीज़ की रिकवरी मजऱ् की गंभीरता पर निर्भर करती है, फिर भी आशाजनक बात यह है कि बड़ी तादाद में लोग इससे स्वस्थ हो रहे हैं।
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पूरी तरह से सुरक्षित है प्लाज्मा डोनेशन!
ब्लड डोनेशन की तरह यह भी बहुत आसान प्रक्रिया है, बल्कि इसमें डोनर के ब्लड से केवल प्लाज़्मा निकाला जाता है और बाकी ब्लड उसके शरीर में वापस भेज दिया जाता है और 48 घंटे के बाद उसके शरीर में स्वाभाविक रूप से नया प्लाज्मा तैयार हो जाता है। इसके बाद डोनर को ज़रा भी कमज़ोरी महसूस नहीं होती। प्लाज्मा डोनेट करने के बाद आप खुद चलकर घर जा सकते हैं। हां, डोनेशन के बाद डोनर को अधिक मात्रा में पानी या जूस जैसे अन्य तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए। प्लाज्मा डोनेट करने से डोनर के शरीर पर कोई साइड इफेक्ट नहीं होता, इसलिए अगर आप कोरोना पर जीत हासिल कर चुके हैं, तो केवल 400 मिली. प्लाज्मा डोनेट करके किसी को नई जि़ंदगी दे सकते हैं, इसलिए ऐसे सभी लोगों को बिना डरे डोनेशन के लिए आगे आना चाहिए।
नोट: यह लेख दिल्ली स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल के हेमेटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. राहुल भार्गव से हुई बातचीत पर आधारित है।
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