हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस 2025 (World Population Day 2025) मनाया जाता है, ताकि जनसंख्या बढ़ने से जुड़े मुद्दों पर लोगों का ध्यान खींचा जा सके। साल 2025 में यह मुद्दा और भी गंभीर होता जा रहा है, खासकर जब बात आती है सांस की बीमारियों (Respiratory Diseases) की। डॉक्टर्स और पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती जनसंख्या केवल संसाधनों पर बोझ नहीं डाल रही, बल्कि यह वायु गुणवत्ता को भी तेजी से प्रभावित कर रही है। लखनऊ के पल्स हॉर्ट सेंटर के कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ अभिषेक शुक्ला ने बताया कि घनी आबादी वाले शहरों में वाहनों की संख्या बढ़ी है, निर्माण कार्य ज्यादा हो रहे हैं, औद्योगिक कचरा बढ़ा है और हरियाली घट रही है। इन सभी कारणों से वायु प्रदूषण (Air Pollution) का लेवल खतरनाक रूप से बढ़ा है। इसके नतीजतन दमा (Asthma), क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), ब्रोंकाइटिस और एलर्जी जनित सांस की बीमारियां तेजी से फैल रही हैं। बच्चे, बुज़ुर्ग और पहले से बीमार लोग इसकी चपेट में सबसे पहले आते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे बढ़ती आबादी सांस की बीमारियों को बढ़ावा दे रही है और इस पर डॉक्टर्स की क्या राय है।
बढ़ती आबादी है स्वास्थ्य के लिए खतरा
यूएन पॉपुलेशन डिविजन के मुताबिक, 2025 तक विश्व की आबादी 8.2 बिलियन को पार कर जाएगी, जिसमें भारत का योगदान सबसे ज्यादा है। भारत पहले ही 2023 में चीन को पीछे छोड़कर सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन चुका है और अब यहां की शहरी आबादी तेजी से बढ़ रही है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली, मुंबई, कानपुर जैसे बड़े शहरों में पीएम2.5 का लेवल, डब्ल्यूएचओ (WHO) के मानकों से 6-8 गुना ज्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल लगभग 16 लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण जान गंवाते हैं, जिनमें से ज्यादातर मौतें फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों की वजह से होती हैं। बच्चों में अस्थमा के मामले 20 % तक बढ़े हैं और हर 10 में से 3 बच्चों को सांस लेने में तकलीफ की शिकायत रहती है। इन आंकड़ों से साफ है कि अगर आबादी को कंट्रोल नहीं किया गया और वायु गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले समय में यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा बन सकती है।
आबादी बढ़ने से वायु गुणवत्ता घट जाती है- More People is Equals to Poor Air Quality
बढ़ती आबादी का मतलब है ज्यादा वाहन, ज्यादा ईंधन की खपत और ज्यादा इंडस्ट्री। इन सबका सीधा असर पड़ता है वायु की शुद्धता पर। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार, दुनिया की 90 % आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है जो सुरक्षित मानकों से नीचे है। पीएम 2.5 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों को सीधे नुकसान पहुंचाते हैं और लगातार सांस संबंधी समस्याएं खड़ी करते हैं।
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घनत्व वाले शहरों में है ज्यादा खतरा- Higher Risk in Densely Populated Cities
बड़े शहरों में जनसंख्या के ज्यादा होने से लोगों को घरों के पास खुले क्षेत्र या हरे-भरे वातावरण की कमी होती है। ट्रैफिक जाम, धूल और धुआं यहां की सामान्य बातें हैं। ऐसे में लोगों को ऑक्सीजन युक्त ताजी हवा मिलना मुश्किल हो जाता है, जिसके लंबे समय तक रहने पर सांस की बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
शिशुओं और बुज़ुर्गों पर दिखता है ज्यादा असर- Children and Elderly Are Most Affected
डॉक्टर्स का कहना है कि सांस की बीमारियों के मामले बच्चों और बुज़ुर्गों में सबसे ज्यादा देखने को मिलते हैं। बच्चों के फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं होते और बुज़ुर्गों की इम्यूनिटी कमजोर होती है। बढ़ती आबादी के साथ, हॉस्पिटल पर बोझ भी बढ़ता है, जिससे समय पर इलाज मिलना मुश्किल हो सकता है।
स्लम क्षेत्रों में हालात और भी खराब है- Worst Situation in Slum Areas
घनी बस्तियों और झुग्गियों में रहने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इन क्षेत्रों में प्रदूषण, कचरा, धूल और गंदगी की भरमार होती है। साथ ही, स्वास्थ्य सेवाएं भी सीमित होती हैं। यह सारी स्थितियां मिलकर सांस की गंभीर बीमारियों को जन्म देती हैं।
मानसिक तनाव भी बन रहा है कारण- Mental Stress Adds to Respiratory Diseases
बढ़ती भीड़, ट्रैफिक, नौकरी की चिंता और जीवनशैली से जुड़ी समस्याएं, लोगों को मानसिक रूप से थका देती हैं। मानसिक तनाव से शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होती है, जिससे एलर्जिक अस्थमा, हाइपरवेंटिलेशन सिंड्रोम और ब्रांकोस्पास्म जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।
बढ़ती आबादी में सांस की बीमारियों से कैसे बचें?- How to Prevent Respiratory Diseases With Growing Population
डॉक्टरों का कहना है कि जनसंख्या को कंट्रोल करने के साथ-साथ साफ हवा को सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है। इसके लिए-
- वाहनों की संख्या को सीमित करें।
- पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा दें।
- शहरों में हरियाली को बढ़ावा दें।
- धूल और धुएं से बचने के लिए मास्क पहनें।
- घर के अंदर एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें।
- प्राणायाम और योग को अपनाएं।
- इन सभी उपायों से हम सांस की बीमारियों के खतरे को कम कर सकते हैं।
जनसंख्या का बढ़ना केवल एक आंकड़ा नहीं है, यह हमारे स्वास्थ्य पर सीधा असर डालने वाला पहलू है। सांस की बीमारियां, कहीं न कहीं हमारी जनसंख्या से जुड़ी हैं। समय रहते इस पर ध्यान देना और सतर्क रहना ही बेहतर जीवन का उपाय है।
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FAQ
सांस की कौन सी बीमारियां हैं?
अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज), निमोनिया, पल्मोनरी फाइब्रोसिस और टीबी जैसी बीमारियां प्रमुख हैं, जो फेफड़ों को प्रभावित करती हैं और सांस लेने में दिक्कत पैदा करती हैं।सांस की तकलीफ के 3 गंभीर लक्षण क्या हैं?
आराम की स्थिति में भी सांस फूलना, सीने में जकड़न या दर्द, बोलते वक्त या चलते हुए बार-बार सांस अटकना, ये सभी लक्षण गंभीर माने जाते हैं।मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरी सांस की तकलीफ गंभीर है?
अगर आपकी सांस लेने की गति तेज हो, सीना भारी लगे, ऑक्सीजन लेवल 94 % से नीचे हो या नीली त्वचा दिखे, तो यह गंभीर स्थिति हो सकती है, ऐसे में डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।