
गर्मी का पर्याय है जून का महीना। गर्मी भी ऐसी जिसके खयाल मात्र से ही पसीना आने लगता है। लू के थपेड़े और चिलचिलाती धूप लिए गर्मियों के आते ही भले ही शहर की सड़कों पर तपती दोपहर में सन्नाटा झा जाता हो, पर लंगड़ा, चौसा, दशहरी और फजली की पुकार बंद दरवाजों को भी खुलने पर मजबूर कर देती है। जी हां, भयंकर गर्मियों की ही सौगात है फलों का राजा-आम।
यह आम सचमुच खास है। सुनहरा रूप लिए यह अपने गुणों व विभिन्न स्वादों के कारण ही फलों का राजा बनने में सफल रहा। आम के नाम से ही मुंह में पानी आने लगता है, फिर अगर इससे बना पना, शेक या फ्रैपे मिल जाए तो कहना ही क्या! गर्मी में आने वाले लगभग सभी फल रसीले होते हैं जैसे तरबूज लीची, लौकाट, आड़ू, आलूबुखारा आदि पर आम के रसीले स्वाद के सामने मानो सब फीके पड़ जाते हैं। इसके मीठे रस में शरीर को लू से बचाने की अद्भुत क्षमता के कारण ही शायद प्रकृति ने इसे गर्मी में पैदा किया।
छिपे हैं कई गुण
आम सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं होता बल्कि इसमें छिपे गुण इसे स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद बनाते हैं। पोटैशियम से भरपूर होने के साथ-साथ आम में विटामिन ए व सी भी होते हैं। अगर आप अपने ऊपर नियंत्रण खो बैठें और आम का सेवन जरूरत से ज्यादा कर लें तो आयुर्वेद के अनुसार आम खाने के बाद दूध, अदरक का पानी, जामुन या फिर चकोतरा या नीबू पानी लेना चाहिए। सिर्फ चुटकी भर भुना काला नमक खाने से भी अपचन की समस्या दूर हो सकती है।
आम सिर्फ पका हुआ ही स्वादिष्ट नहीं लगता बल्कि कच्चा, पकाया हुआ और प्यूरी के रूप में भी बेहद पसंद किया जाता है। कच्चे आम का यदि अचार बनाया जाता है, तो इसे सुखाकर अमचूर पाउडर, खटाई या फिर आम की चटनी का स्वाद लिया जा सकता है। भारतीय भोजन में आम के अनेक रूप देखे जा सकते हैं- मीठा अमरस, खट्टा-मीठा अमावट या आम पापड़ तथा हलवा, खीर और फिर दालों में भी पड़ता है आम।
आम अपने स्वाद से ज्यादा खुशबू से पहचाना जाता है। विभिन्न किस्मों में उगने वाले इस फल को इसकी खास खुशबू से पता लग जाता है कि वह चौसा है या लंगड़ा या फिर कोई और किस्म। दो मिलती-जुलती किस्मों में फर्क बताना एक आम आदमी के लिए मुश्किल हो सकता है, पर आम के जौहरियों के लिए नहीं। आमों की शेप व रंग भी इनकी पहचान कराते हैं जैसे दशहरी पतला व लंबा होता है और इसका रंग भी गाढ़ा हरा होता है जबकि चौसा आकार में बड़ा और सुनहरा पीला और लाल रंग के मिश्रित रंगों को लिए होता है। माना जाता है कि संसार में आम की करीब 1,500 किस्में हैं जिसमें से करीब एक हजार सिर्फ भारत में उगाई जाती हैं।
कहां हुई उत्पत्ति
भारत में सबसे ज्यादा किस्में पाए जाने के बाद भी विशेषज्ञों का मानना है कि आम की उत्पत्ति मलय प्रायद्वीप में हुई। एक लोककथा के अनुसार भगवान हनुमान ने रावण के बगीचे से इस पेड़ के बीज लिए थे। अंग्रेजी शब्द मैंगो यानी आम भी तमिल शब्द के मैन-के या मैन-गे से ही बना है। हालांकि हिंदी में आम शब्द संस्कृत के आम्र शब्द से आया। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आम की उत्पत्ति इंडो-बर्मा क्षेत्र में हुई। इसीलिए इस क्षेत्र के महाकाव्यों, धार्मिक कार्यो व लोककथाओं में आम का उल्लेख प्रचुरता से हुआ।
