कुपोषण एक ऐसी स्थिति है जो लम्बे समय तक पोषणयुक्त आहार ना मिल पाने के कारण पैदा होती है। कुपोषित बच्चों की रोग प्रतिरोधी क्षमता कमज़ोर होती है और ऐसे बच्चे अकसर बीमार रहते हैं। कुपोषण के कारण बच्चों की त्वचा और बाल रूखे-बेजान दिखते हैं और वज़न कम होने लगता है। सिर्फ इतना ही नहीं कुपोषण के कारण बच्चे का विकास भी रूक जाता है। और अगर समय रहते कुपोषण का इलाज ना कराया जाये तो यह समस्या जानलेवा भी हो सकती है। कुपोषण तीन चरणों 'वेट, हाइट और टेप' में नापा जाता है
'वेट, हाइट और टेप'
बच्चों की बाजू की माप कुपोषण का पता लगाने का सबसे कारगर उपया पाया गया है। अमेरिका के रहोड आइसलैंड अस्पताल के मुताबिक बाजू की माप कुपोषण का पता लगाने में सबसे भरोसेमंद घटक साबित हुआ है। बाजू की माप के लिए एक विशेष तरह का टेप प्रयोग किया जाता है। इसे मिड अपर आर्म सरकमफ्रेंस टेप कहते हैं। तीन रंगों की इस पट्टी में छह से लेकर 26 सेंटीमीटर तक नंबर लिखे हैं। इसे छह माह से 59 माह (लगभग पांच साल) तक के बच्चे की बांह में कोहनी के ऊपरी हिस्से की गोलाई मापनी होगी। इसमें यदि गोलाई 11.5 सेमी से कम पाई जाती है, तो बच्चा अतिकुपोषित बच्चे की श्रेणी में गिना जाएगा। वहीं हरी पट्टी में (13 सेमी) बांह आने पर बच्चा कुपोषण की श्रेणी से बाहर होगा।
बच्चे को सही आहार
तीन साल के बच्चे को दिनभर में 2 कप दूध, डेढ़ से दो कटोरी दाल, 3-4 कटोरी मिला-जुला अनाज 6 से 8 बार खिलाना ठीक रहता है। पानी भी बच्चे को साफ ही देना चाहिए, थोड़ भी शंका होने या कोई संक्रमण होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। छह या सात माह के बच्चे को माँ के दूध के अलावा दो कटोरी मसला हुआ खाना दिनभर में थोड़ा-थोड़ा कर के खिलाना चाहिए। 8 से 10 माह के बच्चे को माँ के दूध के अलावा 3 कटोरी खाना दिनभर में खिला देना चाहिए। हर मौसम में आने वाले विभिन्न फल या उनका रस बच्चों को दें। ये फल प्रकृतिक ग्लूकोज, विटामिन तथा पौष्टिकता प्रदान करते हैं बच्चों को।कुपोषण जैसी समस्या का सबसे बड़ा कारण गरीबी और अज्ञानता है। जिन बच्चों को समय पर खाना नहीं मिलता, उनमें कुपोषण होने की सम्भावना सबसे अधिक रहती है।
जिन बच्चों को समय पर खाना मिलता है उन्हें भी कुपोषण हो सकता है। ऐसा भी ज़रूरी नहीं कि किसी एक बच्चे में सभी प्रकार के पोषक तत्वों की कमी पाई जाये। किसी एक प्रकार के पोषण तत्व की कमी से भी कुपोषण होता है।
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