वैज्ञानिकों का मानना है कि पूर्णिमा की रात ठीक से नींद लेने में ख़लल डालती है। प्रयोगशाला में हुए एक प्रयोग के दौरान पूर्णिमा के दिन नींद में पांच मिनट ज़्यादा समय लगा और लोग 20 मिनट कम सोएं।
'करेंट बायोलॉजी' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ जब चांद पूरा था, तो स्वयंसेवकों को नींद आने और अच्छी तरह नींद लेने में वक़्त लगा, जबकि बंद अंधेरे कमरे में उन्हें अच्छी नींद आई। इस दौरान उनके शरीर की जैविक घड़ी से जुड़े मेलटोनिन नाम के हार्मोन स्तर में भी कमी देखी गई। अंधेरे में शरीर में अधिक मेलटोनिन बना जबकि उजाले में इसके निर्माण में कमी आई।
शाम के चमकीले प्रकाश या दिन का थोड़ा कम प्रकाश शरीर के सामान्य मेलटोनिन चक्र पर असर डाल सकता है। स्विट्जरलैंड के बेसल विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर क्रिश्चियन कैजोहेन और उनके साथियों के इस अध्ययन में यह सुझाव दिया गया है कि चंद्रमा का प्रभाव इसकी चमक से संबंधित नहीं हो सकता।
इसमें शामिल स्वयंसेवक इस बात से अनजान थे कि इस अध्ययन का उद्देश्य क्या है। उन्हें प्रयोगशाला में जिस बिस्तर पर सुलाया गया था, वहां से वे चंद्रमा को नहीं देख सकते थे। इनमें से हर स्वयंसेवक ने प्रयोगशाला में दो रातें बिताईं। अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि पूर्णिमा की रात गहरी नींद से जुड़ी दिमाग़ी गतिविधियां घटकर आधी रह गईं। मेलटोनिन का स्तर भी गिर गया।
प्रोफ़ेसर क्रिश्चियन कैजोहेन कहते हैं, ''चंद्रमा की गति इंसान की नींद पर असर डालती हुई लगती है। यह तब भी होता है कि जब कोई चांद को देखता भी नहीं है और उसे यह भी नहीं पता होता कि चांद किस अवस्था में है।''
ब्रिटेन के नींद विशेषज्ञ डॉक्टर नील स्टेनली के अनुसार, ''पूर्णिमा को लेकर कई कहानियां है। इसलिए अगर उनका कोई प्रभाव पड़ता है, तो उस पर ताज्जुब नहीं होना चाहिए। अब यह विज्ञान पर है कि वह यह पता लगाए कि पूर्णिमा पर हमारे अलग-अलग ढंग से सोने का कारण क्या है।''
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