महाभारत व रामायण में आम का उल्लेख एक से अधिक बार हुआ है। इसीलिए आम के फल, पेड़ व पत्तियों को भारतीय संस्कृति में पवित्र स्थान प्राप्त है। इसी आम के पेड़ के नीचे अनेक धार्मिक उपाख्यान व घटनाएं हुई। राधा-कृष्ण की प्रणय लीला, शिव-पार्वती का विवाह आम के पेड़ के नीचे ही हुआ और गौतम बुद्ध विश्राम करने के लिए आम के पेड़ की छाया ही पसंद करते थे। बौद्ध मूर्तिकला व चित्रकला को देखने से पता चलता है कि आम का पेड़ इस धर्म में कितना महत्वपूर्ण स्थान लिए है। सांची के स्तूप (तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) में एक यक्षी को आमों से लदे पेड़ की एक शाखा से लिपटी दिखाया गया है। इसी प्रकार के अन्य संदर्भ भी आम से जुड़े हैं। आम के छोटे रूप अंबी का प्रयोग मोटिफ के रूप में शायद सबसे लोकप्रिय मोटिफ है। भारतीय ज्वैलरी के डिजाइन हों या कपड़े पर छपाई के साड़ी का बॉर्डर हो या पल्लू इन सभी पर अंबी की प्रचुरता व लोकप्रियता देखी जा सकती है।
हिन्दू धर्म के धार्मिक व मांगलिक कार्यो में आम की पत्तियों व लकड़ी को पवित्र व शुद्ध माना जाने के कारण इनका प्रयोग आवश्यक माना गया है। पीतल, तांबे या मिट्टी के कलश के चारों ओर सजी हुई आम की पत्तियां किसी भी शुभ कार्य के अवसर पर होना सामान्य है। ऐसे कलश प्रवेश द्वारों पर भी सजाए जाते हैं। आम की पत्तियों से बनी बन्दनवार भी मांगलिक व शुभकार्य का द्योतक है। हवन या यज्ञ में आम की लकड़ी का प्रयोग शुभ माना जाता है, शायद इसकी वजह इस लकड़ी का आसानी से जलना है। आम के फूलों को देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना के लिए विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है।
इसकी खुशबू है निराली
महाकवि कालिदास ने आम के बौर की काम देवता के तीर से तुलना की। उनके अनुसार आम के पेड़ पर बौर आने का मौसम प्रेमी हृदयों में मिलन की ज्योत जगाता है। आम के बौर की मोहक खुशबू जब चारों ओर फैलती है तो प्रेमी मदमस्त झूमने लगते हैं और अपने साथियों से मिलने को बेचैन हो उठते हैं। देखा जाए तो आम के बौर का मौसम बसंत ऋतु होती है, जिसे कवियों की भाषा में ऋतुराज या कामदेव का सिरमौर कहा गया है। बसंत कवियों व प्रेमियों की प्रिय ऋतु है अत: इससे संबंधित असंख्य शब्द लिखे गए हैं।
मुगल बादशाहों की पसंद
आम के स्वाद ने शताब्दियों से विदेशी यात्रियों को भारत की ओर आकर्षित किया है। सिकन्दर से लेकर चीनी यात्री ह्वेन सांग तक इसके स्वाद के गुलाम हो गए। मुगल बादशाहों को यह फल बेहद प्रिय था। भाग्यवश इस फल की इतनी अधिक पैदाइश थी कि मुगलों के जमाने में हर विशेष चीज को अन्य चीजों से अलग रखने के लिए दो शब्दों का प्रयोग किया गया- आम और खास। आम शब्द का अर्थ आज भी सामान्य समझा जाता है। मुगलबादशाहों के महलों में लगभग हर चीज या तो आम होती थी या फिर खास जैसे दीवान-ए-आम व दीवान-ए-खास, महफिल एक आम व महफिल एक खास, जनता-ए-आम व जनता-ए-खास आदि।
