हमारा शरीर विभिन्न प्रकार के कृमियों की मेज़बानी करता है जिसके कारण शरीर में कई रोग पैदा होते हैं । यह कृमि हमारे शरीर में बासी खान पान और दूषित पानी के द्वारा, या त्वचा के ज़रिये घुसते हैं। कच्ची और अधपकी सब्जियां और अधपके मांस के सेवन से कृमि शरीर में विकसित होते हैं और बढ़ते हैं और यह कृमि फ़्लैट वर्म या राउंड वर्म के नाम से जाने जाते हैं ।
कृमि रोग के लक्षण और संकेत
शरीर में कृमि की मौजूदगी के लक्षण कृमि के प्रकार के आधार पर होते हैं । कुछ कृमि कब्ज़ियत या दस्त के साथ उदर में पीड़ा के कारण बनते हैं। हुकवर्म रक्त चूसते हैं और शरीर में खून की कमी का कारण बनते हैं। राउंड वर्म खाँसी, उल्टियां, और भूख की कमी का कारण बनते हैं। कुछ रोगियों में बुखार और ब्रोंकाइटिस के विकसित होने की भी संभावना बनती है।
कृमि-रोग के आयुर्वेदिक / घरेलू उपचार
- सुबह उठते ही 20 ग्राम गुड़ का सेवन करें। उसके 30 मिनट के बाद ठंडे पानी के साथ 1 ग्राम अजवाइन का प्रयोग करें। इससे आपकी अंतड़ियों के कृमि निष्काषित हो जायेंगे।
- प्याज के रस के सेवन से बच्चों के पेट से थ्रेडवर्म निष्काषित हो जायेंगे।
- 2 चम्मच नींबू के रस के साथ 1 या 2 ग्राम कच्ची सुपाड़ी की लेई का सेवन करने से भी लाभ मिलता है ।
- कच्चे पपीते के 4 चम्मच ताज़ा क्षीर एक चम्मच शहद और 4 चम्मच उबले पानी के साथ लें। यह राऊंड वर्म के निष्काशन के लिए एक असरदार कृमिहर का काम करता है।
- 3 से 6 ग्राम अनार के छिलके का पाउडर शक्कर के साथ लें और उसके एक घंटे बाद रेचक औषधि का सेवन करें। इससे राउंड वर्म और टेप वर्म का निष्काशन आसानी से हो जाता है।
- कृमि कुठार रस, कृमि मुद्गर रस, कृमिहर रस आयुर्वेद कृमि रोग की अत्यधिक महत्वपूर्ण औषधियों में गिनी जाती हैं। पर इन औषधियों का प्रयोग अपने चिकित्सक की सलाह के बिना न करें।
- खजूर के पत्तों का स्वरस और नींबू का स्वरस 20-20 ग्राम मिलाकर पिलायें। आयु के साथ मात्रा घटा-बढ़ा सकते हैं। यह मल के कृमि नष्ट करने में लाभकारी होता है।
- पलाश के बीज भी कृमिनाश में उपयोगी होते हैं। उन्हें अजवाइन के साथ मिला कर देने पर उनका प्रभाव बढ़ जाता है।
- केवल काँजी का पानी पिलाने से भी उदर-कृमि नष्ट हो जाते हैं।
- अधिकतर दिनों के लिए ताज़े फलों के साथ संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए।
- सुबह खाली पेट कद्दूकस की हुई गाजर का एक कप सेवन करने से अंतड़ियों के कृमि नष्ट हो जाते हैं।
- लहसून के तीन टुकड़े चबाने से भी अंतड़ियों के कृमि नष्ट हो जाते हैं।
- अपने खान पान में लहसून और हरिद्र की मात्रा बढ़ा दें। करेले, नीम, सिंघियों का सेवन अधिक करें। शक्कर और गन्ने के रस का सेवन बिल्कुल भी ना करें।
- मल और मूत्र त्याग की इच्छा को दबाकर न रखें। कब्ज़ियत से बचें। हफ्ते में एक बार अनशन करने से अंतड़ियों में कृमि प्रजनन को रोका जा सकता है। उँगलियों के नाख़ून छोटे और साफ़ रखें।
- सड़क के किनारे खोमचे में बेचने वाले खाद्य पदार्थ अक्सर दूषित होते है। उन्हें बेचने वालों के भी हाथ साफ़ नहीं रहते। अतः उनलोगों से कुछ खाने की सामग्री खरीदने के पहले सौ बार सोचें एवं उनकी सफाई से पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद हीं उनकी कोई खाद्य सामग्री खरीदें।