समय से पहले जन्मे बच्चों में क्यों होती है सांस की तकलीफ (प्रीमेच्योरिटी एप्निया)? जानें इसके लक्षण और इलाज

प्री मैच्योर यानी समय से पहले जन्मे बच्चों में सांस रुकने या अटकने की समस्या गंभीर हो सकती है। डॉक्टर से जानें ऐसे बच्चों की देखभाल कैसे करें।

Monika Agarwal
Written by: Monika AgarwalUpdated at: Oct 16, 2021 12:00 IST
समय से पहले जन्मे बच्चों में क्यों होती है सांस की तकलीफ (प्रीमेच्योरिटी एप्निया)? जानें इसके लक्षण और इलाज

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प्री-मेच्योर एपनिया एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें बच्चे को 20 सेकेंड या इससे अधिक समय तक सांस लेने में तकलीफ हो (लंबी सांस आने लग जाए या सांस बीच में ही अटकने लग जाएं)। अक्सर यह समय से पहले जन्मे (29 से 33 सप्ताह के बीच जन्मे) बच्चों में देखने को मिलता है। अगर आपका बच्चा समय से पहले जन्मा है तो उसके लिए एपनिया (Apnea of prematurity) की संभावना अधिक बढ़ जाती है। आधे बच्चों में जो समय पूरा होने से पहले ही जन्मे गए हैं उनमें यह स्थिति देखने को मिलती है। आइए जानते हैं इस स्थिति के कारण। कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट पीडियाट्रिशियन एंड नियोनेटालॉजिस्ट डॉक्टर अमित गुप्ता कहते हैं कि प्री-मेच्योर बच्चों में कई बार जन्म हो जाने तक मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी का वह हिस्सा जो सांस को नियंत्रित करता है, पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता है। प्रीमैच्योरिटी एपनिया के कारण शिशुओं को सांस लेने में बड़ी दिक्कत हो सकती है, जैसे कि उथली सांस लेना या सांस लेने में रुकावट हो सकती है। इस स्थिति के बहुत से कारण हो सकते हैं।

प्रीमैच्योर एपनिया का कारण (Causes Of Prematurity Apnea)

समय से पहले जन्मे गए बच्चों की ब्रीदिंग के लिए रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क जिम्मेदार होते हैं। यह प्री-मेच्योर होते हैं। जिस कारण बच्चा बिना रुके सांस नहीं ले पाता है। निम्न कारण भी बच्चों में एपनिया के लिए जिम्मेदार होते हैं।

  • मस्तिष्क में ब्लीडिंग होना
  • दिमाग में किसी तरह का नुकसान पहुंचना
  • फेफड़ों में दिक्कत आना
  • इंफेक्शन होना
  • रिफ्लिक्स
  • बच्चे के शरीर में ग्लूकोज या फिर कैल्शियम के लेवल बहुत कम होना
  • हृदय या फिर ब्लड वेसल में समस्या होना
  • शरीर के तापमान में बदलाव आते रहना
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(Inside Image Source : FirstCryParenting)

प्रीमैच्योर एपनिया के लक्षण (Symptoms Of Prematurity Apnea)

  • बच्चे में 20 सेकेंड या इससे अधिक समय तक के लिए सांस न आना
  • एपनिया का बच्चे के जन्म के एक हफ्ते के अंदर ही दिखाई देना
  • हृदय गति का धीमा हो जाना

इस स्थिति को कैसे पहचाना जा सकता है? (How To Diagnose Prematurity Apnea)

  • फिजिकल एग्जामिनेशन
  • सेल्स को जांचने के लिए, ऑक्सीजन लेवल और इलेक्ट्रोलाइट लेवल व इंफेक्शन आदि का पता करने के लिए ब्लड टेस्ट
  • फेफड़ों, हृदय या जीआई ट्रैक्ट में आने वाली किसी समस्या को जांचने के लिए एक्स रे करवाना
  • सांस लेने (ब्रीदिंग) और हार्ट रेट को जांचने के लिए कुछ टेस्ट करना
  • यूरिन या स्टूल टेस्ट
  • स्पाइनल टैप

प्रीमैच्योर एपनिया का उपचार (Treatment For Prematurity Apnea)

सामान्य केयर : इस स्टेप के दौरान बच्चे के हृदय रेट और ब्रीदिंग को जांचा जाता है। बच्चे के शरीर के तापमान को सामान्य करने की कोशिश की जाती है। अतिरिक्त ऑक्सीजन दी जाती है। बच्चे की स्किन को रब किया जाता है ताकि उसे सांस लेने में सहायता मिल सके।

दवाइयां : एपनिया के दौरान बच्चे को प्रॉपर सांस दिलाने के लिए मिथाईलसिंथिन जैसी दवाई का प्रयोग किया जाता है। बच्चे की सेहत और स्वास्थ्य समस्याओं के आधार पर उसे अन्य दवाइयां भी दी जा सकती हैं। अगर इस स्थिति के साथ साथ बच्चे को इन्फेक्शन भी है तो एंटी बायोटिक और अन्य दवाइयों का प्रयोग भी किया जा सकता है।

सीपीएपी : यह एक ऐसी मशीन होती है जिसके द्वारा बच्चे के फेफड़ों तक सांस पहुंचने में मदद की जाती है। इस उपचार के तरीके के द्वारा बच्चे को सांस लेने में काफी राहत मिलती है।

इस स्थिति से बच्चे को क्या क्या मुसीबत आ सकती है? (Apnea of prematurity Health Risks)

  • हार्ट रेट का धीमा हो जाना
  • लो ब्लड ऑक्सीजन लेवल
  • फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं का लंबे समय तक रहना
  • बच्चे कितने समय तक इस समस्या से बाहर आ सकते हैं?
  • अधिकतर केसों में जब बच्चा 36 हफ्तों का हो जाता है तब वह इस स्थिति से ठीक हो जाता है।

अगर आप अपने बच्चे को जल्द से जल्द इस स्थिति से बाहर लाना चाहते हैं तो आपको भी उसकी पूरी केयर करनी होगी। आप को यह सुनिश्चित करना होगा कि आप का बच्चा हमेशा अपनी पीठ के बल ही सोए। आप को हर 90 से 120 मिनट में बच्चे की ऑक्सीजन लेवल चेक करते रहना चाहिए। बच्चे के हार्ट रेट और सांस लेने (ब्रीदिंग) को भी नियमित रूप से चेक करते रहना चाहिए। अगर आपका बच्चा समय रहते भी इस स्थिति से ठीक नहीं हो पाता है तो उसे अस्पताल में ही रखें।

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