मुगल बादशाहों द्वारा इस प्रिय फल का प्रयोग वर्ष भर किया जाता था। वे कच्चे आमों को घी या शहद में भिगोकर रखते थे और पक जाने पर उनका आनंद लेते थे। कहते हैं कि दरभंगा (बिहार) में लाखी बाग में आज भी ऐसे आम के पेड़ हैं जिन्हें मुगल बादशाह अकबर ने लगाया था। 1838 में मजागांव नामक आम का पेड़ इतना प्रसिद्ध व कीमती माना गया कि सुरक्षा के लिए सैनिक तैनात किए गये। मुगल बादशाह शाहजहां को बुरहानपुर के बादशाह पसंद नामक आम के पेड़ के फल बेहद पसंद थे। इस पेड़ के कारण शाहजहां व उसके पुत्र औरंगजेब के बीच संबंध बिगड़ गए थे। कहते हैं कि शाहजहां ने दक्षिण भारत स्थित औरगंजेब से इस पेड़ के आमों को दिल्ली भेजने का काम सौंपा। औरंगजेब ने पेड़ की सुरक्षा व देखभाल के लिए कई आदमी लगाए पर प्रकृति के प्रकोप के कारण पेड़ की सारी फसल नष्ट हो गई। बहुत ही कम आम दिल्ली भेजे जा सके। शाहजहां ने परिस्थितियों को अनदेखा करते हुए पुत्र पर आमों को खुद
हजम कर जाने का शक किया और फल व पेड़ की सुरक्षा के लिए अपने आदमी भेजे।
हरियाणा में बुरैल नामक स्थान पर एक आम का पेड़ आज भी मिसाल बना हुआ है। इसका तना 32 फुट मोटा, इसकी शाखाएं 80 फुट लंबी तथा 12 फुट मोटी हैं। 2,700 वर्ग यार्ड में फैले इस आम के पेड़ पर कभी-कभी ढाई किलो वजन वाला आम भी पैदा होता है। अंग्रेजों को भी इसके स्वाद ने अपना गुलाम बनाया। रॉर्बट क्लाइव के बेटे एडवर्ड क्लाइव ने 1798 में मद्रास में एक बहुत बड़ा आम का बगीचा लगवाया था जिसमें आम की अनेक किस्मों के पेड़ थे। एडवर्ड की तरह-तरह के स्वाद वाले आम खाने का बेहद शौक था। भारत से आम की किस्मों को अन्य पश्चिमी देशों में फैलाने का श्रेय भी अंग्रेजों को दिया जा सकता है। एशिया से आम ब्राजील व कैरेबियन पहुंचा 18 वीं सदी में, स्पेन से मैक्सिको पहुंचा 1750 में और वहां से पहुंचा अमेरिका के फ्लोरिडा में। आज विश्व के करीब 60 से से भी ज्यादा देशों में आम की पैदावार होती है। इस मीठे रसीले फल ने अपने स्वाद, गुण खुशबू से जिस कदर दुनिया को अपने वश में किया है, उसके बल पर कहा जा सकता है कि आम 'आम' कतई नहीं है, बल्कि है कुछ 'खास'।
क्यों पसंद करते हैं लोग आम
गर्मी के मौसम का सबसे बेहतरीन फल या यों कहें फलों का राजा आम अपने अनूठे स्वाद, मिठास, सुगंध और पौष्टिक तत्वों की वजह से हरेक को पसंद आता है। इसे पसंद करने के और भी कई कारण इस प्रकार हैं-
- यह न सिर्फ स्वाद से बेहतरीन होता है बल्कि इसमें एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो हानिकारक तत्वों से शरीर की सुरक्षा करते हैं। साथ ही यह असमय झुर्रियों से भी बचाता है।
- इसमें विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। एक औसत आकार के आम में आपको प्रतिदिन जितने विटामिन सी, ए, ई की जरूरत होती है उससे भी कहीं ज्यादा विटामिन होते हैं। इसी के साथ ही इसमें पोटैशियम, आयरन और निकोटिनिक एसिड होता है।
- आम में बीटा क्रिप्टोजेनथिन नामक ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो सर्वाइकल कैंसर के खतरों को कम करने में मदद करता है। लेकिन प्रतिदिन ज्यादा आम खाने से त्वचा पर बुरा असर होने के साथ ही पाचन क्रिया भी प्रभावित हो सकती है।
Image Courtesy- Getty Images
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