प्रदूषण से जूझ रही दिल्ली की 11 प्रतिशत आबादी अस्थमा और राइनाइटिस की चपेट में है और पिछले दो दशकों से इन एलर्जिक बीमारियों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। खासतौर से वयस्क आबादी इसकी चपेट में आई है। मौजूदा दशक की समाप्ति तक अस्थमा रोगियों की संख्या दोगुनी हो जाने की आशंका है।
इंडियन कॉलेज ऑफ एलर्जी अस्थमा एंड इम्युनोलॉजी (आइसीएएआइ) द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार दिल्ली में 11 प्रतिशत से अधिक आबादी एलर्जिक राइनाइटिस (एआर) की गिरफ्त में है और इतने ही लोग ब्रोंकाइटिस अस्थमा के शिकार हैं। गौरतलब है कि एलर्जिक राइनाइटिस से ग्रसित लोगों के लिए वसंत सबसे मुश्किल मौसम होता है। इस मौसम में फूलों से निकलने वाले परागकण अस्थमा और एलर्जिक राइनाइटिस को गम्भीर बना देते हैं। विशेषज्ञों का कहना है दिल्ली में इन एलर्जिक बीमारियों में हो रही भयावह बढ़ोतरी को जल्द व नियमित इलाज से ही रोका जा सकता है।
क्या है एलर्जिक राइनाइटिस?
एलर्जिक राइनाइटिस (एआर) सांस संबंधी एक गंभीर रोग है, और दुनिया भर में एक तिहाई आबादी इससे पीड़ि़त है। एलर्जिक राइनाइटिस की पहचान और उचित इलाज नहीं मिलने से यह तेजी से बढ़ रहा है। एलर्जी से त्वचा, आंख और नाक जैसे शरीर के विभिन्न अंग प्रभावित हो सकते हैं। नाक पर असर होने से बार-बार छींक नाक में खुजली, नाक बहना, बंद होना और आंख से पानी निकलने जैसे लक्षण उभरते हैं। ये सारे एलर्जिक राइनाइटिस के लक्षण हैं जो अलग-अलग व्यक्ति में अलग-अलग रूप में दिखाई देते हैं।
लोग खुद ही सर्दी की दवाएं खरीद कर खा लेते हैं और उनके साइड इफेक्ट से स्थिति और बिगड़ जाती है। एलर्जिक राइनाइटिस का हमला किशोरावस्था में सबसे तेज होता है। 80 प्रतिशत मामलों में एलर्जिक राइनाइटिस की शुरुआत 20 वर्ष की आयु के पहले और किशोरावस्था में होती है। हालांकि, एआर की घटना उम्र बढ़ने के साथ घटती जाती है, फिर भी अधिक उम्र वाले वयस्कों में भी यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। एआर का मामला केवल बच्चों में ही नहीं, बल्कि वयस्कों में भी बढ़ रहा है।
एलर्जिक राइनाइटिस से नींद में व्यवधान, पढ़ाई या काम में गिरावट आती है और पीड़ित व्यक्ति की हालत कमजोर एवं दयनीय हो जाती है।
Source : ICAI
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