ओमिक्रोन की तरह खतरनाक हो सकता है कोरोना का नया वेरिएंट BA.2.86, जानें इसे लेकर क्यों चिंतित हैं वैज्ञानिक

कोविड 19 के ERIS वेरिएंट के बाद अब नए वेरिएंट BA.2.86 ने लोगों में चिंता बढ़ा दी है। इस वेरिएंट में ईरिस की तुलना में कई बदलाव देखे जा रहे हैं।
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ओमिक्रोन की तरह खतरनाक हो सकता है कोरोना का नया वेरिएंट BA.2.86, जानें इसे लेकर क्यों चिंतित हैं वैज्ञानिक


कोविड 19 के ERIS वेरिएंट के बाद अब नए वेरिएंट BA.2.86 ने लोगों में चिंता बढ़ा दी है। इस वेरिएंट में ईरिस की तुलना में कई बदलाव देखे जा रहे हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में इसने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। इस वेरिएंट ने वैज्ञानिकों को भी चिंता में डाल दिया है। वैज्ञानिक लगातार इसके फैलने का कारण इसके खतरनाक होने का पता लगा रहे हैं। 

नए वेरिएंट से वैज्ञानिक क्यों हैं चिंतित? 

BA.2.86 वैरिएंट को लेकर वैज्ञानिक काफी एलर्ट हैं और इसलिए चिंतित हैं क्योंकि यह वेरिएंट ओमीक्रॉन के सबवेरिएंट BA.2 से जुड़ा हुआ है। यह से काफी अलग और खतरनाक भी साबित हो सकता है। लंबे समय तक कोविड-19 संक्रमण वाले लोगों में पहले वायरस में बड़े स्पाइक म्यूटेशन थे, जैसा कि BA.2.86 में पाया गया है। अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता आशीष झा के मुताबिक इस वेरिएंट पर मिलकर ध्यान देने की जरूरत है। यह कोविड के अर्ली स्टेज से काफी अलग है। लंबे समय तक कोविड से जूझने वाले लोगों में स्पाइक म्यूटेशन थे, जो BA.2.86 में भी पाए गए थे। 

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वैक्सीन बेअसर साबित हो सकती है

वायरोलॉजिस्ट जेसी ब्लूम के मुताबिक जिन लोगों को बूस्टर डोज लगी है या फिर पहले के कोविड के जरिए उनमें एंटीबॉडी विकसित की गई है। वे अभी भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे लोग कोविड के नए यानि BA.2.86 वेरिएंट के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में वैक्सीन या बूस्टर डोज भी इसे रोक पाने में बेअसर साबित हो सकती है। इसके लक्षणों में आपको कोविड के पहले के वेरिएंट की तरह समानता दिख सकती है। ऐसे में थकान, तेज बुखार, खांसी, गले में खराश, दर्द, खाना न‍िगलने में समस्या और दस्त आदि हो सकता है। 

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हो चुका है कम्यूनिटी ट्रांसमिशन 

21 अगस्त तक यूनाइटेड किंगडम, इजराइल, डेनमार्क और संयुक्त राज्य अमेरिका में कोविड के 6 मामले देखे जा चुके हैं। जबकि इनका आपस में कोई लेना-देना नहीं है और न हीं इन्होंने कोई हवाई यात्रा की है। इससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि इस वेरिएंट का कई देशों में कम्यूनिटी ट्रांसमिशन हो चुका है। इसे लेकर भी वैज्ञानिक काफी चिंतित हैं।

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